अंबेडकरनगर: जिले में चिलचिलाती धूप और उमस भरे मौसम में मेहनत कर दूसरों का पेट भरने वाले अन्नदाताओं पर दोहरी मार पड़ी हैं. बढ़ती महंगाई जहां किसानों के लिए मुसीबत बनती जा रही है, वहीं अब मौसम का कहर भी किसानों पर टूट पड़ा है. हफ्ते भर से लगातार हो रही बारिश ने किसानों को भारी नुकसान पहुंचाया है. मौसम की मार सबसे ज्यादा मेंथा किसानों पर पड़ी है, जिसकी वजह से किसानों की कमर टूट गई है. जिस खेती से उन्हें मुनाफा होता था वहीं आज मौसम की मार के कारण उनके लिए परेशानी का सबब बन गयी है.
किसानों की फसल बर्बाद
मेंथा की खेती किसानों के लिए नकद फसल मानी जाती है और जिले में मेंथा की खेती भी बड़े पैमाने पर होती है. अमूमन तीन माह में मेंथा की फसल तैयार हो जाती है और बाजार का भाव ठीक रहने पर किसानों को अच्छा मुनाफा होता था. मसूर, सरसों और गेंहू की फसल काटने के बाद अक्सर किसानों की जमीन जुलाई माह तक खाली रहती है, जिसमें किसान मेंथा की खेती करते हैं. इस बार कोरोना के कारण लॉकडाउन ने किसानों के सामने चुनौती खड़ी कर दी है. अक्सर किसान सरसों, गेंहू आदि बेच कर मेंथा की खेती करते हैं, लेकिन इस बार उनकी फसल की सही कीमत ही नहीं मिल पायी.
बरिश ने किसानों की तोड़ी कमर
मेंथा की फसल तैयार होने पर उसे बेचकर किसान अपना काम चलाते थे. लेकिन अब मौसम ने अधिकांश किसानों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया हैं. इस बार पैदावार घट गई है. पहले जहां किसान एक बीघा मेंथा में 35 से 40 लीटर तेल निकालते थे, वहीं अब एक बीघे में 10 से 15 लीटर तेल ही निकल पाता है. पहले जहां किसान एक बीघे में 40 से 45 हजार रुपए कमाते थे वहीं मौसम की मार के कारण महज 10 से 12 हजार रुपये ही कमा पाते हैं.
किसानों का कहना है कि इस बार के मौसम ने मेंथा की खेती को बर्बाद कर दिया है. अधिक बारिश होने की वजह से खेतों में पानी भर गया, जिससे फसल सड़ रही है. किसी तरह मेंथा की फसल को काट कर पेराई की जा रही है, तो उसमें तेल बहुत ही कम निकल रहा है. पहले जहां एक टंकी में 15 से 20 लीटर तक तेल निकल रहा था, वहीं अब एक टंकी में 2 से 4 लीटर तेल ही निकल रहा है.