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इस फिल्म को बनाने के बाद कर्ज में डूब गए थे भारत भूषण - अभिनेता भारत भूषण का जीवन

बुलंदियों को छूने वाले हिंदी फिल्म अभिनेता भारत भूषण का आज ही के दिन (27 जनवरी) को निधन हुआ था. यूपी के अलीगढ़ जिले से भारत भूषण का करीबी नाता था. कई हिट फिल्में देने के बाद भारत भूषण बहुत फेमस हो गए तो उन्होंने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कदम रखा, लेकिन निर्माता के रूप उनकी एक भी फिल्म सफल नहीं हुई और वे कर्ज में डूबते चले गए. जानिए भारत भूषण के जीवन से जुड़ीं ऐसी ही कुछ खास बातें-

अभिनेता भारत भूषण
अभिनेता भारत भूषण
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Published : Jan 27, 2021, 7:12 PM IST

Updated : Jan 27, 2021, 8:01 PM IST

अलीगढ़ : ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों के दौर में बुलंदियों को छूने वाले अभिनेता भारत भूषण का आज ही के दिन (27 जनवरी) को निधन हुआ था. यूपी के अलीगढ़ जिले से भारत भूषण का करीबी नाता था. भारत भूषण का जन्म अलीगढ़ में 14 जून 1920 में हुआ था. आज ही के दिन 27 जनवरी 1992 को उन्होंने अंतिम सास ली थी. 1954 में चैतन्य महाप्रभु फिल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार मिला था. अलीगढ़ से फिल्म नगरी मुंबई में जाकर उन्होंने बहुत ख्याति अर्जित की थी.

अभिनेता भारत भूषण के जीवन से जुड़ी खास बातें-

1941 में शुरू हुआ अभिनय कॅरियर

अभिनेता भारत भूषण का लालन-पालन और शुरुआती शिक्षा अलीगढ़ में ही हुई थी. उन्होंने यहां के केपी इंटर कॉलेज से पढ़ाई की. उन्हें बचपन से ही गाने का बहुत शौक था. गाने का वह रियाज भी करते थे. समय और किस्मत ने भारत भूषण को महान अभिनेता बना दिया. उनका विवाह मेरठ की रहने वाली सरला देवी से हुआ था. भारत भूषण को गायकी में मौका नहीं मिला, तो उन्होंने निर्माता-निर्देशक केदार शर्मा की 1941 में बनी फिल्म चित्रलेखा में एक छोटी भूमिका से अपने अभिनय कॅरियर की शुरुआत की. 1951 तक उन्हें अभिनेता के रूप में खास पहचान नहीं मिल पाई थी.

हिंदी फिल्म अभिनेता भारत भूषण
हिंदी फिल्म अभिनेता भारत भूषण

बैजू बावरा से चमका सितारा

वर्ष 1941 से वर्ष 1951 तक भारत भूषण ने भक्त कबीर, भाईचारा, सुहागरात, उधार, रंगीला राजस्थान, एक थी लड़की, रामदर्शन, किसी की याद, भाई-बहन, आंखें, सागर, हमारी शान, आनंदमठ और मां फिल्मों में काम किया. भारत भूषण के अभिनय का सितारा क्लासिकल फिल्म बैजू बावरा से चमका. कर्णप्रिय गीत-संगीत और अभिनय से सजी बैजू बावरा फिल्म की गोल्डन जुबली कामयाबी ने भारत भूषण को रातों रात सुपरस्टार बना दिया. इस फिल्म ने भारत भूषण और फिल्म की नायिका मीना कुमारी को स्टार के रूप में स्थापित किया. आज भी इस फिल्म के सदाबहार गीत श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं.

अलीगढ़ से था भारत भूषण का करीबी नाता.
अलीगढ़ से था भारत भूषण का करीबी नाता.

