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अमेरिका की इस्लामिक विद्वान बारबरा मेटकाफ को मिलेगा सर सैयद एक्सीलेंस पुरस्कार - अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय द्वारा इस्लामिक विद्वान और इतिहास की प्रोफेसर एमेरिटस बारबरा डेली मेटकाफ को सर सैयद एक्सीलेंस पुरस्कार के लिए चुना गया है. यह पुरस्कार 17 अक्टूबर को अलीगढ़ में दिया जाएगा.

इस्लामिक विद्वान बारबरा मेटकाफ
इस्लामिक विद्वान बारबरा मेटकाफ
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Published : Sep 30, 2022, 10:59 PM IST

अलीगढ़: उपमहाद्वीप के मुसलमानों के इतिहास पर मूल स्रोतों पर आधारित पुस्तकों की लेखिका और यूएसए में इतिहास की प्रोफेसर एमेरिटस बारबरा डेली मेटकाफ सर सैयद उत्कृष्टता अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चुना गया है. जबकि सर सैयद उत्कृष्टता राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन, नई दिल्ली को चयनित किया गया है. यह पुरस्कार 17 अक्टूबर 2022 को अलीगढ़ में आयोजित होने वाले सर सय्यद दिवस स्मृति समारोह(Sir Syed Day Memorial Ceremony) के अवसर पर दिए जायेंगे.


अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय(Aligarh Muslim University) द्वारा अपने संस्थापक सर सैयद अहमद खान की स्मृति को समर्पित और उनकी विद्वता को श्रद्धांजलि देने के लिए हर साल यह समारोह आयोजित होता है. इसमें 2 लाख और 1 लाख रुपये के नकद पुरस्कार प्रदान किये जाते हैं. यह पुरस्कार सर सैयद अध्ययन, दक्षिण एशियाई अध्ययन, मुस्लिम मुद्दे, साहित्य, मध्यकालीन इतिहास, समाज सुधार, सांप्रदायिक सद्भाव, पत्रकारिता एवं अन्तःधार्मिक संवाद के क्षेत्रों में उत्कृष्ट बौद्धिक मौलिक कार्यों का निर्माण करने वाले प्रसिद्ध विद्वानों या संगठनों को दिए जाते हैं. एएमयू के कुलपति, प्रोफेसर तारिक मंसूर ने प्रोफेसर एआर किदवई, प्रोफेसर अली मोहम्मद नकवी, डॉ मोहम्मद शाहिद, तारिक हसन और प्रोफेसर एम शाफ़े किदवई पर आधारित जूरी की सिफारिश पर पुरस्कार विजेताओं के चयन पर अंतिम मुहर लगायी.

इंटरनेशनल सर सैयद एक्सीलेंस अवार्ड विजेता, बारबरा डेली मेटकाफ दक्षिण एशिया के इतिहास की प्रख्यात विशेषज्ञ हैं. 1970 के दशक में मुसलमानों से सम्बंधित मुद्दों से प्रारंभिक परिचय के बाद से वह भारतीय उपमहाद्वीप के मुस्लिम समुदाय के अंदर होने वाले परिवर्तन पर गहरी नज़र रखती हैं. इस विषय से उनका परिचय उनके डॉक्टरेट प्रोजेक्ट, इस्लामिक रिवाइवल इन ब्रिटिश इंडियाः देवबंद, 1860-1900 (1982 में प्रकाशित) पर कार्य के दौरान हुआ.

बारबरा ने आधुनिक भारत पर प्रमुख ऐतिहासिक विमर्श द्वारा स्थापित गलत धारणा को समाप्त किया. उन्होंने पारंपरिक धार्मिक नेताओं के मूल उर्दू कार्यों पर अपने काम को समेकित करते हुए भारत के औपनिवेशिक अतीत पर एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य विकसित किया. जिसने उलेमा पर नए दृष्टिकोण प्रदान किए. बारबरा के शोध ने उन उलेमा के बारे में कई भ्रांतियों को दूर कर दिया जिन्हें ’परंपरावादी,’ या ‘कट्टरपंथी’ के रूप में देखा जाता था। इन धार्मिक विद्वानों को बारबरा ने एक बौद्धिक और संस्थागत कार्यों में लीन दिखाया है.

