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चींटी की कहानी से प्रेरित होकर कीर्तिमान रचने को तैयार हैं दिव्यांग तौशीफ आलम

बिहार के रहने वाले और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एमएड के छात्र तौशीफ आलम का कहना है कि दिव्यांग लोग अपनी कमजोरी को ताकत बना कर चलें तो सफलता उनकी कदम चूमेगी. दिव्यांगता कोई श्राप नहीं है.

दिव्यांग तौशीफ आलम
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Published : Mar 14, 2019, 2:27 PM IST

प्रयागराज : देश में ऐसे बहुत से लोग हैं, जिनके हाथ नॉर्मल नहीं हैं तो कोई पैर से ठीक से चल नहीं सकता तो कोई आंखों से देश नहीं सकता है लेकिन इनमें से बहुत लोग ऐसे हैं, जो अपनी कमजोरी श्राप न समझकर जिंदगी से लड़कर नया कीर्तिमान अपने नाम किया है. ऐसी ही बुलंदी की इबारत लिखने को तैयार हैं इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एमएड की पढ़ाई कर रहे तौशीफ आलम, जो हाथों से पूरी तरह से दिव्यांग हैं.

तौशीफ आलम का संघर्ष समाज को प्रेरित कर रहा है

तौशीफ आलम बताते हैं कि जब मुझे लगा कि मैं कुछ नहीं कर सकता तो उस मेरी मां ने मुझे मोटिवेट किया और देश उन शख्सियतों की कहानी बताई, जिन्होंने हैंडीकैप होने के बावजूद देश का नाम रोशन किया. ईटीवी भारत से तौशीफ आलम ने बातचीत कर अपने संघर्ष और जज्बे को शेयर किया.

बिहार के रहने वाले और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एमएड के छात्र तौशीफ आलम का कहना है कि जब मैं 10 साल का हुआ तो पहली बार स्कूल गया. पहले तो बहुत अजीब लगा. मैं यही सोचता था कि मेरे दोनों हाथ नॉर्मल नहीं है कि मैं कैसे लिखूंगा? लेकिन माता-पिता के मोटीवेशन ने मुझे टूटने नहीं दिया. पहले मैंने पैर से लिखना शुरू किया, फिर बाद में हाथ से लिखने लगा. हम तीन भाई और एक बहन हैं. परिवार में सिर्फ मैं ही दोनों हाथ से हैंडीकैप हूं. इसलिए मैंने उनको हाथ से लिखते देखकर लिखना शुरू किया. मेरे यहां तक पहुंचने में घर वालों ने बहुत साथ दिया है. तौशीफ आलम ने बताया कि पढ़ाई, लिखाई और शेविंग से लेकर कपड़े धुलने का काम भी करता हूं.

आलम अपने जैसे लोगों को संदेश देना चाहते हैं कि वे लोग अपनी कमजोरी को ताकत बना कर चलें तो सफलता उनकी कदम चूमेगी. दिव्यांगताकोई श्राप नहीं है. बस नजरिया बदल कर आगे बढ़ें और देश की मुख्य धारा जुड़कर आगे बढ़ाने का काम करें.

प्रयागराज : देश में ऐसे बहुत से लोग हैं, जिनके हाथ नॉर्मल नहीं हैं तो कोई पैर से ठीक से चल नहीं सकता तो कोई आंखों से देश नहीं सकता है लेकिन इनमें से बहुत लोग ऐसे हैं, जो अपनी कमजोरी श्राप न समझकर जिंदगी से लड़कर नया कीर्तिमान अपने नाम किया है. ऐसी ही बुलंदी की इबारत लिखने को तैयार हैं इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एमएड की पढ़ाई कर रहे तौशीफ आलम, जो हाथों से पूरी तरह से दिव्यांग हैं.

तौशीफ आलम का संघर्ष समाज को प्रेरित कर रहा है

तौशीफ आलम बताते हैं कि जब मुझे लगा कि मैं कुछ नहीं कर सकता तो उस मेरी मां ने मुझे मोटिवेट किया और देश उन शख्सियतों की कहानी बताई, जिन्होंने हैंडीकैप होने के बावजूद देश का नाम रोशन किया. ईटीवी भारत से तौशीफ आलम ने बातचीत कर अपने संघर्ष और जज्बे को शेयर किया.