चैतन्य महाप्रभु फिल्म के लिए मिला फिल्म फेयर पुरस्कार

बैजू बावरा फिल्म के लिए निर्माता विजय भट्ट पहले दिलीप कुमार और नर्गिस के नाम पर विचार कर रहे थे, लेकिन संगीतकार नौशाद ने उन्हें नए अभिनेता और अभिनेत्री को फिल्म में लेने की सलाह दी. चैतन्य महाप्रभु (1954) फिल्म में सशक्त अभिनय के लिए भारत भूषण को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया. गायक, साहित्यकारों, संगीतकारों, भक्तों और ऐतिहासिक व्यक्तित्व को अपने सहज अभिनय से पर्दे पर जीवंत करने का भारत भूषण का सिलसिला आगे भी जारी रहा. उन्होंने भक्त कबीर, मिर्जा गालिब, रानी रूपमती, सोनी महिवाल, सम्राट चंद्रगुप्त, कवि कालिदास, संगीत सम्राट तानसेन और नवाब सिराजुद्दौला फिल्मों में प्रमुख किरदार निभाया.

फिल्म बैजू बावरा से चमके भारत भूषण.
फिल्म बैजू बावरा से चमके भारत भूषण.

राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री ने की थी तारीफ

भारत भूषण के फिल्मी कॅरियर में फिल्म मिर्जा गालिब का अहम स्थान है. इस फिल्म में भारत भूषण ने मिर्जा गालिब के किरदार को बहुत सहज और असरदार ढंग से निभाया था. गीत-संगीत, संवाद और अभिनय से सजी फिल्म बेहद कामयाब रही थी. इसे सर्वश्रेष्ठ फिल्म और सर्वश्रेष्ठ संगीत के राष्ट्रीय पुरस्कार मिले थे. मिर्जा गालिब फिल्म की प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने बहुत तारीफ की थी. भारत भूषण ने 143 फिल्मों में अपने अभिनय की छटा बिखेरी. उन्होंने अशोक कुमार, दिलीप कुमार, राज कपूर और देवानंद जैसे कलाकारों की मौजूदगी में अपना अलग मुकाम बनाया था.


दूज का चांद हुई फ्लाप

अभिनेता भारत भूषण ने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रखा था, लेकिन उनकी कोई भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं रही. 1964 में महत्वाकांक्षी फिल्म दूज का चांद बनी. लेकिन, यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह फ्लॉप साबित हुई. दूज का चांद फिल्म में उन्हें बहुत आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा और भारत भूषण कर्ज में डूब गए. उनकी गाड़ियां और बंगले तक बिक गए. इसके बाद उन्होंने फिल्म निर्माण से दूरी बना ली. 1967 में फिल्म 'तकदीर' नायक के रूप में भारत भूषण की अंतिम फिल्म थी.

निर्माता-निर्देशकों ने मोड़ा मुंह

फिल्मों के माहौल और कहानी की दिशा बदलने पर भारत भूषण को फिल्मों में मुख्य भूमिका का किरदार मिलना बंद हो गया. जो निर्माता-निर्देशक भारत भूषण को अपनी फिल्मों में लेने के लिए बेकरार रहते थे, उन्होंने भी उनसे मुंह मोड़ लिया. बाद में उन्होंने फिल्मों में छोटी-मोटी भूमिकाएं निभानी शुरू कर दीं. लेकिन, हालात ऐसे हो गए कि भारत भूषण को फिल्मों में काम मिलना बंद हो गया. तब मजबूरी में उन्होंने छोटे पर्दे की तरफ रुख किया. हालात की मार और वक्त के सितम से टूट चुके फिल्मों के स्वर्णिम युग के अभिनेता भारत भूषण ने 27 जनवरी 1992 को 72 वर्ष की आयु में इस दुनिया को अलविदा कह दिया. उनकी फिल्मों और गीतों के प्रशंसक आज भी है. उनके प्रशंसक और स्वर साधना संस्थान चलाने वाले अनिल वर्मा उनके गीतों को बहुत खूबसूरती से गाते हैं.

