अलीगढ़ : जन्मजात टेढ़े पैर वाले बच्चों का अब जिले में भी इलाज हो सकेगा. डीडीयू अस्पताल में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत इस बारे में चिकित्सकों द्वारा जानकारी दी गई. इस नयी शुरूआत से अब टेढ़े पैर वाले बच्चों को इलाज के लिए उच्च केंद्र नहीं जाना पड़ेगा और उनका यहीं पर इलाज हो सकेगा. क्लब फुट कैम्प का आयोजन पंडित दीनदयाल जिला संयुक्त चिकित्सालय में किया गया. कैंप में पीड़ितों का स्वास्थ्य परीक्षण करने के बाद जागरूकता के बारे में जानकारी दी गई.
राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत मिरेकल फीट इंडिया बच्चों के क्लब फुट उपचार के लिए साझेदारी से काम कर रही है. शिविर में क्लब फुट से प्रभावित बच्चों को पोंसेटी विधि द्वारा आसानी से इलाज कराए जाने के बारे में जानकारी दी गई. राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के डीईआईसी मैनेजर मुनाजिर हुसैन ने बताया कि यह महत्वपूर्ण है कि उन्हें जल्दी पहचाना जाए और इलाज शुरू कराया जाए.
उन्होंने बताया कि क्लब फुट' से प्रभावित लगभग 50 फीसद बच्चों में ऐसा टेढ़ापन दोनों पैरों में होता है. इसका इलाज दो तरीके से होता है, प्लास्टर व सर्जरी से. यह निर्णय चिकित्सक बीमारी देखने के बाद लेते है. जागरुकता के अभाव में बच्चे के परिजन काफी देर से चिकित्सक के पास पहुंचते हैं. पंडित दीनदयाल जिला चिकित्सालय के आर्थोपेडिक सर्जन डॉ. एसके वार्ष्णेय ने बताया कि जेनेटिक कारणों के अलावा अधिक स्टेरॉयड दवाओं का इस्तेमाल, खून की कमी या जुड़वा बच्चे होने की सूरत में गर्भ में नवजात के पैरों का सामान्य विकास नहीं हो पाता. जिसकी वजह से पैर टेढ़े हो जाते हैं.
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डॉ. एसके वार्ष्णेय ने कहा कि ऐसे बच्चों को जन्म के तुरंत बाद पहचाना जा सकता है. जिन अस्पतालों में क्लबफुट का इलाज उपलब्ध है. वह इसे जन्म के बाद ही शुरू कर देते हैं. जबकि विशेषज्ञों की सलाह पर क्लब फुट सोसाइटी से भी संपर्क कर इलाज कराया जा सकता है. डॉ. एसके वार्ष्णेय ने आशा कार्यकर्ताओं को जानकारी देते हुए कहा कि महिलाओं को किसी भी प्रकार की समस्या होती है तो वह डॉक्टर की सलाह बैगर ही दवाएं ले लेती हैं. जिसकी वजह से माँ बनने के दौरान उन्हें समस्या का सामना करना पड़ता है.
राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के प्रोग्राम ऑफिसर डॉ. मोहम्मद जिशान ने बताया कि यदि पैदा होने के बाद से ही बच्चे के पैर टेढ़े होते हैं, तो यह एक प्रकार का जन्म दोष होता है. इसे 'क्लब फुट' के नाम से जाना जाता है. यह दोष होने पर बच्चे के पैर अंदर या बाहर की ओर मुड़े हुए होते हैं. बच्चे को ऐसा एक या दोनों पैरों में हो सकता है. यदि समय रहते इस बीमारी का इलाज न किया जाए, तो बच्चे को बड़े होकर कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. उसे चलने में भी दिक्कतें आ सकती हैं. सर्जरी की मदद से इस जन्म दोष से छुटकारा पाया जाता है.
जन्म से बच्चे के पैर टेढ़े होने के निम्न लक्षण होते हैं -
1- बच्चे का पैर अंदर या बाहर की ओर मुड़ा हुआ होता है.
2- बच्चे की एड़ अंदर की ओर मुड़ी हुई होती है.
3- गंभीर मामलों में देखा गया है कि पंजे उल्टे हो सकते हैं.
4- प्रभावित पैर और टांग की लंबाई छोटी होती है.
5- प्रभावित पिंडली की मांसपेशियां अविकसित हो सकती हैं.