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आगरा के प्राचीन सिद्धि विनायक मंदिर की अनोखी कहानी, जहां गणेश जी को चढ़ाया जाता है चोला

आगरा में गणेश उत्सव का इतिहास 262 वर्ष पुराना है. गोकुलपुरा स्थित सिद्धि विनायक मंदिर की नींव वर्ष 1646 में मराठाओं और गुजराती नागरों ने रखी थी. यहां हर साल गणेश चतुर्थी के दिन शोभायात्रा निकालने की प्रथा है.

सिद्धि विनायक मंदिर
सिद्धि विनायक मंदिर
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Published : Aug 31, 2022, 12:03 PM IST

Updated : Aug 31, 2022, 12:33 PM IST

आगरा: गणेश चतुर्थी को लेकर लोगों में खासा उत्साह है. गणेश जी को घर लाने के लिए भक्तों ने तमाम तरह की तैयारियां की हैं. लेकिन, आगरा में गणेश उत्सव का इतिहास 262 वर्ष पुराना है. मुगलकाल में ग्वालियर के मराठा शासक महादजी सिंधिया ने गोकुलपुरा स्थित श्री सिद्धि विनायक मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था. यहां से आज तक गणेश चतुर्थी के दिन शोभायात्रा निकालने की प्रथा है.

गोकुलपुरा स्थित मंशा देवी गली में मुगल काल में वर्ष 1646 में मराठाओं और गुजराती नागरों ने सिद्धि विनायक मंदिर की नींव रखी थी. जो गुजराती नागर और मराठा परिवारों की आस्था का केंद्र था. इस मंदिर से ग्वालियर के शासक महादजी सिंधिया का इतिहास भी जुड़ा है. आगरा प्रवास के दौरान महाराज महादजी सिंधिया ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था. इस मंदिर को डेरा गणेश का नाम दिया था. वो यहां नियमित पूजा-अर्चना कराते रहे. ग्वालियर राज्य का विस्तार होने पर उन्होंने मंदिर की देखभाल व नियमित खर्च को प्रतिदिन आठ आना की सनद मराठा शासन के नाम जारी की थी. मंदिर के पुजारी के पाास यह धरोहर आज भी सुरक्षित है.

सिद्धि विनायक मंदिर के बारे में बताते पंडित ज्ञानेश शास्त्री.

कालांतर में यह मंदिर सिद्धि विनायक के नाम से प्रसिद्ध हो गया. पुजारी पं. ज्ञानेश शास्त्री बताते हैं कि गणेश चतुर्थी के दिन मंदिर से शाही संरक्षण में गणेश जी की शोभायात्रा की शुरुआत महादजी सिंधिया ने ही कराई थी. वर्ष 1860 तक निरंतर शोभायात्रा जारी रही. एक हमले में यह बंद हो गई. देश की आजादी के बाद वर्ष 1959 से यात्रा की दोबारा शुरुआत हुई. 2019 तक हर वर्ष शोभायात्रा निकाली गई. वर्ष 2020 में कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते यात्रा नहीं निकाली जा सकी थी. इस बार बुधवार को गणेश चतुर्थी पर शाम को मंदिर से धूमधाम से शोभायात्रा निकाली जाएगी.

भगवान गणेश पर चढ़ता है चोला

इस प्राचीन सिद्धि विनायक मंदिर में भगवान गणेश को सिंदूर का चोला चढ़ाया जाता है. इसी चोले से गणेश जी का श्रृंगार होता है. वहीं, इस मंदिर में स्थापित मूर्ति का आकार चतुर्भुजी है. गणेश जी की सूड़ उत्तर दिशा की ओर है. इससे इनकी मान्यता ओर बढ़ जाती है. मंदिर के पंडित ज्ञानेश शास्त्री बताते हैं कि इस मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक है. यहां दूर-दूर से भक्त आते हैं.

यह भी पढ़ें: काशी में बप्पा का अनोखा भक्त, बंद आंखों से बड़ी खूबसूरती और आस्था के साथ बनाते हैं पेंटिंग

गणेश चतुर्थी पर निकलती है शोभायात्रा

मंदिर के महंत ज्ञानेश शास्त्री के अनुसार, ग्वालियर घराने के शासक महादजी सिंधिया ने भगवान गणेश की शोभायात्रा की शुरुआत कराई थी. जो आज तक निरंतर चालू है. इस शोभायात्रा में चंदन की लकड़ी से बने भगवान गणेश को सवारी पर बैठाकर क्षेत्र भ्रमण कराया जाता है. इस चंदन की प्रतिमा को वाराणसी के कारीगरों ने 100 वर्ष पूर्व बनाया था, जो आज तक सही-सलामत है.