एक लाख किताबों का था संग्रह

अभिनेता भारत भूषण बहुत शांत प्रकृति के व्यक्ति थे. उनको किताबें पढ़ने का बहुत शौक था. वेदों से लेकर खलील जिब्रान और उमर खय्याम, गौतमबुद्ध की जातक कथाएं, रविन्द्र नाथ टैगोर की किताबों का उनके पास बहुत बड़ा संग्रह था. उस समय जिन लोगों के पास जो किताबें नहीं थी, वो किताबें उनके पास मिल जाती थीं. एक लाख किताबों की विशाल लाइब्रेरी उन्होंने बना रखी थी. दिलीप कुमार और देवानंद किताबें उनसे मांग कर ले जाते थे.

कभी बुलंदियों पर था फिल्मी सितारा

अभिनेता भारत भूषण के भतीजे दिनेश कुमार ने बताया कि लोग कहते हैं कि वह छोटे-मोटे कमरे में रहते थे, लेकिन यह गलत है. कुछ मीडिया हाउस ने उन्हें मुम्बई की चाल में रहना बताया, लेकिन यह गलत है. उनका मुंबई के मलाड में तीन बेडरूम का फ्लैट है. उन्होंने बताया कि भारत भूषण की मृत्यु पर वह मुंबई चाची से मिलने भी गए थे, वह आर्थिक रूप से कमजोर हो गए थे. दूज का चांद फिल्म असफल हुई थी, लेकिन वह एक कमरे की चाल में कभी नहीं रहे. ये जरूर है कि एक ऐसा अभिनेता जो कभी फिल्म नगरी में बुलन्दियों पर चमकता था. उसका अंतिम समय कष्ट में बीता था.

अलीगढ़ में नहीं लग पाई भारत भूषण की मूर्ति

दिनेश कुमार ने बताया कि अलीगढ़ के लिए गौरव की बात है कि भारत भूषण का संबंध यहां से रहा है. उन्होंने बताया कि भारत भूषण के नाम पर मीनाक्षी पुल के नीचे सड़क का नाम भी रखा गया है. अलीगढ़ में मूर्ति लगाने का प्रस्ताव शासन और प्रशासन में लटका हुआ है. दिनेश कुमार ने बताया कि उनकी मूर्ति लगवानी है. भारत भूषण की दो बेटियां अपराजिता भूषण और अनुराधा भूषण हैं. रामानंद सागर की रामायण में मंदोदरी का किरदार निभाने वाली अपराजिता भूषण ही हैं.

अलीगढ़ : ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों के दौर में बुलंदियों को छूने वाले अभिनेता भारत भूषण का आज ही के दिन (27 जनवरी) को निधन हुआ था. यूपी के अलीगढ़ जिले से भारत भूषण का करीबी नाता था. भारत भूषण का जन्म अलीगढ़ में 14 जून 1920 में हुआ था. आज ही के दिन 27 जनवरी 1992 को उन्होंने अंतिम सास ली थी. 1954 में चैतन्य महाप्रभु फिल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार मिला था. अलीगढ़ से फिल्म नगरी मुंबई में जाकर उन्होंने बहुत ख्याति अर्जित की थी.

अभिनेता भारत भूषण के जीवन से जुड़ी खास बातें-

1941 में शुरू हुआ अभिनय कॅरियर

अभिनेता भारत भूषण का लालन-पालन और शुरुआती शिक्षा अलीगढ़ में ही हुई थी. उन्होंने यहां के केपी इंटर कॉलेज से पढ़ाई की. उन्हें बचपन से ही गाने का बहुत शौक था. गाने का वह रियाज भी करते थे. समय और किस्मत ने भारत भूषण को महान अभिनेता बना दिया. उनका विवाह मेरठ की रहने वाली सरला देवी से हुआ था. भारत भूषण को गायकी में मौका नहीं मिला, तो उन्होंने निर्माता-निर्देशक केदार शर्मा की 1941 में बनी फिल्म चित्रलेखा में एक छोटी भूमिका से अपने अभिनय कॅरियर की शुरुआत की. 1951 तक उन्हें अभिनेता के रूप में खास पहचान नहीं मिल पाई थी.

