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देवोत्थनी एकादशी पर रामनगरी अयोध्या में पंच कोसी परिक्रमा करने उमड़े श्रद्धालु, जानिए क्या है महत्व - देवोत्थनी एकादशी 2023

Ayodhya Panch Kosi Parikrama : देवोत्थनी एकादशी के दिन अयोध्या में पांच कोसी परिक्रमा करने की परंपरा है. आईए जानते हैं इसका महत्व.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Nov 23, 2023, 5:03 PM IST

अयोध्या: देवोत्थनी एकादशी के मौके पर रामनगरी अयोध्या में 30 लाख से अधिक श्रद्धालु चतुर्दिक पंच कोस की परिक्रमा कर रहे हैं. पौराणिक मान्यता के अनुसार देवोत्थनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु सहित सभी देवी देवता निद्रा से उठते हैं और आज से ही सारे मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं. देवोत्थनी एकादशी के दिन पवित्र नदियों में स्नान और विशेष कर अयोध्या में राम जन्मभूमि सहित सभी मंदिरों की परिक्रमा का विशेष महत्व है. इसीलिए प्रतिवर्ष पांच कोस की परिक्रमा में शामिल होने के लिए लाखों श्रद्धालु अयोध्या आते हैं. इसी कड़ी में इस वर्ष भी परिक्रमा में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी है.

परिक्रमा या संस्कृत में प्रदक्षिणा शब्द का अर्थ है प्रभु की उपासना, अपने मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए श्रद्धालु चाहे वह किसी धर्म का हो, मंदिर गुरुद्वारे और मस्जिदों की परिक्रमा करते हैं. इसमें उस स्थान की परिक्रमा की जाती है, जिसके मध्य में देवी देवता की कोई प्रतिमा या कोई ऐसी पूज्य वस्तु रखी होती है, जिसमें उस व्यक्ति का विश्वास और आस्था होती है. सनातन धर्म के महत्वपूर्ण ग्रंथ ऋग्वेद में प्रदक्षिणा अर्थात परिक्रमा को लेकर बेहद अहम जानकारी दी गई है.

ऋग्वेद के अनुसार प्रदक्षिणा शब्द को जब दो भागों में विभाजित किया जाता है तो प्रा + दक्षिणा अलग अलग हो जाती है. इस पूरे शब्द में मौजूद प्रारब्ध के प्रा का अर्थ आगे बढ़ने से है और दक्षिण का अर्थ है चारों दिशाओं में से एक दक्षिण की दिशा, यानी कि ऋग्वेद के अनुसार परिक्रमा का अर्थ है दक्षिण दिशा की ओर बढ़ते हुए देवी देवता की उपासना करना.

इस परिक्रमा के दौरान प्रभु हमारे दाएं ओर गर्भ ग्रह में विराजमान होते हैं लेकिन प्रदक्षिणा को दक्षिण दिशा में ही करने का नियम क्यों बनाया गया है, इसके पीछे भी विशेष तर्क है. पौराणिक मान्यता के अनुसार परिक्रमा हमेशा घड़ी की सुई की दिशा में ही की जाती है. तभी हम दक्षिण दिशा की ओर बढ़ते हैं. हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार ईश्वर हमेशा मध्य में उपस्थित होते हैं और वह स्थान प्रभु के केंद्रित रहने का अनुभव प्रदान करता है.

देवोत्थनी एकादशी के अवसर पर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवन श्री राम की जन्मस्थली अयोध्या के चारो तरफ से गोलाकार रूप में होने वाली पांच कोस की परिक्रमा की जा रही है. इस कठिन परिक्रमा को करने के कुछ खास नियम भी हैं. इनमें से सबसे प्रमुख नियम है, 15 किलोमीटर के लम्बे परिपथ पर नंगे पांव परिक्रमा करने की परम्परा है.

शाश्त्रो के अनुसार परिक्रमा परिपथ के दायरे में भगवान श्री राम की जन्मस्थली अयोध्या और यहां पर स्थित करीब 6 हजार मंदिर आते हैं. इस परिक्रमा के माध्यम से भगवान श्री राम की जन्मस्थली सहित पूरी अयोध्या की परिक्रमा हो जाती है. चूंकि किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में जूते या चप्पल पहन कर शामिल होना निषिद्ध है इसी मान्यता के चलते श्रद्धालु 15 किलोमीटर की लम्बी परिक्रमा नंगे पैर ही करते हैं. भले ही इनके पैरो में छाले पड़ जाएं या छिल जाएं.

