अयोध्या: संकटमोचन पवन पुत्र हनुमान जी की प्रधान पीठ हनुमानगढ़ी के प्रति जनमानस में अगाध आस्था है. देश-विदेश से भी यहां भारी संख्या में श्रद्धालु प्रभु के दर्शन को आते हैं. लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि आलीशान हनुमानगढ़ी को अवध के नवाब शुजाउद्दौला ने बनवाया था. इसके पहले वहां हनुमानजी की एक छोटी सी मूर्ति को टीले पर पेड़ के नीचे लोग पूजते थे. वहीं, जो भी अयोध्या जाता है वह हनुमानगढ़ी के दर्शन जरूर करता है.
रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद भगवान राम जब अयोध्या लौटे तो हनुमानजी ने यहां रहना शुरू किया था. इसी कारण इसका नाम हनुमानगढ़ी व हनुमान कोट पड़ा. यहीं से हनुमानजी रामकोट की रक्षा भी करते थे. मुख्य मंदिर में माता अंजनी की गोद में पवनसुत विराजमान हैं. अयोध्या के मध्य में स्थित इस मंदिर तक पहुंचने के लिए 76 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. जानकारी के मुताबिक इस विशाल मंदिर व उसका आवासीय परिसर करीब 52 बीघे में फैला है.
खैर, अयोध्या के साथ कई घटनाएं जुड़ी हैं. लेकिन हनुमान जी का यह मंदिर हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल है. वहीं, हनुमान जयंती के मौके पर आज रात्रि 12 बजे घंटे घड़ियाल की मंगल ध्वनि के बीच पवनसुत हनुमान लला का जन्म होगा. इस आयोजन को भव्यता देने के लिए हनुमानगढ़ी के संतों ने पूरे परिसर को भव्य तरीके से सजाया है.
कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी अर्थात नरक चतुर्दशी तिथि पर पवन पुत्र हनुमान लला का जन्मदिन राम नगरी अयोध्या में बेहद भव्य तरीके से मनाने की सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं. साथ ही हनुमानगढ़ी परिसर को बेहद सुंदर तरीके से सजाया गया है.
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अयोध्या का प्रसिद्ध हनुमानगढ़ी मंदिर पूरे देश भर में श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है. लेकिन इस बेहद प्राचीन और पौराणिक सिद्ध पीठ से जुड़ी एक ऐसी कथा भी है जो न सिर्फ बेहद रोचक है, बल्कि हिंदू-मुस्लिम एकता का केंद्र भी है. हनुमान जयंती के मौके पर ईटीवी भारत की इस रिपोर्ट में हम आपको बताएंगे कि भगवान राम की जन्म स्थली अयोध्या में स्थित प्रसिद्ध सिद्धपीठ हनुमानगढ़ी का निर्माण किसने कराया था.
अवध के नवाब ने बनवाई थी हनुमानगढ़ी मंदिर
हनुमानगढ़ी के प्रतिष्ठित संत राजू दास की मानें तो 17वीं शताब्दी में हनुमानगढ़ी एक टीले के रूप में था, जहां पर हनुमान जी की छोटी सी प्रतिमा रखी हुई थी और बाबा अभयराम दास जी उस प्रतिमा की सेवा पूजा करते थे. साल 1739 से 1754 के बीच अवध में नवाब शुजाउद्दौला का शासन था.
बताया जाता है कि इसी दौरान उनके बेटे को गंभीर बीमारी हो गई और तमाम हकीम वैद्य इलाज कर हार गए, लेकिन उनके बेटे की हालत दिन प्रति दिन बिगड़ती ही जा रही थी. परेशान होकर नवाब ने अपने हिंदू मंत्रियों और अधिकारियों से अपनी तकलीफ को बताया. जिसके बाद उन्होंने बाबा अभयराम दास की महत्ता के बारे में नवाब से जिक्र किया.
नवाब के आदेश पर उनकी सल्तनत के कई अधिकारी बाबा अभयराम दास जी के पास पहुंचे और नवाब की तकलीफ को बताते हुए उन पर कृपा करने की बात कही. अनुनय विनय के बाद बाबा अभयराम दास राजी हो गए, जिसके बाद फैजाबाद जाकर बाबा अभयराम दास ने हनुमानगढ़ी का पवित्र जल उनके बेटे के ऊपर छिड़का और कुछ मंत्रों का उच्चारण भी किया.
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बताया जाता है कि थोड़े ही दिनों में नवाब शुजाउद्दौला का बेटा बिल्कुल स्वस्थ हो गया. जिसके बाद नवाब शुजाउद्दौला ने आग्रह कर बाबा अभयराम दास से कुछ मांगने को कहा तो उन्होंने मंदिर बनवाने की बात कही. जिसके बाद नवाब शुजाउद्दौला ने बाबा अभयराम दास की अनुमति से इस प्राचीन स्थान पर एक किलेनुमा मंदिर का निर्माण कराया.
वरिष्ठ नागा संत राजू दास बताते हैं कि हनुमानगढ़ी मंदिर में हनुमान जी को लाल चोला चढ़ाने से सभी इच्छाएं पूरी होती है. जमीन तल से काफी ऊपर करीब 76 सीढ़ियों का सफर करने के बाद श्रद्धालु भगवान हनुमान लला के दर्शन को मंदिर परिसर में पहुंचते हैं.
बताया जाता है कि इस प्राचीन मंदिर स्थल में दक्षिण मुखी दिशा में विराजमान हनुमान लला अपनी मां अंजना की गोद में दर्शन देते हैं. ऐसी मान्यता है कि यहां पर हनुमान जी को लाल चोला चढ़ाने से सभी मनोकामना पूर्ण होती है.
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