अलीगढ़: गुलाम मुल्क में पिछड़े समाज को आधुनिक बनाने का सर सैय्यद का सपना अलीगढ़ में साकार हुआ. पहली बार दीनी तालिम से आगे बढ़कर वैज्ञानिक सोच और समझ वाली पीढ़ी को तैयार करने की कोशिश को आज 100 साल पूरे हो गए. आज अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है. बतौर मुख्य अतिथि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे संबोधित किया. प्रधानमंत्री एक शिक्षक की तरह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्रों को समझाते नजर आए. नई शिक्षा पॉलिसी, नया भारत और आत्मनिर्भर अभियान से छात्रों को जुड़ने की अपील की. उन्होंने एएमयू के 100 साल के सफर में उन लोगों को नमन भी किया, जिन्होंने इसे इतनी बुलंदियों तक पहुंचाया. आज के माहौल में मोदी के संबोधन को भारतीय समाज में बढ़ रही खाई को पाटने की कोशिश के तौर पर भी देखा जा रहा है.
बनारस की सोच अलीगढ़ में साकार
1920 का दशक गुलाम भारत में आजादी के लिए हो रहे आंदोलनों का ही नहीं था. यह आधुनिक शिक्षा के भारतीयकरण का भी था. इस दौर में अंग्रेजों के स्थापित किए विश्वविद्यालयों से इतर बनारस में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना 1916 में हुई. उसके 4 साल बाद ही 1920 अलीगढ़ में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ने आकार लिया. देश में विद्यापीठ आंदोलन चला और देश में कई जगह विद्यापीठ की स्थापना की गई. कई कॉलेज और स्कूल भी खोले गए, लेकिन उस दौर में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की भूमिका इसलिए और महत्वपूर्ण हो गई, क्योंकि इसने देश के सबसे पिछड़े माने जाने वाले मुस्लिम तबके में नई सोच और समझ का संचार किया. एएमयू की सोच सबसे पहले बनारस में पनपी. सर सैय्यद ने विश्वविद्यालय बनाने का ख्वाब बनारस में देखा था. सन 1873 में मोहम्मडन एंग्लो ओरियंटल कॉलेज फंड कमेटी की पहली मीटिंग बनारस में ही रखी थी. तब उन्होंने कहा था कि हम मदरसा या कॉलेज नहीं बल्कि विश्वविद्यालय बनाने जा रहे हैं.
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की देश और दुनिया को देन
मदरसा समझे जाने वाले कॉलेज से विश्वविद्यालय बनने वाले एएमयू ने अपने 100 साल के सफर में देश को कई रत्न दिए. यहां से निकले विद्यार्थियों ने दुनिया भर में देश का नाम रोशन किया. डॉ जाकिर हुसैन, खान अब्दुल गफ्फार खान को भारत रत्न मिला, तो वहीं हाफिज मोहम्मद, इब्राहिम सैयद, नसीर हुसैन जैदी, प्रो नावेद सिद्धकी, प्रो राजा राव, प्रो एआर किदवई को पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया. यहां से पढ़ कर निकले नौ छात्र और शिक्षक भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव के राष्ट्रपति बने. इस संस्थान ने दो भारत रत्न, 8 पद्म विभूषण, 28 पद्म भूषण एवं 37 पद्मश्री दिये हैं. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी उमर पीरजादा बताते हैं कि एएमयू ने देश को 19 राज्यपाल, 17 मुख्यमंत्री, सर्वोच्च न्यायालय के चार जज, उच्च न्यायालय के 11 मुख्य न्यायाधीश, हाईकोर्ट के 29 न्यायाधीश, तीन ज्ञानपीठ पुरस्कार, 19 साहित्य एकेडमी पुरस्कार, 11 कुलाधिपति, 92 कुलपति दिये हैं. पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, केरल के मौजूदा राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान एएमयू के छात्र रहे हैं. अनवारा तैमूर असम की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं. पद्म सम्मान से सम्मानित नामों में जाकिर हुसैन, हाफिज मोहम्मद इब्राहिम, जीएम सादिक, अली जंग, प्रोफेसर उवैद सिद्दीकी, राजा राव, एआर किदवई शामिल हैं. लीगल एजुकेशन के पितामह एआर माधवन मेमन, हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अशोक सेठ, गीतकार जावेद अख्तर, प्रोफेसर इरफान हबीब, फिल्म अभिनेता नसीरुद्दीन शाह, कैफी आजमी, राही मासूम रजा, दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहब सिंह वर्मा, क्रिकेटर लाला अमरनाथ, इतिहासकार गेंदा सिंह, रहीमुद्दीन डागर और अक्षय कुमार जैन सहित 28 लोग पद्म भूषण से सम्मानित हुए हैं.
