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अयोध्या: रामलला के मंदिर में 2002 की भी रखी जाएंगी शिलाएं

अयोध्या में भगवान श्रीराम के मंदिर में 2002 की शिलाएं भी रखी जाएंगी. 2002 में पूजित शिलाएं परमहंस दास से लेकर कोषागर में रखवाई गई थी. अब उनको वापस लेने की कवायद शुरू होने वाली है.

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अयोध्या में राम मंदिर
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Published : Jan 3, 2020, 8:31 PM IST

अयोध्या: संत समाज अयोध्या में राम मंदिर को लेकर पूरी तरह आश्वस्त है. 2002 में पूजित शिलाओं को भी राम मंदिर में रखा जाएगा. हाल ही में अयोध्या पहुंचे विश्व हिंदू परिषद के उपाध्यक्ष चंपत राय और संघ के सहकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल ने राम जन्म भूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपालदास और दिगंबर अखाड़ा के महंत सुरेश दास से मुलाकात की थी. इसके साथ ही जिले के उच्च अधिकारियों से भी बंद कमरों में वार्ता की थी.

रामलला के मंदिर में 2002 की भी रखी जाएंगी शिलाएं

ये भी पढ़ें: रहने को जगह नहीं होगी तो मालूम होगा NRC का विरोध कितना महंगा होता है: विनय कटियार

सूत्रों की माने तो अब पूजित शिलाएं दोबारा से राम जन्मभूमि न्यास को सौंपने की कवायद शुरू होने वाली है. इसकी शुरुआत प्रयागराज से हो रही है. प्रयागराज में 20 जनवरी को माघ मेले में संतों की एक बैठक भी है, उस बैठक में इन शिलाओं को बाहर लाने के बारे में संत समाज भी निर्णय करेगा. राम जन्मभूमि न्यास के तत्कालीन अध्यक्ष रामचंद्र दास परमहंस और विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष अशोक सिंघल की मंशा थी कि यह शिलाएं भगवान राम के मंदिर में लगे इसको लेकर संत समाज भी सक्रिय है.

विश्व हिंदू परिषद के प्रांतीय मीडिया प्रभारी शरद शर्मा ने कहा-

  • स्वर्गीय रामचंद्र दास परमहंस को एक सपना आया, जिसमें राम जी ने स्वयं शिला दान करने की इच्छा जताई थी.
  • उसके बाद रामचंद्र दास परमहंस कार्यशाला में आए और उन्होंने अपनी मंशा को जाहिर किया.
  • तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में पूजित शिलाएं तत्कालीन रिसीवर को सौंपी गई थी.
  • शिलाएं राजस्व विभाग के अंतर्गत रखी गई हैं.

ये भी पढ़ें: भारत और कोरिया के प्रगाढ़ रिश्ते का साक्षी बनेगी अयोध्या, खुलेगा कोरियाई संस्कृति अध्ययन केंद्र

शरद शर्मा ने कहा कि अब शिलादान की कोई आवश्यकता नहीं है. जिस वक्त का यह मामला है, उस वक्त मामला कोर्ट के अधीन था और फैसला आ चुका है अब मंदिर निर्माण के लिए तराशे गए पत्थरों को राम मंदिर में लगाने का कार्य जल्द ही शुरू होगा. जिसमें 2002 में पूजित शिलाएं भी शामिल होंगी. कोर्ट के निर्णय पर बनने वाले ट्रस्ट को यह शिला सौंप दी जाएगी. इसके साथ ही 1990 में घर-घर से आई भगवान राम के नाम की ईंट भी मंदिर में उपयोग की जाएंगी.

वहीं राम जन्म के पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने कहा कि 2002 में पूजित शिलाओं को लेकर रामचंद्र दास परमहंस राम मंदिर के लिए निकले थे और वह चाहते थे कि ये शिला गर्भगृह में स्थापित हो. स्वर्गीय रामचंद्र दास परमहंस ने इस शिला का विधि विधान से पूजा की. रामचंद्र दास परमहंस के द्वारा पूजित पत्थर को इस तरीके से रखा जाएगा कि जब दर्शन करने वाले लोग पहुंचे तो उस पत्थर को देखें. परमहंस दास के आंदोलन की वजह से ही यहां तक यह मामला पहुंचा है. इसलिए इस पत्थर को निकालकर मंदिर निर्माण के गर्भ गृह में लगाया जाएगा.

