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कागजों में ही हुआ है अलीगढ़ के इस गांव का विकास - पंचायत चुनाव 2021

उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव होने वाले हैं. सरकार ने पंचायत चुनाव को लेकर सारी तैयारियां पूरी कर ली हैं. ईटीवी भारत की टीम ने अलीगढ़ जिले के भकरौला गांव में हुए विकास कार्यों की पड़ताल की. सुनिए क्या कहते हैं भकरौला गांव के मतदाता.

कागजों में ही हुआ है अलीगढ़ के इस गांव का विकास
कागजों में ही हुआ है अलीगढ़ के इस गांव का विकास
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Published : Jan 23, 2021, 7:06 AM IST

अलीगढ़: जिले के लोधा विकासखंड के भकरौला गांव में विकास की तस्वीर धुंधली हैं. गांव के लोग आज भी बदतर जीवन जीने को मजबूर है. यहां की बदहाली की कहानी कोई अधिकारी या नेता सुनने को तैयार नहीं है. अलीगढ़ शहर से 15 किलोमीटर दूर भकरौला गांव मथुरा रोड के सहारे बसा है. गांव की आबादी करीब 2000 से अधिक है. ईटीवी भारत इस गांव की ग्राउंड रिपोर्ट दिखा रहा है. जहां गांव के लोगों ने विकास कार्य नहीं कराए जाने पर ग्राम प्रधान की हकीकत बयां की है.

अलीगढ़ के इस गांव में हुए विकास कार्यों की ग्राउंड रिपोर्ट
गंदगी के बीच रहने को मजबूर
सरकार स्वच्छ भारत मिशन पर पानी की तरह पैसा बहा रही है. लेकिन भकरोला गांव में गंदगी के ढेर लगे हैं. इसी गंदगी के बीच ग्रामवासी रहने को मजबूर हैं. साफ सफाई पर ग्राम प्रधान का कोई ध्यान नहीं है. नालियां टूटी हुई हैं तो कहीं कच्ची नालियों से पानी रास्तों पर फैल रहा है. गांव के अंदर कुछ जगह तो पक्की सड़क भी नहीं बनी है. बुनियादी जरूरत से गांव के लोग वंचित हैं. इतना ही नहीं सरकार शौचालय के लिए 12 हजार रुपये अनुदान देती है, जिससे कि ग्रामीण घर के बाहर शौचालय बना सकें. लेकिन इसमें भी ग्राम प्रधान के काम में भ्रष्टाचार की बू आ रही है.
शौचालय अनुदान रुपया लेने का आरोप
गांव में सफाई कर्मी केवल औपचारिकता पूरी करते हैं. जो शौचालय प्रधान ने बनवाए वह एक साल भी नहीं चल पाए. ग्रामीणों के खाते में शौचालय बनवाने के लिए दिए जाने वाले 12 हजार रुपये प्रधान वासुदेव सिंह पर लेने के आरोप हैं. वहीं गांव के बाहर 6 लाख रुपये में बनवाई गोशाला में मवेशी तो नहीं दिखे. लेकिन किसानों की फसलों को चौपट करते हुए गोवंश खेतों में जरूर दिख जाएंगे.
कच्चे घरों में रहने को मजबूर
