अयोध्या: सुप्रीम कोर्ट अयोध्या भूमि विवाद मामले पर कभी भी फैसला सुना सकता है. अयोध्या भूमि विवाद मामले पर स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार शीतला सिंह ने बताया कि इस विवाद की जड़ में आस्था कम राजनीति ज्यादा दिखती है.
लंबे समय से यहां सांप्रदायिकता का जहर घोलने का प्रयास किया जाता रहा है, लेकिन अयोध्या में हिंदू और मुस्लिमों के बीच का सौहार्द्र इतना मजबूत था कि उसे कोई डिगा नहीं सका. लिहाजा मंदिर और मस्जिद विवाद करके धर्म के आधार पर सांप्रदायिकता फैलाने और राजनीति करने का प्रयास किया गया. यह प्रयास अयोध्या के लिए घातक साबित हुआ. इसके बावजूद सौहार्द की जड़ें इतनी मजबूत थी कि वह एक बार डिगी तो लेकिन फिर उसने पूरी तरह से जमीनी मजबूती पकड़ी और वह आज तक कायम है. शीतला सिंह कहते हैं कि किस प्रकार मंदिर-मस्जिद विवाद को राजनीति के लिए इस्तेमाल किया गया यह होते उन्होंने अपनी आंखों से देखा है.
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पत्रकार शीतला सिंह कहते हैं कि वर्ष 1934 को छोड़ दिया जाए तो उसके बाद अयोध्या में कभी भी सौहार्द बिगड़ने की नौबत नहीं आई. यह तब हुआ था जब अलवर के राजा वहां से निकाले गए थे और उन्होंने फैजाबाद में आकर शरण ली थी. यह वह दौर था, जब वर्चस्व को लेकर राजाओं में तकरार हुआ करती थी, लेकिन इसके बाद अयोध्या का माहौल कभी नहीं बिगड़ा. जब विवादित ढांचे को गिराया गया उसके बाद जो स्थितियां उत्पन्न हुई वह शायद अयोध्या ने पहली बार देखा था. यह सब अयोध्या वासियों ने बर्दाश्त किया. माहौल बेहद खराब होने के बावजूद भी सांप्रदायिकता यहां मजबूत नहीं हो सकी और सौहार्द कायम रहा. लिहाजा राजनीति होती रही, लेकिन जनमानस के व्यवहार में कोई विशेष बदलाव नहीं आया. शीतला सिंह कहते हैं कि अयोध्या विवाद का फैसला कुछ भी हो यहां की जनता बड़े से बड़े विवाद को झेल सकती है तो इस फैसले से सामाजिक सौहार्द बिल्कुल भी बिगड़ने वाला नहीं है.