अयोध्या: संत समाज अयोध्या में राम मंदिर को लेकर पूरी तरह आश्वस्त है. 2002 में पूजित शिलाओं को भी राम मंदिर में रखा जाएगा. हाल ही में अयोध्या पहुंचे विश्व हिंदू परिषद के उपाध्यक्ष चंपत राय और संघ के सहकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल ने राम जन्म भूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपालदास और दिगंबर अखाड़ा के महंत सुरेश दास से मुलाकात की थी. इसके साथ ही जिले के उच्च अधिकारियों से भी बंद कमरों में वार्ता की थी.

रामलला के मंदिर में 2002 की भी रखी जाएंगी शिलाएं

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सूत्रों की माने तो अब पूजित शिलाएं दोबारा से राम जन्मभूमि न्यास को सौंपने की कवायद शुरू होने वाली है. इसकी शुरुआत प्रयागराज से हो रही है. प्रयागराज में 20 जनवरी को माघ मेले में संतों की एक बैठक भी है, उस बैठक में इन शिलाओं को बाहर लाने के बारे में संत समाज भी निर्णय करेगा. राम जन्मभूमि न्यास के तत्कालीन अध्यक्ष रामचंद्र दास परमहंस और विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष अशोक सिंघल की मंशा थी कि यह शिलाएं भगवान राम के मंदिर में लगे इसको लेकर संत समाज भी सक्रिय है.

विश्व हिंदू परिषद के प्रांतीय मीडिया प्रभारी शरद शर्मा ने कहा-

  • स्वर्गीय रामचंद्र दास परमहंस को एक सपना आया, जिसमें राम जी ने स्वयं शिला दान करने की इच्छा जताई थी.
  • उसके बाद रामचंद्र दास परमहंस कार्यशाला में आए और उन्होंने अपनी मंशा को जाहिर किया.
  • तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में पूजित शिलाएं तत्कालीन रिसीवर को सौंपी गई थी.
  • शिलाएं राजस्व विभाग के अंतर्गत रखी गई हैं.

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शरद शर्मा ने कहा कि अब शिलादान की कोई आवश्यकता नहीं है. जिस वक्त का यह मामला है, उस वक्त मामला कोर्ट के अधीन था और फैसला आ चुका है अब मंदिर निर्माण के लिए तराशे गए पत्थरों को राम मंदिर में लगाने का कार्य जल्द ही शुरू होगा. जिसमें 2002 में पूजित शिलाएं भी शामिल होंगी. कोर्ट के निर्णय पर बनने वाले ट्रस्ट को यह शिला सौंप दी जाएगी. इसके साथ ही 1990 में घर-घर से आई भगवान राम के नाम की ईंट भी मंदिर में उपयोग की जाएंगी.

वहीं राम जन्म के पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने कहा कि 2002 में पूजित शिलाओं को लेकर रामचंद्र दास परमहंस राम मंदिर के लिए निकले थे और वह चाहते थे कि ये शिला गर्भगृह में स्थापित हो. स्वर्गीय रामचंद्र दास परमहंस ने इस शिला का विधि विधान से पूजा की. रामचंद्र दास परमहंस के द्वारा पूजित पत्थर को इस तरीके से रखा जाएगा कि जब दर्शन करने वाले लोग पहुंचे तो उस पत्थर को देखें. परमहंस दास के आंदोलन की वजह से ही यहां तक यह मामला पहुंचा है. इसलिए इस पत्थर को निकालकर मंदिर निर्माण के गर्भ गृह में लगाया जाएगा.

