अयोध्या: 14 वर्ष के वनवास काल में भगवान राम द्वारा शबरी माता के हाथों झूठे बेर खाने की कथा हर किसी को ज्ञात है. इसी तरह समाज के हर वर्ग को साथ लेकर चलने की विचारधारा भगवान राम की नगरी अयोध्या में परिलक्षित होती है. त्रेता युग से लेकर आज तक समाज का हर वर्ग भगवान राम को अपना आराध्य मानते हुए उनके पद चिह्नों पर चल रहा है.
भगवान राम की समता मूलक अवधारणा को आगे बढ़ते हुए आज भी अयोध्या में राम मंदिर से सिर्फ एक किलोमीटर के दायरे में समाज की पिछड़ी जातियों के प्राचीन मंदिर भी हैं. जहां आज भी उस जाति से जुड़ी परंपरा के अनुसार ही भगवान और रामलला की सेवा पूजा की जाती है. अयोध्या में लगभग दर्जन भर से अधिक ऐसे प्राचीन मंदिर हैं जो विभिन्न जातियों से जुड़े हैं.
मंदिरों की स्थापना किस बात का प्रतीकः अयोध्या के प्रसिद्ध संत भी बताते हैं की इन मंदिरों की स्थापना इस बात का प्रतीक है कि रामराज में सभी बराबर थे. इसीलिए इन्हें अयोध्या में भगवान राम के मंदिर के बगल में स्थान मिला है. अयोध्या के रामकोट क्षेत्र में स्थित राम जन्मभूमि परिसर से सिर्फ एक किलोमीटर के दायरे में लगभग दर्जन भर ऐसे मंदिर है जो हिंदू धर्म की विभिन्न जातियों में यादव, कुर्मी, मौर्य, पासी, कुम्हार, रैदास, कनौजिया, कसौधन, गडरिया, बघेल,बरई समाज से जुड़े हुए हैं.
क्या है पौराणिक मान्यताः इन मंदिरों में विभिन्न आयोजन होते रहते हैं, जिसमें शामिल होने के लिए संबंधित बिरादरी के लोग आते हैं. जगतगुरु रामानंदाचार्य रामदिनेशाचार्य महाराज ने बताया कि पौराणिक मान्यता के अनुसार रामराज में भी ऐसी ही परिकल्पना थी. जब सर्व समाज को साथ लेकर चलने की अवधारणा को भगवान राम ने प्रचलित किया था. जिसकी नजीर आज भी अयोध्या में देखने को मिलती है.
अयोध्या में साकार हो रही सबका साथ सबका विकास की परिकल्पनाः राम जन्मभूमि से 1 किलोमीटर की दूरी पर स्थित टेढ़ी बाजार चौराहे पर ही यादव, मौर्य, निषाद, खटीक, पाल, बघेल, माझी समाज के मंदिर हैं. जिसमें रोजाना इन समाज के प्रवर्तकों के साथ-साथ भगवान राम लला की सेवा पूजा की जाती है. इस तरह से अयोध्या में सबका साथ सबका विकास की परिकल्पना साकार होती दिखाई देती है.
सनातन धर्म से जुड़ा हर व्यक्ति हिंदूः धर्मनगरी अयोध्या में स्थित विभिन्न बिरादरी के मंदिरों पर जगतगुरु परमहंस आचार्य का कहना है कि भले ही उद्यान में विभिन्न प्रजातियों के पुष्प हो. लेकिन, उनकी प्रकृति पुष्प की ही है. इसी प्रकार से सनातन धर्म से जुड़ा हर व्यक्ति हिंदू है. भले वह किसी जाति और बिरादरी से जुड़ा हो. प्राचीन काल से जो व्यवस्था चली आ रही है इस व्यवस्था का पालन आज भी अयोध्या में हो रहा है.
सनातन धर्म में मानव से मानव में फर्क नहीं किया गयाः पंचायती व्यवस्था के अनुसार अपनी स्वेक्षा अपनी प्रसन्नता से विभिन्न जातियों ने अयोध्या में मंदिर बनवाए हैं. जहां पर वह ठाकुर जी की सेवा पूजा करते हैं. यह हमारी परंपरा में है. हालांकि पौराणिक काल से ही कभी सनातन धर्म में मानव से मानव में फर्क नहीं किया गया है. लेकिन, आज की व्यवस्था में जातियों में बांटकर समाज का वर्गीकरण हुआ है. फिर भी अनेकता में एकता होते हुए हम सभी सनातनी के अनुयाई है. अयोध्या में इसकी सुंदर तस्वीर दिखाई देती है.