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गैस की महंगाई से त्रस्त जनता, चूल्हा बना सहारा

गैस सिलेंडर के दामों में लगातार हो बढ़ोत्तरी का असर अब आम लोगों के रसोई पर दिखने लगा है. गांव की महिलाओं ने सिलेंडर को किनारे कर फिर से लकड़ी के चूल्हे का उपयोग करना शुरू कर दिया है.

गैस सिलेंडर के दाम में बढ़ोत्तरी
गैस सिलेंडर के दाम में बढ़ोत्तरी
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Published : Mar 1, 2021, 10:29 AM IST

अंबेडकर नगर: गैस सिलेंडर के दामों में लगातार हो बढ़ोत्तरी का असर अब आम लोगों के रसोई पर दिखने लगा है. गैस की महंगाई और पैसे के अभाव में लोगों ने गैस सिलेंडर का उपयोग कम कर दिया है. गांव की महिलाओं ने सिलेंडर को किनारे कर फिर से लकड़ी के चूल्हे का उपयोग करना शुरू कर दिया है. गैस के दामों में हो रही बढ़ोत्तरी से उज्वला के लाभार्थियों ने सिलेंडर भराना ही कम कर दिया है. सरकार विकास और गरीबों के मदद का कितना भी दावा करे, लेकिन जमीनी हकीकत सरकार के दावे को खोखला साबित कर रही है.

लोगों ने एक बार फिर चूल्हे का सहारा लेना शुरू कर दिया है
सरकार ने उज्वला योजना के तहत के गरीब महिलाओं को मुफ्त में गैस सिलेंडर दे कर उनकी जिंदगी में एक नई चमक बिखेरी थी, लेकिन गैस के दामों में हो रही लगातार वृद्धि ने इस चमक पर काला पर्दा डाल दिया है, एक माह के अंदर ही गैस का दाम तकरीबन 100 प्रति सिलेंडर बढ़ गया है और आज गैस सिलेंडर 867 रुपये में मिल रहा है. हलांकि कुछ कंपनियों के दाम इस रेट से दस पांच रुपये कम हैं तो कुछ के ज्यादा भी हैं. वैसे तो गैस के दामों का असर हर उपभोक्ता पर पड़ा है वो चाहे शहरी हो या ग्रामीण, लेकिन शहरी उपभोक्ता की मजबूरी है कि वो गैस भरायें. दाम चाहे जितना हो क्योंकि बिना गैस के वो खाना कैसे बनाएगा, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़े हुए दामों का असर दिख रहा है. लोगों ने एक बार फिर चूल्हे का सहारा लेना शुरू कर दिया है.महंगाई की मार से त्रस्त उपभोक्ता माधुरी देवी, संगीता, विमला, अनीता देवी और प्रभुदेई का कहना है कि "सरकार ने गैस तो दे दिया, लेकिन रोज-रोज गैस के दाम बढ़ा रही है, जिससे सिलेंडर भराना मुश्किल हो गया है, इस महंगाई में बच्चों को जिलाना मुश्किल है तो गैस कहां से भरायें रोजगार तो कोई मिल नही रहा है. हम लोग पत्तियां बटोर कर लाते हैं तब खाना बनाते हैं, सरकार ने गरीबों को मारने के लिए गैस दिया है?"

अंबेडकर नगर: गैस सिलेंडर के दामों में लगातार हो बढ़ोत्तरी का असर अब आम लोगों के रसोई पर दिखने लगा है. गैस की महंगाई और पैसे के अभाव में लोगों ने गैस सिलेंडर का उपयोग कम कर दिया है. गांव की महिलाओं ने सिलेंडर को किनारे कर फिर से लकड़ी के चूल्हे का उपयोग करना शुरू कर दिया है. गैस के दामों में हो रही बढ़ोत्तरी से उज्वला के लाभार्थियों ने सिलेंडर भराना ही कम कर दिया है. सरकार विकास और गरीबों के मदद का कितना भी दावा करे, लेकिन जमीनी हकीकत सरकार के दावे को खोखला साबित कर रही है.

लोगों ने एक बार फिर चूल्हे का सहारा लेना शुरू कर दिया है
सरकार ने उज्वला योजना के तहत के गरीब महिलाओं को मुफ्त में गैस सिलेंडर दे कर उनकी जिंदगी में एक नई चमक बिखेरी थी, लेकिन गैस के दामों में हो रही लगातार वृद्धि ने इस चमक पर काला पर्दा डाल दिया है, एक माह के अंदर ही गैस का दाम तकरीबन 100 प्रति सिलेंडर बढ़ गया है और आज गैस सिलेंडर 867 रुपये में मिल रहा है. हलांकि कुछ कंपनियों के दाम इस रेट से दस पांच रुपये कम हैं तो कुछ के ज्यादा भी हैं. वैसे तो गैस के दामों का असर हर उपभोक्ता पर पड़ा है वो चाहे शहरी हो या ग्रामीण, लेकिन शहरी उपभोक्ता की मजबूरी है कि वो गैस भरायें. दाम चाहे जितना हो क्योंकि बिना गैस के वो खाना कैसे बनाएगा, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़े हुए दामों का असर दिख रहा है. लोगों ने एक बार फिर चूल्हे का सहारा लेना शुरू कर दिया है.महंगाई की मार से त्रस्त उपभोक्ता माधुरी देवी, संगीता, विमला, अनीता देवी और प्रभुदेई का कहना है कि "सरकार ने गैस तो दे दिया, लेकिन रोज-रोज गैस के दाम बढ़ा रही है, जिससे सिलेंडर भराना मुश्किल हो गया है, इस महंगाई में बच्चों को जिलाना मुश्किल है तो गैस कहां से भरायें रोजगार तो कोई मिल नही रहा है. हम लोग पत्तियां बटोर कर लाते हैं तब खाना बनाते हैं, सरकार ने गरीबों को मारने के लिए गैस दिया है?"
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