आगरा: गणेश चतुर्थी को लेकर लोगों में खासा उत्साह है. गणेश जी को घर लाने के लिए भक्तों ने तमाम तरह की तैयारियां की हैं. लेकिन, आगरा में गणेश उत्सव का इतिहास 262 वर्ष पुराना है. मुगलकाल में ग्वालियर के मराठा शासक महादजी सिंधिया ने गोकुलपुरा स्थित श्री सिद्धि विनायक मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था. यहां से आज तक गणेश चतुर्थी के दिन शोभायात्रा निकालने की प्रथा है.

गोकुलपुरा स्थित मंशा देवी गली में मुगल काल में वर्ष 1646 में मराठाओं और गुजराती नागरों ने सिद्धि विनायक मंदिर की नींव रखी थी. जो गुजराती नागर और मराठा परिवारों की आस्था का केंद्र था. इस मंदिर से ग्वालियर के शासक महादजी सिंधिया का इतिहास भी जुड़ा है. आगरा प्रवास के दौरान महाराज महादजी सिंधिया ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था. इस मंदिर को डेरा गणेश का नाम दिया था. वो यहां नियमित पूजा-अर्चना कराते रहे. ग्वालियर राज्य का विस्तार होने पर उन्होंने मंदिर की देखभाल व नियमित खर्च को प्रतिदिन आठ आना की सनद मराठा शासन के नाम जारी की थी. मंदिर के पुजारी के पाास यह धरोहर आज भी सुरक्षित है.

सिद्धि विनायक मंदिर के बारे में बताते पंडित ज्ञानेश शास्त्री.

कालांतर में यह मंदिर सिद्धि विनायक के नाम से प्रसिद्ध हो गया. पुजारी पं. ज्ञानेश शास्त्री बताते हैं कि गणेश चतुर्थी के दिन मंदिर से शाही संरक्षण में गणेश जी की शोभायात्रा की शुरुआत महादजी सिंधिया ने ही कराई थी. वर्ष 1860 तक निरंतर शोभायात्रा जारी रही. एक हमले में यह बंद हो गई. देश की आजादी के बाद वर्ष 1959 से यात्रा की दोबारा शुरुआत हुई. 2019 तक हर वर्ष शोभायात्रा निकाली गई. वर्ष 2020 में कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते यात्रा नहीं निकाली जा सकी थी. इस बार बुधवार को गणेश चतुर्थी पर शाम को मंदिर से धूमधाम से शोभायात्रा निकाली जाएगी.

भगवान गणेश पर चढ़ता है चोला

इस प्राचीन सिद्धि विनायक मंदिर में भगवान गणेश को सिंदूर का चोला चढ़ाया जाता है. इसी चोले से गणेश जी का श्रृंगार होता है. वहीं, इस मंदिर में स्थापित मूर्ति का आकार चतुर्भुजी है. गणेश जी की सूड़ उत्तर दिशा की ओर है. इससे इनकी मान्यता ओर बढ़ जाती है. मंदिर के पंडित ज्ञानेश शास्त्री बताते हैं कि इस मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक है. यहां दूर-दूर से भक्त आते हैं.

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गणेश चतुर्थी पर निकलती है शोभायात्रा

मंदिर के महंत ज्ञानेश शास्त्री के अनुसार, ग्वालियर घराने के शासक महादजी सिंधिया ने भगवान गणेश की शोभायात्रा की शुरुआत कराई थी. जो आज तक निरंतर चालू है. इस शोभायात्रा में चंदन की लकड़ी से बने भगवान गणेश को सवारी पर बैठाकर क्षेत्र भ्रमण कराया जाता है. इस चंदन की प्रतिमा को वाराणसी के कारीगरों ने 100 वर्ष पूर्व बनाया था, जो आज तक सही-सलामत है.

Last Updated : Aug 31, 2022, 12:33 PM IST
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