हिंदी फिल्म अभिनेता भारत भूषण
हिंदी फिल्म अभिनेता भारत भूषण

बैजू बावरा से चमका सितारा

वर्ष 1941 से वर्ष 1951 तक भारत भूषण ने भक्त कबीर, भाईचारा, सुहागरात, उधार, रंगीला राजस्थान, एक थी लड़की, रामदर्शन, किसी की याद, भाई-बहन, आंखें, सागर, हमारी शान, आनंदमठ और मां फिल्मों में काम किया. भारत भूषण के अभिनय का सितारा क्लासिकल फिल्म बैजू बावरा से चमका. कर्णप्रिय गीत-संगीत और अभिनय से सजी बैजू बावरा फिल्म की गोल्डन जुबली कामयाबी ने भारत भूषण को रातों रात सुपरस्टार बना दिया. इस फिल्म ने भारत भूषण और फिल्म की नायिका मीना कुमारी को स्टार के रूप में स्थापित किया. आज भी इस फिल्म के सदाबहार गीत श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं.

अलीगढ़ से था भारत भूषण का करीबी नाता.
अलीगढ़ से था भारत भूषण का करीबी नाता.

चैतन्य महाप्रभु फिल्म के लिए मिला फिल्म फेयर पुरस्कार

बैजू बावरा फिल्म के लिए निर्माता विजय भट्ट पहले दिलीप कुमार और नर्गिस के नाम पर विचार कर रहे थे, लेकिन संगीतकार नौशाद ने उन्हें नए अभिनेता और अभिनेत्री को फिल्म में लेने की सलाह दी. चैतन्य महाप्रभु (1954) फिल्म में सशक्त अभिनय के लिए भारत भूषण को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया. गायक, साहित्यकारों, संगीतकारों, भक्तों और ऐतिहासिक व्यक्तित्व को अपने सहज अभिनय से पर्दे पर जीवंत करने का भारत भूषण का सिलसिला आगे भी जारी रहा. उन्होंने भक्त कबीर, मिर्जा गालिब, रानी रूपमती, सोनी महिवाल, सम्राट चंद्रगुप्त, कवि कालिदास, संगीत सम्राट तानसेन और नवाब सिराजुद्दौला फिल्मों में प्रमुख किरदार निभाया.

फिल्म बैजू बावरा से चमके भारत भूषण.
फिल्म बैजू बावरा से चमके भारत भूषण.

राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री ने की थी तारीफ

भारत भूषण के फिल्मी कॅरियर में फिल्म मिर्जा गालिब का अहम स्थान है. इस फिल्म में भारत भूषण ने मिर्जा गालिब के किरदार को बहुत सहज और असरदार ढंग से निभाया था. गीत-संगीत, संवाद और अभिनय से सजी फिल्म बेहद कामयाब रही थी. इसे सर्वश्रेष्ठ फिल्म और सर्वश्रेष्ठ संगीत के राष्ट्रीय पुरस्कार मिले थे. मिर्जा गालिब फिल्म की प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने बहुत तारीफ की थी. भारत भूषण ने 143 फिल्मों में अपने अभिनय की छटा बिखेरी. उन्होंने अशोक कुमार, दिलीप कुमार, राज कपूर और देवानंद जैसे कलाकारों की मौजूदगी में अपना अलग मुकाम बनाया था.


दूज का चांद हुई फ्लाप

अभिनेता भारत भूषण ने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रखा था, लेकिन उनकी कोई भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं रही. 1964 में महत्वाकांक्षी फिल्म दूज का चांद बनी. लेकिन, यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह फ्लॉप साबित हुई. दूज का चांद फिल्म में उन्हें बहुत आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा और भारत भूषण कर्ज में डूब गए. उनकी गाड़ियां और बंगले तक बिक गए. इसके बाद उन्होंने फिल्म निर्माण से दूरी बना ली. 1967 में फिल्म 'तकदीर' नायक के रूप में भारत भूषण की अंतिम फिल्म थी.