ये भी पढ़ेंः आज से शुरू हो गए शादी और मांगलिक कार्य के शुभ मुहूर्त, जानिए किस महीने में कितने दिन हैं अच्छे

अयोध्या: देवोत्थनी एकादशी के मौके पर रामनगरी अयोध्या में 30 लाख से अधिक श्रद्धालु चतुर्दिक पंच कोस की परिक्रमा कर रहे हैं. पौराणिक मान्यता के अनुसार देवोत्थनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु सहित सभी देवी देवता निद्रा से उठते हैं और आज से ही सारे मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं. देवोत्थनी एकादशी के दिन पवित्र नदियों में स्नान और विशेष कर अयोध्या में राम जन्मभूमि सहित सभी मंदिरों की परिक्रमा का विशेष महत्व है. इसीलिए प्रतिवर्ष पांच कोस की परिक्रमा में शामिल होने के लिए लाखों श्रद्धालु अयोध्या आते हैं. इसी कड़ी में इस वर्ष भी परिक्रमा में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी है.

परिक्रमा या संस्कृत में प्रदक्षिणा शब्द का अर्थ है प्रभु की उपासना, अपने मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए श्रद्धालु चाहे वह किसी धर्म का हो, मंदिर गुरुद्वारे और मस्जिदों की परिक्रमा करते हैं. इसमें उस स्थान की परिक्रमा की जाती है, जिसके मध्य में देवी देवता की कोई प्रतिमा या कोई ऐसी पूज्य वस्तु रखी होती है, जिसमें उस व्यक्ति का विश्वास और आस्था होती है. सनातन धर्म के महत्वपूर्ण ग्रंथ ऋग्वेद में प्रदक्षिणा अर्थात परिक्रमा को लेकर बेहद अहम जानकारी दी गई है.

ऋग्वेद के अनुसार प्रदक्षिणा शब्द को जब दो भागों में विभाजित किया जाता है तो प्रा + दक्षिणा अलग अलग हो जाती है. इस पूरे शब्द में मौजूद प्रारब्ध के प्रा का अर्थ आगे बढ़ने से है और दक्षिण का अर्थ है चारों दिशाओं में से एक दक्षिण की दिशा, यानी कि ऋग्वेद के अनुसार परिक्रमा का अर्थ है दक्षिण दिशा की ओर बढ़ते हुए देवी देवता की उपासना करना.

इस परिक्रमा के दौरान प्रभु हमारे दाएं ओर गर्भ ग्रह में विराजमान होते हैं लेकिन प्रदक्षिणा को दक्षिण दिशा में ही करने का नियम क्यों बनाया गया है, इसके पीछे भी विशेष तर्क है. पौराणिक मान्यता के अनुसार परिक्रमा हमेशा घड़ी की सुई की दिशा में ही की जाती है. तभी हम दक्षिण दिशा की ओर बढ़ते हैं. हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार ईश्वर हमेशा मध्य में उपस्थित होते हैं और वह स्थान प्रभु के केंद्रित रहने का अनुभव प्रदान करता है.

देवोत्थनी एकादशी के अवसर पर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवन श्री राम की जन्मस्थली अयोध्या के चारो तरफ से गोलाकार रूप में होने वाली पांच कोस की परिक्रमा की जा रही है. इस कठिन परिक्रमा को करने के कुछ खास नियम भी हैं. इनमें से सबसे प्रमुख नियम है, 15 किलोमीटर के लम्बे परिपथ पर नंगे पांव परिक्रमा करने की परम्परा है.

शाश्त्रो के अनुसार परिक्रमा परिपथ के दायरे में भगवान श्री राम की जन्मस्थली अयोध्या और यहां पर स्थित करीब 6 हजार मंदिर आते हैं. इस परिक्रमा के माध्यम से भगवान श्री राम की जन्मस्थली सहित पूरी अयोध्या की परिक्रमा हो जाती है. चूंकि किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में जूते या चप्पल पहन कर शामिल होना निषिद्ध है इसी मान्यता के चलते श्रद्धालु 15 किलोमीटर की लम्बी परिक्रमा नंगे पैर ही करते हैं. भले ही इनके पैरो में छाले पड़ जाएं या छिल जाएं.

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