अयोध्या: केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार अयोध्या के सौंदर्यीकरण को लेकर बेहद गंभीर है. अयोध्या नगरी को साफ-सुथरा और प्रकाशमान बनाने के लिए करोड़ों रुपये का फंड केंद्र और प्रदेश सरकार जारी करती रही है. प्रदेश सरकार की तमाम योजनाओं का क्रियान्वयन करने का काम स्थानीय स्तर की इकाई का है, लेकिन जमीनी तौर पर विभागीय अनियमितता और भ्रष्टाचार के चलते योगी सरकार की तमाम योजनाओं को पलीता लग रहा है. ताजा मामला अयोध्या नगर निगम का है, जहां फर्जी सफाईकर्मियों की नियुक्ति कर करोड़ों रुपये के गबन का सनसनीखेज मामला सामने आया है. इस मामले में नगर आयुक्त विशाल सिंह ने जांच के बाद दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं.
नगर निगम में फर्जी सफाईकर्मियों के नाम पर लगभग 3 करोड़ रुपये का घोटाला सामने आया है. नगर निगम के संविदा कंपनी को हुए भुगतान के बिलों में फर्जी नाम पाए गए हैं. अयोध्या नगर निगम के 300 फर्जी कर्मचारियों के जरिए संविदा कंपनी ने नगर निगम को 2 साल में 3 करोड़ से अधिक की चपत लगाई है. आउटसोर्सिंग कंपनी को किए गए भुगतान की रसीदों की जांच में यह गड़बड़झाला पकड़ा गया है. यह फर्जी सफाई कर्मचारी प्रतिमाह करीब 15 लाख रुपये का चूना लगा रहे थे. अब नगर निगम इन सफाई कर्मचारियों की लिस्ट तैयार करवा रहा है.
नगर आयुक्त ने दी जानकारी
नगर आयुक्त विशाल सिंह ने बताया कि सफाई कर्मचारियों को तैनात करने वाली रघुवंशी इन्फोटेक पर शिकंजा कसा गया था. उन्होंने एक-एक कर्मचारी को बुलाकर सब का वेरिफिकेशन कराया. साथ ही आउटसोर्सिंग कंपनी के दस्तावेज भी तलब किया गए हैं. इसमें पता चला कि 2018 में ही कंपनी का अनुबंध खत्म हो गया है. इस पर आयुक्त ने आउटसोर्सिंग करते हुए जांच शुरू कराई थी. अब मामले की जांच में नया मोड़ आ गया है. इसमें पता चला है कि 300 कर्मचारियों का मानदेय तो देय हो रहा है, लेकिन यह लोग काम पर नहीं जाते थे और न ही इनका कोई डेटा है. जांच में ये भी पता चला है कि मस्टररोल पर चढ़ाने के बाद ही आउटसोर्सिंग कंपनी को पता चल पाता है कि यह कर्मचारी हैं. ऐसे कर्मचारियों की संख्या लगभग 300 के आस-पास है.
इस पूरे मामले में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि बीते 2 वर्षों से यह पूरा फर्जीवाड़ा चल रहा था, लेकिन किसी को कानों कान खबर नहीं हुई और तमाम अधिकारियों की नाक के नीचे भ्रष्टाचार का यह खेल चलता रहा. सूत्रों की माने तो इस पूरे खेल में कई बड़े नाम शामिल हैं, जिनमें नगर निगम के कुछ कर्मचारी अधिकारी भी हो सकते हैं. नगर आयुक्त के मुताबिक इन पर कार्रवाई की गाज गिरना तय है. इतना ही नहीं अगर जांच में भ्रष्टाचार होने की पुष्टि हुई, तो दोषियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उनसे रिकवरी भी की जाएगी.