अलीगढ़ : सर सैयद अहमद खान के आदर्श आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं. शिक्षा और सोशल रिफॉर्म के क्षेत्र में उनके काम को आगे बढ़ाया जा रहा है. उन्होंने समाज को एक रोशनी दिखाई थी. इसलिए सर सैयद अहमद खान की पैदाइश और पुण्यतिथि दोनों ही बड़े श्रद्धा से मनाई जाती है. सर सैय्यद ने सन् 1875 में एक छोटे से मदरसे की नींव रखी थी. जो आज सेंट्रल यूनिवर्सिटी का रूप ले चुकी है. जहां 25 हजार से ज्यादा छात्र शिक्षा ले रहे हैं. यहां इंजीनियरिंग, मेडिकल और मैनेजमेंट कालेज हैं, जिसमें पढ़े छात्र पूरी दुनिया के 104 मुल्क में देश का नाम रोशन कर रहे हैं. 19वीं शताब्दी के पब्लिक इंटेलेक्चुअल में सर सैयद का नाम अग्रणी रूप में लिया जाता है. मुसलमानों में पहले इंटेलेक्चुअल में जाने जाते हैं. उनकी पुण्यतिथि पर आज उन्हें याद किया जा रहा है.
उनके आवास को बना दिया गया संग्रहालय
सर सैयद अहमद खान ने अपने जीवन के आखरी पल अपने शिक्षण संस्थान में बने आवास में गुजारा था, जिसे आज सर सैयद हाउस के नाम से जाना जाता है. यहां पर सर सैयद द्वारा दैनिक जीवन में प्रयोग किए जाने वाले सामान संग्रहीत किए गए हैं. यहां मौजूद चीजें उनकी सादगी की गवाह हैं. उनकी इस्तेमाल की गई चीजों को संजोकर संग्रहालय बनाया गया है. उनके द्वारा इस्तेमाल की गई कुर्सी, टेबल, मेहमानों को बैठने के लिए सोफा, लकड़ी की छड़ी, घड़ी, उर्दू और अंग्रेजी में किए गए हस्ताक्षर आज भी सुरक्षित रखे गए हैं. वही सर सैयद अहमद खान की पुण्यतिथि के 100 वर्ष पूरे होने पर 1998 में भारत सरकार द्वारा उन पर जारी किया गया डाक टिकट भी मौजूद है. उनके दुर्लभ फोटो भी इस संग्रहालय में लोगों को देखने के लिए लगाए गए हैं.
राहत अबरार ने बताया कि जिस तरीके से एएमयू में रिसर्च होनी चाहिए. वह रिसर्च नहीं हो रही है. इंटरनेशनल स्टैंडर्ड के पब्लिकेशन नहीं आ पा रहे हैं. बहुत से डिपार्टमेंट में रिसर्च नहीं हो रही है. उन्होंने कहा कि हम सब सर सैयद को याद जरूर कर रहे हैं, लेकिन उनके बतायें मॉडर्न एजुकेशन को नहीं अपना पा रहे हैं.
तालीम के जरिये ही राजनीतिक शक्ति मिलेगी
सर सैयद अहमद खान पर मुस्लिम लीग जैसे संस्थानों को आगे बढ़ाने का आरोप लगता है. इस पर एएमयू के सहायक मेंबर इंचार्ज राहत अबरार कहते है कि सर सैयद अहमद खान की 27 मार्च 1897 में डेथ हो गई थी और मुस्लिम लीग की स्थापना 1906 में हुई थी. उन्होंने बताया कि सर सैयद अहमद खान के जेहन में द्वि राष्ट्रवाद सिद्धांत नहीं था. सर सैयद ने हिंदुस्तान के अंदर आजादी का ख्वाब देखा था. उन्होंने कहा था कि तालीम के जरिए ही राजनीतिक शक्ति पाई जा सकती है. उनका मानना था कि हिंदुस्तान के लोग अपनी सरकार बनाएं और पार्लियामेंट और असेंबली में पढ़े-लिखे भारतीय ज्यादा से ज्यादा पहुंचे. यह सर सैयद अहमद का ख्वाब था. वे चाहते थे कि शिक्षित वर्ग संसद में पहुंचे और आम जनता के लिये काम करें. लेकिन आज देश के पार्लियामेंट में अच्छे लोगों की कमी है. क्रिमिनल की तादाद बढ़ती जा रही है. वह चाहते थे कि पहले जनता में राजनीतिक जागरूकता आये और वह शिक्षा के जरिए ही आ सकती है. सर सैयद अहमद खान ने सभ्य समाज का सपना देखा था.