बिहार के रहने वाले और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एमएड के छात्र तौशीफ आलम का कहना है कि जब मैं 10 साल का हुआ तो पहली बार स्कूल गया. पहले तो बहुत अजीब लगा. मैं यही सोचता था कि मेरे दोनों हाथ नॉर्मल नहीं है कि मैं कैसे लिखूंगा? लेकिन माता-पिता के मोटीवेशन ने मुझे टूटने नहीं दिया. पहले मैंने पैर से लिखना शुरू किया, फिर बाद में हाथ से लिखने लगा. हम तीन भाई और एक बहन हैं. परिवार में सिर्फ मैं ही दोनों हाथ से हैंडीकैप हूं. इसलिए मैंने उनको हाथ से लिखते देखकर लिखना शुरू किया. मेरे यहां तक पहुंचने में घर वालों ने बहुत साथ दिया है. तौशीफ आलम ने बताया कि पढ़ाई, लिखाई और शेविंग से लेकर कपड़े धुलने का काम भी करता हूं.

आलम अपने जैसे लोगों को संदेश देना चाहते हैं कि वे लोग अपनी कमजोरी को ताकत बना कर चलें तो सफलता उनकी कदम चूमेगी. दिव्यांगताकोई श्राप नहीं है. बस नजरिया बदल कर आगे बढ़ें और देश की मुख्य धारा जुड़कर आगे बढ़ाने का काम करें.

Intro: मां ने किया मोटिवेट इसलिए दोनों हाथ से हैंडीकैप होने के बाद भी नहीं छोड़ी पढ़ाई, अब कर रहा हूँ एमएड

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प्रयागराज: देश में ऐसे बहुत से लोग हैं जिनके हाथ नॉर्मल नहीं हैं तो कोई पैर से ठीक से चल नहीं सकता तो कोई आंखों से देश नहीं सकता है. लेकिन इनमें से बहुत लोग ऐसे हैं जो अपनी कमजोरी श्राप न समझकर जिंदगी से लड़कर कई कृर्तिमान अपने नाम किया है. जब मुझे लगा कि मैं कुछ नहीं कर सकता तो उस मेरी मां ने मिझे मोटिवेट किया और देश उन सख्सियत की कहानी भी बताई जो हैंडीकैप होने के बावजूद देश का नाम रोशन किया. यह कहना है दोनों हाथों से हैंडीकैप होने के बावजूद इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एमएड की पढ़ाई कर रहे तौशिफ आलम का. ईटीवी से खास बातचीत में तौशिफ आलम ने अपने लाइफ से जुड़े संघर्ष के बारे दिलचस्प बातें शेयर की.


Body:हिम्मत नहीं हारी, इसलिए आज यहाँ हूं

बिहार के रहने वाले और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एमएड के छात्र तौशिफ आलम का कहना है. जब मैं 10 साल का हुया तो पहली बार स्कूल गया. पहले तो बहुत अजीब लगा और मैं यही सोचता था कि मेरे दोनों हाथ नॉर्मल नहीं है मैं कैसे लिखूंगा. लेकिन माता-पिता के मोटीवेशन ने मुझे टूटने नहीं दिया. पहले मैं पैर से लिखना शुरू किया, फिर बाद में हाथ से लिखने लगा.
हम तीन भाई और एक बहन हैं. परिवार में सिर्फ मैं ही दोनों हाथ से हैंडीकैप हूँ. इसलिए मैं उनको हाथ से लिखते देखकर लिखना शुरू किया. मेरे यहाँ तक पहुंचने में घर वालों ने बहुत साथ दिया है.


Conclusion:इसी हाथ से करता हूँ पूरा काम

तौशिफ आलम ने बताया कि मेरे दोनों हाथ है लेकिन वह नॉर्मल हाथ से बहुत छोटे हैं, साथ ही साथ मेरे साथ सिर्फ तीन उंगलियां हैं. एक साथ मे एक है और दूसरे हाथ मे दो हैं. लेकिन मैं अपने ऐसी हाथ से सारा काम कर लेता हूँ. पढ़ाई, लिखाई, सेविंग से लेकर कपड़े धुलने का काम भी इसी हाथ से करता हूँ. एक बार मैं पैर से लिख रहा था, तभी मेरी माँ मुझे पैर से लिखते हुए देखकर भड़क गई और एक थाप्पड़ लगाई और उन्होंने कहा कि बेटा तुम इसी हाथ से सारे काम कर सकते हो. तभी मैं अपना सारा काम इसी हाथ से करता हूँ.

आलम का कहना है जो लोग मेरी तरह हैंडीकैप या फिर वह देख नहीं सकते हैं मैं उनसे यही कहना चाहूंगी कि वे लोग अपनी कमजोरी को ताकत बना कर चले, तो सफलता उनकी कदम चूमेगी. इसलिए विकलांगता कोई श्राप नहीं है, बस नजरिया बदल कर आगे बढ़े और देश में मुख्य धारा जुड़कर आगे बढ़ाने का काम करें.

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