अयोध्या : धार्मिक नगरी अयोध्या में 15 अप्रैल को मतदान प्रक्रिया संपन्न होनी है. पंचायत चुनाव को लेकर जिन प्रत्याशियों ने नामांकन दाखिल किया है, वो दिन-रात मतदाताओं के घरों की परिक्रमा कर रहे हैं. ऐसे में ईटीवी भारत की टीम ने गांवों में पहुंचकर ग्रामीणों से बातचीत की. इस दौरान लोगों से यह जानने की कोशिश की गई कि बीते चुनावों के मुद्दों से अलग मुद्दे इस बार के चुनाव में क्या होंगे ? क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू गांव के पंचायत चुनाव पर भी चलेगा या जातीय समीकरण भारी पड़ेंगे ?
अयोध्या जनपद के ग्रामीण क्षेत्र पूरा बाजार इलाके के रामपुर हलवारा गांव में दलितों की बड़ी आबादी है. आमतौर पर इस गांव के ज्यादातर निवासी मेहनत मजदूरी से अपना गुजारा करते हैं. घर मकान बनाने के काम से लेकर दिहाड़ी मजदूरी इनका पेशा है. गांव में रहने वाले लोग खेती किसानी के जरिए भी अपना गुजारा करते हैं. ग्रामीणों ने गांव में पंचायत चुनाव के प्रमुख मुद्दों में बिजली, पानी, सड़क के अलावा लड़कियों को बेहतर शिक्षा और घर में शौचालय मौजूद होना जरूरी बताया.
ग्रामीण सत्तो देवी ने कहा कि योजनाएं तो बहुत आईं, लेकिन गांव के अनपढ़ लोग अपने हक के लिए इन योजनाओं का लाभ पाने के लिए आखिर किससे लड़ाई करते. गांव के प्रधान और जिला पंचायत सदस्य से गुहार लगाते 5 साल बीत गए, लेकिन कुछ घरों को छोड़कर बाकी में शौचालय नहीं है. उन्होंने बताया कि महिलाओं के लिए घर में शौचालय नहीं है, इसकी वजह से उन्हें दिन निकलने से पहले खेतों में जाना पड़ता है.
एक अन्य महिला कमला देवी ने बताया कि गांव में प्राथमिक शिक्षा का स्तर अच्छा नहीं है. सरकारी स्कूल में टीचर जिम्मेदार नहीं है, इस वजह से बच्चों को शिक्षा का वह माहौल नहीं मिल पा रहा है. बच्चों के खेलने के लिए उपयुक्त जगह नहीं बची है. ग्राम समाज की जो खाली जमीन थी, वहां पर तालाब खुदवा दिए गए हैं. गांव में बारात घर की जरूरत है.
ग्रामीण राम प्रसाद पाल ने बताया कि इस बार के चुनाव में प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी बीजेपी को छुट्टा जानवर बहुत नुकसान पहुंचाएंगे. गांव के लोग नाराज हैं. पूरी रात खेत की रखवाली करनी पड़ती है. सरकार ने गौ संरक्षण के लिए कानून बनाए, लेकिन उनका सही तरीके से पालन नहीं करवा सकी. शहरों से जानवर पकड़कर गांव में छोड़ दिए जा रहे हैं, जो ग्रामीणों की फसल को नुकसान पहुंचा रहे हैं.
छात्रा रश्मि ने बताया कि गांव में लड़कियों को पढ़ने के लिए उच्च शिक्षा की व्यवस्था नहीं है. हाईस्कूल और इंटर की पढ़ाई करने के लिए उन्हें कई किलोमीटर पैदल चलकर दूसरे स्कूल में जाना पड़ता है. अगर गांव में एक इंटर कॉलेज बन जाता, तो आसपास के कई गांव के लोगों को इसकी सुविधा मिलती.
विकास की आस में हर बार छले जाते हैं मतदाता
हर बार के चुनाव से इस बार के चुनाव बहुत अलग नहीं हैं. चाहे शहर हो या ग्रामीण बिजली, पानी, सड़क चिकित्सा, शिक्षा जैसी मूलभूत जरूरतें ही हर बार चुनावी मुद्दे बनते हैं. मतदाता हर बार इस उम्मीद में मतदान करता है कि इस बार उनका प्रतिनिधि उनकी समस्याओं को दूर करेगा, लेकिन न जाने क्यों चुनावी मौसम बीतते ही वादों की विकास की बगिया में पतझड़ आ जाता है. फिर जब अगला चुनाव आता है तो वादों की बहार लेकर नेताजी मतदाताओं के दरवाजे पर दस्तक देने पहुंच जाते हैं.
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हालांकि, इस बार गांव की सियासत में बिजली, पानी, सड़क, चिकित्सा, शिक्षा जैसी मूलभूत जरूरतों के अलावा किसानों के लिए छुट्टा जानवरों की समस्या सत्तारूढ़ दल के लिए बड़ी चुनौती है. केंद्र सरकार की उज्ज्वला योजना, जन-धन योजना और घरों में शौचालय बनवाने के लिए सरकारी मदद योजना का लाभ सत्तारूढ़ दल को मिलता दिखाई दे रहा है.