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अलीगढ़: उपमहाद्वीप के मुसलमानों के इतिहास पर मूल स्रोतों पर आधारित पुस्तकों की लेखिका और यूएसए में इतिहास की प्रोफेसर एमेरिटस बारबरा डेली मेटकाफ सर सैयद उत्कृष्टता अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चुना गया है. जबकि सर सैयद उत्कृष्टता राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन, नई दिल्ली को चयनित किया गया है. यह पुरस्कार 17 अक्टूबर 2022 को अलीगढ़ में आयोजित होने वाले सर सय्यद दिवस स्मृति समारोह(Sir Syed Day Memorial Ceremony) के अवसर पर दिए जायेंगे.


अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय(Aligarh Muslim University) द्वारा अपने संस्थापक सर सैयद अहमद खान की स्मृति को समर्पित और उनकी विद्वता को श्रद्धांजलि देने के लिए हर साल यह समारोह आयोजित होता है. इसमें 2 लाख और 1 लाख रुपये के नकद पुरस्कार प्रदान किये जाते हैं. यह पुरस्कार सर सैयद अध्ययन, दक्षिण एशियाई अध्ययन, मुस्लिम मुद्दे, साहित्य, मध्यकालीन इतिहास, समाज सुधार, सांप्रदायिक सद्भाव, पत्रकारिता एवं अन्तःधार्मिक संवाद के क्षेत्रों में उत्कृष्ट बौद्धिक मौलिक कार्यों का निर्माण करने वाले प्रसिद्ध विद्वानों या संगठनों को दिए जाते हैं. एएमयू के कुलपति, प्रोफेसर तारिक मंसूर ने प्रोफेसर एआर किदवई, प्रोफेसर अली मोहम्मद नकवी, डॉ मोहम्मद शाहिद, तारिक हसन और प्रोफेसर एम शाफ़े किदवई पर आधारित जूरी की सिफारिश पर पुरस्कार विजेताओं के चयन पर अंतिम मुहर लगायी.

इंटरनेशनल सर सैयद एक्सीलेंस अवार्ड विजेता, बारबरा डेली मेटकाफ दक्षिण एशिया के इतिहास की प्रख्यात विशेषज्ञ हैं. 1970 के दशक में मुसलमानों से सम्बंधित मुद्दों से प्रारंभिक परिचय के बाद से वह भारतीय उपमहाद्वीप के मुस्लिम समुदाय के अंदर होने वाले परिवर्तन पर गहरी नज़र रखती हैं. इस विषय से उनका परिचय उनके डॉक्टरेट प्रोजेक्ट, इस्लामिक रिवाइवल इन ब्रिटिश इंडियाः देवबंद, 1860-1900 (1982 में प्रकाशित) पर कार्य के दौरान हुआ.

बारबरा ने आधुनिक भारत पर प्रमुख ऐतिहासिक विमर्श द्वारा स्थापित गलत धारणा को समाप्त किया. उन्होंने पारंपरिक धार्मिक नेताओं के मूल उर्दू कार्यों पर अपने काम को समेकित करते हुए भारत के औपनिवेशिक अतीत पर एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य विकसित किया. जिसने उलेमा पर नए दृष्टिकोण प्रदान किए. बारबरा के शोध ने उन उलेमा के बारे में कई भ्रांतियों को दूर कर दिया जिन्हें ’परंपरावादी,’ या ‘कट्टरपंथी’ के रूप में देखा जाता था। इन धार्मिक विद्वानों को बारबरा ने एक बौद्धिक और संस्थागत कार्यों में लीन दिखाया है.

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