गांव में गरीब कच्चे घरों में रहने को मजबूर हैं. हालांकि सरकार आवास के लिए मदद देती है. लेकिन गरीब व्यक्ति टपकते घर में रहने को मजबूर हैं. गांव के रहने वाले राजेश बताते हैं कि ग्राम प्रधान कहते हैं कि यहां के गरीब बाल्मीकि समाज के लोग मालदार है. गरीब लोगों को आवास की जरूरत है, लेकिन कोई मदद नहीं मिल रही है. भकरौला गांव में महिलाएं स्वयं नालियों की सफाई करती दिखीं. गांव में कच्चे मार्ग हैं और बारिश होने पर जलभराव हो जाता है, जिससे लोग गिरकर चोटिल होते हैं. माला देवी गांव में सफाई करते हुए दिखीं. उन्होंने बताया कि हम लोग चाहते हैं कि सड़क बनें और पक्की नालियां बन जाएं, जिससे लोगों को सहूलियत हो. गांव में कई सरकारी हैंडपंप खराब हैं, जिसके चलते लोग स्वयं अपने घरों में नल लगवा रहे हैं.
मनरेगा में नहीं मिला काम
सरकार की मनरेगा योजना गांव में रहने वाले लोगों को रोजगार देती है, जिससे मजदूर का घर परिवार चलता है. लेकिन मनरेगा योजना के तहत गांव के युवाओं और महिलाओं के लिए कोई काम नहीं है. प्रधान अपनी मनमानी करते हैं. इलाके के जितेंद्र कहते हैं कि मनरेगा के तहत कोई काम नहीं मिलता है. प्रधान कोई काम नहीं करवाते हैं. वृद्धावस्था और विधवा पेंशन योजना भी नहीं दी जाती. स्थानीय महिला लज्जावती ने बताया कि अपने स्तर से ही सब कुछ करना पड़ता है.
सरकारी योजना का किसानों को नहीं लाभ
सरकार किसानों के लिए बड़ी-बड़ी योजनाएं लाती है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो. उनकी खेती और फसल को फायदा मिले. लेकिन भकरोला के किसानों ने बताया कि न तो कोई मीटिंग की जाती है और भूमि सुधार के लिए किसी को कोई फायदा नहीं मिला. किसान स्वयं अपने ट्यूबेल से सिंचाई करते हैं. वहीं सरकारी ट्यूबवेल भी खराब है. गांव के चेतन ने बताया कि प्रधान केवल अपनी जेब भरना जानते हैं और गांव का विकास नहीं कराया. गांव के लोगों ने प्रधान की शिकायत पंचायती राज विभाग में की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई.
कागजों में हो गए विकास कार्य
गांव के विकास कार्यों की कार्य योजना की जिम्मेदारी ग्राम प्रधान की होती है. लेकिन भकरौला गांव में प्रधान पर विकास कार्य नहीं कराने का आरोप है. भकरौला गांव विकास की दौड़ में पीछे रह गया. ऐसा नहीं है कि गांव के विकास के लिए फंड नहीं आया. करोड़ों रुपये गांव के विकास के लिए आए. लेकिन सिर्फ कागजों में ही विकास होता रहा. वहीं धरातल पर समस्याओं का अंबार है. गांव के लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित है. गरीब झोपड़ी में गुजर-बसर कर रहा है. गांव में पक्की सड़कें नहीं बनी हैं. सरकारी हैंडपंप खराब है. मनरेगा में भी काम नहीं मिला.

