अलीगढ़ः दो बार विधायक रह चुके हाजी जमीर उल्लाह खान की घर वापसी पर त्योहारों ने पानी फेर दिया है. नवंबर के शुरुआत में पूर्व विधायक की समाजवादी पार्टी में शामिल होने वाले थे लेकिन इस बीच पड़ रहे त्योहारों से घर वापसी में ग्रहण लग गया. हाजी जमीर उल्लाह खान 13 साल तक समाजवादी पार्टी में रहने के बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में बगावत कर सपा प्रत्याशी को चुनाव हरवाया था. समाजवादी पार्टी छोड़ने के बाद निर्दलीय चुनाव लड़ा था. इसके बाद हाजी जमीर उल्लाह 'हाथी' पर सवार हो गए. वहीं, लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के पूर्व सांसद विजेंद्र सिंह के साथ दिल्ली जाकर 'हाथ' के साथ चले गये.
दीपावली बाद सपा में होंगे शामिल
पूर्व विधायक हाजी जमीर उल्ला ने बताया कि सपा सुप्रीमो से उनकी मुलाकात हुई है और अब दीपावली के बाद फिर मुलाकात होगी और फिर सपा में शामिल होंगे. उन्होंने कहा कि इस समय बदलाव की बयार बह रही है और फिर से लोग अखिलेश यादव के काम को याद कर रहे हैं. भाजपा प्रदेश में फेल हो चुकी है. उन्होंने कहा कि रोजगार से ही खुशहाली आती है.
बसपा में बिकता है टिकट
जमीर उल्ला ने कहा कि बहुजन समाज पार्टी में रहा हूं, लेकिन वहां कोई विचार नहीं है. केवल पैसे लेने का सिस्टम है. बसपा में काउंटर खुला है. पैसा जमा करिए और टिकट ले आइए. बसपा में जाटव भाइयों का वोट बिकता है. जनता की सेवा करने का कोई मतलब नहीं है. बीएसपी ज्वाइन करने के बाद महापौर के प्रत्याशी को जिताया और 22 पार्षद भी दिये लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. बीएसपी एक प्राइवेट फर्म है और हमें ऐसी जगह काम करना है. जहां समाज के गरीबों, किसानों, मजदूरों और नौजवानों की बात न होती है.
बिहार इलेक्शन का यूपी पर पड़ेगा असर
बिहार इलेक्शन का उत्तर प्रदेश पर पड़ने वाले असर पर पूर्व विधायक हाजी जमीर उल्ला खान ने कहा कि भाजपा के हारने और जीतने पर उत्तर प्रदेश और बंगाल के चुनाव पर असर पड़ेगा. उन्होंने कहा कि अगर भाजपा बिहार में हारती या जीतती है. तो जनता पर इसका असर पड़ेगा.
हाजी जमीरउल्ला 2014 में बने थे शहर अध्यक्ष
हाजी जमीर उल्ला समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य और पूर्व औद्योगिक विकास मंत्री ख्वाजा हलीम के संपर्क में आये तो 2004 में अलीगढ़ में पार्टी के शहर अध्यक्ष बन गये. 2006 के निकाय चुनाव में पार्टी से महापौर का टिकट मिला तो मजबूती से चुनाव लड़े. 2007 में अलीगढ़ शहर विधानसभा से समाजवादी पार्टी का टिकट मिला और जमीर उल्लाह विधानसभा पहुंच गए.
शिवपाल की पार्टी से नहीं लड़ा चुनाव
नेता प्रतिपक्ष शिवपाल सिंह यादव से मधुर संबंध बनाकर 2012 में कोल विधानसभा से समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े और फिर दोबारा विधानसभा पहुंचे. इस दौरान प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बन गये. लेकिन जमीर उल्लाह खान, शिवपाल यादव के खेमे में ही रहे. चाचा-भतीजे में चली अंतर्कलह के बाद शिवपाल यादव ने 2017 में अपनी पार्टी बनाई और शिवपाल ने पार्टी से चुनाव लड़ने को कहा.
निर्दलीय ताल ठोंकी
जमीर उल्लाह खान ने शिवपाल यादव की बात को दरकिनार करते हुए कोल विधानसभा से निर्दलीय ताल ठोक दी, हालांकि उनकी जमानत जप्त हो गई. लेकिन सपा के प्रत्याशी अज्जू इशहाक को भी चुनाव जीतने नहीं दिया. अलग-थलग पड़े जमीरउल्ला बसपा में हाथी पर सवार होकर महापौर का टिकट मांगा, लेकिन बहुजन समाज पार्टी ने मोहम्मद फुरकान को टिकट दे दिया. इस चुनाव में जोर शोर से हाजी जमीर उल्लाह ने मोहम्मद फुरकान को मुस्लिम वोटरों के जरिए जीत दिलाई और बसपा के 22 पार्षद को भी जीत दिलाई. बसपा से मोहभंग होने के बाद हाजी जमीर अलीगढ़ से कांग्रेस के पूर्व सांसद विजेंद्र सिंह के संपर्क में आए और दिल्ली पहुंचकर कांग्रेस के खेमे में चले गये. उत्तर प्रदेश के 2022 विधानसभा चुनाव को देखते हुए हाजी जमीर उल्लाह खान अब घर वापसी का मूड बनाया है. समाजवादी पार्टी में वापसी का दिन और तारीख निश्चित हुआ था. सपा सुप्रीमो से भी मुलाकात हो गई. लेकिन इस बीच त्यौहार ने वापसी पर ग्रहण लगा दिया. चर्चा यह भी है कि सपा में कुछ नेता हाजी जमीर उल्लाह की वापसी नहीं चाहते हैं.