प्रयागराज : देश में ऐसे बहुत से लोग हैं, जिनके हाथ नॉर्मल नहीं हैं तो कोई पैर से ठीक से चल नहीं सकता तो कोई आंखों से देश नहीं सकता है लेकिन इनमें से बहुत लोग ऐसे हैं, जो अपनी कमजोरी श्राप न समझकर जिंदगी से लड़कर नया कीर्तिमान अपने नाम किया है. ऐसी ही बुलंदी की इबारत लिखने को तैयार हैं इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एमएड की पढ़ाई कर रहे तौशीफ आलम, जो हाथों से पूरी तरह से दिव्यांग हैं.
तौशीफ आलम बताते हैं कि जब मुझे लगा कि मैं कुछ नहीं कर सकता तो उस मेरी मां ने मुझे मोटिवेट किया और देश उन शख्सियतों की कहानी बताई, जिन्होंने हैंडीकैप होने के बावजूद देश का नाम रोशन किया. ईटीवी भारत से तौशीफ आलम ने बातचीत कर अपने संघर्ष और जज्बे को शेयर किया.
बिहार के रहने वाले और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एमएड के छात्र तौशीफ आलम का कहना है कि जब मैं 10 साल का हुआ तो पहली बार स्कूल गया. पहले तो बहुत अजीब लगा. मैं यही सोचता था कि मेरे दोनों हाथ नॉर्मल नहीं है कि मैं कैसे लिखूंगा? लेकिन माता-पिता के मोटीवेशन ने मुझे टूटने नहीं दिया. पहले मैंने पैर से लिखना शुरू किया, फिर बाद में हाथ से लिखने लगा. हम तीन भाई और एक बहन हैं. परिवार में सिर्फ मैं ही दोनों हाथ से हैंडीकैप हूं. इसलिए मैंने उनको हाथ से लिखते देखकर लिखना शुरू किया. मेरे यहां तक पहुंचने में घर वालों ने बहुत साथ दिया है. तौशीफ आलम ने बताया कि पढ़ाई, लिखाई और शेविंग से लेकर कपड़े धुलने का काम भी करता हूं.
आलम अपने जैसे लोगों को संदेश देना चाहते हैं कि वे लोग अपनी कमजोरी को ताकत बना कर चलें तो सफलता उनकी कदम चूमेगी. दिव्यांगताकोई श्राप नहीं है. बस नजरिया बदल कर आगे बढ़ें और देश की मुख्य धारा जुड़कर आगे बढ़ाने का काम करें.