अलीगढ़: जिले के लोधा विकासखंड के भकरौला गांव में विकास की तस्वीर धुंधली हैं. गांव के लोग आज भी बदतर जीवन जीने को मजबूर है. यहां की बदहाली की कहानी कोई अधिकारी या नेता सुनने को तैयार नहीं है. अलीगढ़ शहर से 15 किलोमीटर दूर भकरौला गांव मथुरा रोड के सहारे बसा है. गांव की आबादी करीब 2000 से अधिक है. ईटीवी भारत इस गांव की ग्राउंड रिपोर्ट दिखा रहा है. जहां गांव के लोगों ने विकास कार्य नहीं कराए जाने पर ग्राम प्रधान की हकीकत बयां की है.

अलीगढ़ के इस गांव में हुए विकास कार्यों की ग्राउंड रिपोर्ट
गंदगी के बीच रहने को मजबूर
सरकार स्वच्छ भारत मिशन पर पानी की तरह पैसा बहा रही है. लेकिन भकरोला गांव में गंदगी के ढेर लगे हैं. इसी गंदगी के बीच ग्रामवासी रहने को मजबूर हैं. साफ सफाई पर ग्राम प्रधान का कोई ध्यान नहीं है. नालियां टूटी हुई हैं तो कहीं कच्ची नालियों से पानी रास्तों पर फैल रहा है. गांव के अंदर कुछ जगह तो पक्की सड़क भी नहीं बनी है. बुनियादी जरूरत से गांव के लोग वंचित हैं. इतना ही नहीं सरकार शौचालय के लिए 12 हजार रुपये अनुदान देती है, जिससे कि ग्रामीण घर के बाहर शौचालय बना सकें. लेकिन इसमें भी ग्राम प्रधान के काम में भ्रष्टाचार की बू आ रही है.
शौचालय अनुदान रुपया लेने का आरोप
गांव में सफाई कर्मी केवल औपचारिकता पूरी करते हैं. जो शौचालय प्रधान ने बनवाए वह एक साल भी नहीं चल पाए. ग्रामीणों के खाते में शौचालय बनवाने के लिए दिए जाने वाले 12 हजार रुपये प्रधान वासुदेव सिंह पर लेने के आरोप हैं. वहीं गांव के बाहर 6 लाख रुपये में बनवाई गोशाला में मवेशी तो नहीं दिखे. लेकिन किसानों की फसलों को चौपट करते हुए गोवंश खेतों में जरूर दिख जाएंगे.
कच्चे घरों में रहने को मजबूर
गांव में गरीब कच्चे घरों में रहने को मजबूर हैं. हालांकि सरकार आवास के लिए मदद देती है. लेकिन गरीब व्यक्ति टपकते घर में रहने को मजबूर हैं. गांव के रहने वाले राजेश बताते हैं कि ग्राम प्रधान कहते हैं कि यहां के गरीब बाल्मीकि समाज के लोग मालदार है. गरीब लोगों को आवास की जरूरत है, लेकिन कोई मदद नहीं मिल रही है. भकरौला गांव में महिलाएं स्वयं नालियों की सफाई करती दिखीं. गांव में कच्चे मार्ग हैं और बारिश होने पर जलभराव हो जाता है, जिससे लोग गिरकर चोटिल होते हैं. माला देवी गांव में सफाई करते हुए दिखीं. उन्होंने बताया कि हम लोग चाहते हैं कि सड़क बनें और पक्की नालियां बन जाएं, जिससे लोगों को सहूलियत हो. गांव में कई सरकारी हैंडपंप खराब हैं, जिसके चलते लोग स्वयं अपने घरों में नल लगवा रहे हैं.
मनरेगा में नहीं मिला काम
सरकार की मनरेगा योजना गांव में रहने वाले लोगों को रोजगार देती है, जिससे मजदूर का घर परिवार चलता है. लेकिन मनरेगा योजना के तहत गांव के युवाओं और महिलाओं के लिए कोई काम नहीं है. प्रधान अपनी मनमानी करते हैं. इलाके के जितेंद्र कहते हैं कि मनरेगा के तहत कोई काम नहीं मिलता है. प्रधान कोई काम नहीं करवाते हैं. वृद्धावस्था और विधवा पेंशन योजना भी नहीं दी जाती. स्थानीय महिला लज्जावती ने बताया कि अपने स्तर से ही सब कुछ करना पड़ता है.
सरकारी योजना का किसानों को नहीं लाभ
सरकार किसानों के लिए बड़ी-बड़ी योजनाएं लाती है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो. उनकी खेती और फसल को फायदा मिले. लेकिन भकरोला के किसानों ने बताया कि न तो कोई मीटिंग की जाती है और भूमि सुधार के लिए किसी को कोई फायदा नहीं मिला. किसान स्वयं अपने ट्यूबेल से सिंचाई करते हैं. वहीं सरकारी ट्यूबवेल भी खराब है. गांव के चेतन ने बताया कि प्रधान केवल अपनी जेब भरना जानते हैं और गांव का विकास नहीं कराया. गांव के लोगों ने प्रधान की शिकायत पंचायती राज विभाग में की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई.
कागजों में हो गए विकास कार्य
गांव के विकास कार्यों की कार्य योजना की जिम्मेदारी ग्राम प्रधान की होती है. लेकिन भकरौला गांव में प्रधान पर विकास कार्य नहीं कराने का आरोप है. भकरौला गांव विकास की दौड़ में पीछे रह गया. ऐसा नहीं है कि गांव के विकास के लिए फंड नहीं आया. करोड़ों रुपये गांव के विकास के लिए आए. लेकिन सिर्फ कागजों में ही विकास होता रहा. वहीं धरातल पर समस्याओं का अंबार है. गांव के लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित है. गरीब झोपड़ी में गुजर-बसर कर रहा है. गांव में पक्की सड़कें नहीं बनी हैं. सरकारी हैंडपंप खराब है. मनरेगा में भी काम नहीं मिला.
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