अयोध्या: रामनगरी में दशरथ महल यानी भगवान श्रीराम के पिता दशरथ का महल स्थित है, जिसे आज एक सिद्धपीठ माना जाता है. मान्यता के अनुसार, राजा दशरथ ने इस महल की स्थापना की थी. यहां पर श्रीराम और उनके भाइयों ने बाललीलाएं की थीं. इस स्थान पर श्री वैष्णव परंपरा की प्रसिद्ध पीठ एवं बिन्दुगादी की सर्वोच्च पीठ भी स्थित है. सिद्ध संत बाबा श्री रामप्रसादाचार्य जी महाराज ने यहां पुनः मंदिर की स्थापना की और वर्तमान स्वरूप प्रदान किया.
मान्यता है कि त्रेता के दशरथ महल के सिद्ध संत बाबा श्री रामप्रसादाचार्य जी महाराज ने यहां पुनः मंदिर की स्थापना की और वर्तमान स्वरूप प्रदान किया. यह स्थान श्री वैष्णव परंपरा की प्रसिद्ध पीठ एवं बिंदुगादी की सर्वोच्च पीठ है. इसे बड़ा स्थान या बड़ी जगह भी कहा जाता है. यहां के संस्थापक सिद्ध संत बाबा श्रीरामप्रसादाचार्य जी महाराज करीब 300 वर्ष पूर्व अवतरित हुए थे.
किशोरी जी ने पैर के अंगूठे से लगाया था तिलका
बाबा श्री रामप्रसादाचार्य भक्त रूपा श्रीजानकी के अनन्य भक्त थे. अयोध्या के सीता कुंड क्षेत्र में तपस्या के दौरान एक दिन भूलवश बाबा तिलक लगाना भूल गए. जब वह पूजा में बैठ गए तो उनका अपूर्ण तिलक देखकर भक्त स्वरूपा किशोरी जी ने अपने पैर के अंगूठे से उनका तिलक लगा दिया.
बिंदु मिटने की जगह प्रकाशित होता गया
संतों ने कहा कि यह तिलक बिंदु हमारी परंपरा के अनुरूप नहीं है. अतः आप इसे मिटा दें. बाबा ने कहा कि यह किशोरी जी का प्रसाद है तो वे इसे मिटा नहीं सकते. अगर आप चाहें तो मिटा सकते हैं. बाब के तिलक को संतों ने मिटाने का प्रयास किया, तभी बिंदु मिटने की बजाय प्रकाशित होता गया. इस चमत्कार को देखकर किशोरी जी की कृपा मानते हुए सभी संतों ने महाराज जी से क्षमा याचना की. इस घटना से बाबा की प्रसिद्धि पूरे भारत के समाज में सिद्ध संत की हो गई. इससे हजारों लाखों की संख्या में भक्त स्थान से जुड़े और पूरे भारत में भक्तों ने यहां से राम मंत्र प्राप्त किया.
महंत देवेंद्र प्रसादाचार्य ने बताया कि दशरथ महल में श्रीराम जन्मोत्सव का पर्व बहुत धूमधाम से मनाया जाता है. मंदिर में अन्य उत्सव जैसे श्रीजानकी जयंती, सीता राम विवाह, सावन झूला आदि भी बहुत धूमधाम से मनाया जाता है. तनतुलसी पीठाधीश्वर जगतगुरु रामानंदाचार्य स्वामी विष्णु देवाचार्य ने बताया कि वे 55 वर्षों से अयोध्या आ रहे हैं. अयोध्या के दशरथ महल में आकर उन्हें परम शांति का अनुभव होता है. यह स्थान मानव ही नहीं, बल्कि देवताओं के लिए भी बहुत ही आनंद देने वाला है.