Intro:अयोध्या. श्रीरामजन्मभूमि मामले में फैसला आने के बाद से संत समाज पूरी तरह से आश्वस्त राम मंदिर को लेकर। वहीं इस मामले में साल 2002 में पूजित शिलाएं परमहंस दास से लेकर कोषगर में रखवाई थी। अब उसको वापस लेने की कवायद शुरू हो रही है। बीते दिनों अयोध्या पहुंचे विश्व हिंदू परिषद के उपाध्यक्ष चंपत राय और संघ के सर सहकार्यवाह डॉ कृष्णगोपाल ने राम जन्म भूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपालदास और दिगंबर अखाड़ा के महंत सुरेश दास से मुलाकात की थी साथ ही जिले के उच्च अधिकारियों से भी बंद कमरों में वार्ता की थी। सूत्रों की मानें तो अब पूजित शिलाए दोबारा से राम जन्मभूमि न्यास को सौंपने की कवायद शुरू होने वाली है। इसकी शुरुआत प्रयागराज से हो रही है। प्रयागराज में 20 जनवरी को माघ मेले में संतों की एक बैठक भी है, उस बैठक में इन शिलाओं को बाहर लाने के बारे में भी संत समाज निर्णय करेगा।
राम जन्मभूमि न्यास के तत्कालीन अध्यक्ष रामचंद्र दास परमहंस और विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष अशोक सिंघल की मंशा थी कि, यह शिलायें भगवान राम के मंदिर में लगे इसको लेकर संत समाज भी सक्रिय है ।

Body:विश्व हिंदू परिषद के प्रांतीय मीडिया प्रभारी शरद शर्मा ने कहा कि स्वर्गीय रामचंद्र दास परमहंस को एक सपना आया, जिसमें राम जी ने स्वयं शीला दान करने की इच्छा जताई थी। उसके बाद रामचंद्र दास परमहंस कार्यशाला में आए और उन्होंने अपनी मंशा को वक्तव्य किया।
तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल की सरकार थी उस समय पूजित शिलाएं तत्कालीन रिसीवर को सौंपी गई। शिलाएं राजस्व विभाग के अंतर्गत रखी गई है। शरद शर्मा ने कहा, अब शिलादान की कोई आवश्यकता नहीं है। जिस वक्त का यह मामला है, उस वक्त मामला कोर्ट के अधीन था और फैसला आ चुका है अब मंदिर निर्माण के लिए तराशे गए पत्थरों को राम मंदिर में लगाने का कार्य जल्द ही शुरू होगा। जिसमे 2002 में पूजित सिलाई भी उसमें शामिल होंगे। साथ ही 1990 में घर घर से आई भगवान राम के नाम की ईंट भी इस मंदिर में उपयोग की जाएंगी और कोर्ट के निर्णय पर बनने वाले ट्रस्ट को यह शिला सौंप दी जाएगी, मंदिर निर्माण में इस्तेमाल होगी। वही राम जन्म के पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने कहा कि रामचंद्र दास परमहंस 2002 में पूजित  शिला को लेकर राम मंदिर के लिए निकले थे और वह चाहते थे कि यह सिला गर्भगृह में स्थापित हो। यह सिला तत्कालीन रिसीवर ने लेकर कोषागार में सुरक्षित रखा है। राम मंदिर शलाका पुरुष रहे स्वर्गीय रामचंद्र दास परमहंस ने इस शिला का विधि विधान से पूजा किया है इसलिए इस शीला को वापस लेकर राम मंदिर निर्माण में इस्तेमाल करने के लिए प्रयास किया गया । रामचंद्र दास परमहंस के द्वारा पूजित पत्थर को इस तरीके से रखा जाएगा, कि जब दर्शन करने वाले लोग पहुंचे तो उस पत्थर को देखें, परमहंस दास के आंदोलन की वजह से ही यहां तक यह मामला पहुंचा है।
इसलिए इस पत्थर को निकाल कर उसको मंदिर निर्माण के गर्भ गृह में लगाया जाएगा।

इसके पहले भी दिगंबर अखाड़ा के महंत सुरेश दास और राम जन्म भूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपालदास से बंद कमरे में संघ के सर सहकार व डॉ कृष्णगोपाल और विश्व हिंदू परिषद के उपाध्यक्ष चंपत राय ने मुलाकात की थी।


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Byte-शरद शर्मा-प्रांतीय मीडिया प्रभारी विश्व हिंदू परिषद Conclusion:दिनेश मिश्रा 8707765484
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