निर्माता-निर्देशकों ने मोड़ा मुंह

फिल्मों के माहौल और कहानी की दिशा बदलने पर भारत भूषण को फिल्मों में मुख्य भूमिका का किरदार मिलना बंद हो गया. जो निर्माता-निर्देशक भारत भूषण को अपनी फिल्मों में लेने के लिए बेकरार रहते थे, उन्होंने भी उनसे मुंह मोड़ लिया. बाद में उन्होंने फिल्मों में छोटी-मोटी भूमिकाएं निभानी शुरू कर दीं. लेकिन, हालात ऐसे हो गए कि भारत भूषण को फिल्मों में काम मिलना बंद हो गया. तब मजबूरी में उन्होंने छोटे पर्दे की तरफ रुख किया. हालात की मार और वक्त के सितम से टूट चुके फिल्मों के स्वर्णिम युग के अभिनेता भारत भूषण ने 27 जनवरी 1992 को 72 वर्ष की आयु में इस दुनिया को अलविदा कह दिया. उनकी फिल्मों और गीतों के प्रशंसक आज भी है. उनके प्रशंसक और स्वर साधना संस्थान चलाने वाले अनिल वर्मा उनके गीतों को बहुत खूबसूरती से गाते हैं.

एक लाख किताबों का था संग्रह

अभिनेता भारत भूषण बहुत शांत प्रकृति के व्यक्ति थे. उनको किताबें पढ़ने का बहुत शौक था. वेदों से लेकर खलील जिब्रान और उमर खय्याम, गौतमबुद्ध की जातक कथाएं, रविन्द्र नाथ टैगोर की किताबों का उनके पास बहुत बड़ा संग्रह था. उस समय जिन लोगों के पास जो किताबें नहीं थी, वो किताबें उनके पास मिल जाती थीं. एक लाख किताबों की विशाल लाइब्रेरी उन्होंने बना रखी थी. दिलीप कुमार और देवानंद किताबें उनसे मांग कर ले जाते थे.

कभी बुलंदियों पर था फिल्मी सितारा

अभिनेता भारत भूषण के भतीजे दिनेश कुमार ने बताया कि लोग कहते हैं कि वह छोटे-मोटे कमरे में रहते थे, लेकिन यह गलत है. कुछ मीडिया हाउस ने उन्हें मुम्बई की चाल में रहना बताया, लेकिन यह गलत है. उनका मुंबई के मलाड में तीन बेडरूम का फ्लैट है. उन्होंने बताया कि भारत भूषण की मृत्यु पर वह मुंबई चाची से मिलने भी गए थे, वह आर्थिक रूप से कमजोर हो गए थे. दूज का चांद फिल्म असफल हुई थी, लेकिन वह एक कमरे की चाल में कभी नहीं रहे. ये जरूर है कि एक ऐसा अभिनेता जो कभी फिल्म नगरी में बुलन्दियों पर चमकता था. उसका अंतिम समय कष्ट में बीता था.

अलीगढ़ में नहीं लग पाई भारत भूषण की मूर्ति

दिनेश कुमार ने बताया कि अलीगढ़ के लिए गौरव की बात है कि भारत भूषण का संबंध यहां से रहा है. उन्होंने बताया कि भारत भूषण के नाम पर मीनाक्षी पुल के नीचे सड़क का नाम भी रखा गया है. अलीगढ़ में मूर्ति लगाने का प्रस्ताव शासन और प्रशासन में लटका हुआ है. दिनेश कुमार ने बताया कि उनकी मूर्ति लगवानी है. भारत भूषण की दो बेटियां अपराजिता भूषण और अनुराधा भूषण हैं. रामानंद सागर की रामायण में मंदोदरी का किरदार निभाने वाली अपराजिता भूषण ही हैं.

Last Updated : Jan 27, 2021, 8:01 PM IST
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