काशी नरेश ने दी थी सहायता
सर सैय्यद ने जब अलीगढ़ में कॉलेज की स्थापना की तो बनारस की अपेक्षा अलीगढ़ कहीं बहुत पिछड़ा था. संसाधन कम थे. यहां तक कि कॉलेज की स्थापना समारोह में काशी नरेश राजा शंभू नारायण ने शामियाने और क्रॉकरी की व्यवस्था की थी. काशी नरेश राजा शंभू नारायण के नाम का एक पत्थर भी स्ट्रेटी हॉल में लगा हुआ है. काशी के राजा शंभू नारायण ने एमएओ के लिए स्कॉलरशिप भी शुरू की थी. 8 जनवरी सन 1877 में काशी नरेश शंभू नारायण एमएओ कॉलेज के उद्घाटन समारोह में भी शामिल हुए थे. काशी नरेश शंभू नारायण ने सर सैय्यद अहमद खान को 500 रुपये का चंदा दिया था.
सुल्तान जहां बेगम आजीवन रहीं संस्थापक कुलाधिपति
19वीं सदी की शुरुआत में जब महिलाएं दोयम दर्जे की मानी जा रही थीं, तब एक मुस्लिम रियासत की शासक महिला थी. उन्होंने महिला शिक्षा की जरूरत को समझा, उसे बढ़ावा दिया. नई तकनीक के साथ-साथ सामाजिक जीवन में सौहार्द लाने के लिए कई तरह के समाज सुधार किए. हम बात कर रहे हैं, भोपाल की महिला शासक नवाब सुल्तान जहां बेगम की. उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना में सर सैय्यद अहमद खान की विशेष मदद की. उसका नतीजा ये हुआ कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना पर उन्हें संस्थापक कुलाधिपति बनाया गया. वह आजीवन अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की कुलाधिपति रहीं. आज अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में 35 फीसदी छात्राएं पढ़ रही हैं.
भारतीयों के दान से खड़ी हुई एएमयू
AMU हो या BHU दोनों ही विश्वविद्यालय भारतीयों के दान से खड़े हुए. अपने 100 साल के इतिहास में एएमयू को भी समय-सयम पर दान मिलता रहा है. कभी यहां के पूर्व छात्रों तो कभी शिक्षा को बढ़ावा देने वाले लोगों ने दान दिया. जनसंपर्क विभाग के सहायक मेंबर इंचार्ज राहत अबरार बताते हैं कि सन् 1920 से 2020 तक सबसे ज्यादा चंदा देने वालों में फ्रैंक इस्लाम शामिल हैं. आजमगढ़ में जन्मे फ्रैंक इस्लाम 1970 में अमेरिका चले गए थे. एएमयू में उनकी शिक्षा हुई थी. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उन्हें अपना सलाहकार बनाया था. वहीं जो बिडेन की चुनावी टीम में फ्रैंक इस्लाम को भी जगह मिली थी.
नेहरू, शास्त्री के बाद मोदी एएमयू को संबोधित करने वाले तीसरे प्रधानमंत्री
1964 के बाद यह पहला मौका है, जब देश के प्रधानमंत्री ने एएमयू को संबोधित किया. जवाहरलाल नेहरू आजादी से पहले एएमयू आ चुके थे. वहीं प्रधानमंत्री के रूप में सन 1948 के दीक्षांत समारोह में एड्रेस किया था. 19 दिसंबर सन 1964 को प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में आए थे. तब अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ने पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को डॉक्टरेट ऑफ लॉ की उपाधि दी थी. उस समय के बड़े वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा को विश्वविद्यालय ने डीएससी की मानद उपाधि दी थी. वहीं इतिहासकार गैंडा सिंह को डी लिट् की डिग्री दी गई थी. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के जनसंपर्क विभाग के सहायक मेंबर इंचार्ज राहत अबरार बताते हैं कि प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए आखिरी बार लाल बहादुर शास्त्री विश्वविद्यालय आए थे. लेकिन उन्होंने बताया कि पूर्व प्रधानमंत्री के रूप में लोग आते रहे हैं, जिसमें मनमोहन सिंह, इंद्र कुमार गुजराल, विश्वनाथ प्रताप सिंह शामिल हैं.
आज का अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में 35 फीसदी छात्राएं पढ़ती हैं और दुनिया भर से 1 हजार से ज्यादा छात्र भी यहां शिक्षा ले रहे हैं. देश के हर राज्य के अलावा अफ्रिका तक से लोग यहां पढ़ने आते हैं. अब तो 300 से ज्यादा कोर्स शुरू हो गए हैं. 12 फैकल्टी, 98 विभाग और 15 सेंटर में 28 हजार विध्यार्थी पढ़ रहे हैं. 467 हेक्टेयर में फैले परिसर में 1342 शिक्षक इन विद्यार्थियों को पढ़ा रहे हैं. देश के 20 शोध संस्थानों में आठवीं रैंक मिली है. 100 साल गुजर गए हैं, लेकिन सफर लंबा है.