आगरा: सूचना, संचार और संगीत से मनोरंजन का माध्यम रेडियो है. रेडियो के कार्यक्रम में बच्चे, युवा, महिला और बुजुर्गों के मनोरंजन का समावेश था. प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के साथ ही भारत की आजादी में रेडियो की भूमिका अहम रही है. भले ही आज स्मार्टफोन का चलन है लेकिन, रेडियो की दीवानगी अभी कम नहीं हुई है. बच्चे, युवा, महिला, बुजुर्ग, तमाम प्रोफेशनल्स सहित करोड़ों लोग हर दिन रेडियो सुनते हैं. पीएम मोदी के 'मन की बात' से एक बार फिर रेडियो की पहुंच लगातार बढ़ रही है. आज विश्व रेडियो दिवस है. इस पर ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट...
विश्व में सबसे पहले रेडियो का प्रसारण 24 दिसंबर 1906 को कनाडाई वैज्ञानिक रेगिनाल्ड फेसेंडेन की अगुवाई में किया गया था. उस समय अटलांटिक महासागर में समुद्री जहाजों के रेडियो ऑपरेटर को वाइलन का संगीत सुनाया गया था. लेकिन, वर्ष 1900 में ही भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु ने रेडियो के परीक्षण की शुरुआत कर दी थी. दुनिया का सबसे पहला रेडियो स्टेशन न्यूयॉर्क में सन् 1918 में शुरू हुआ था. प्रथम विश्व युद्ध में रेडियो का उपयोग सिर्फ नौसेना तक सीमित था. उस समय गैर फौजी लोगों के लिए रेडियो निषेध था. द्वितीय विश्व युद्ध में रेडियो के जरिए सैनिकों की लोकेशन ट्रेस करना शुरू हुई. युद्ध के बाद ब्रिटिश सरकार ने सभी ट्रांसमिशन जमा कराने के निर्देश दिए और रेडियो के लाइसेंस बंद कर दिए थे.
भारत में रेडियो की शुरुआत
भारत की बात करें तो सन् 1927 तक यहां कई रेडियो क्लब की स्थापना हो चुकी थी, लेकिन उससे पहले भी अनाधिकृत रूप से मुंबई, कोलकाता, लाहौर और मद्रास में रेडियो प्रसारण किया जा रहा था. वर्ष 1936 में इंपोरियल रेडियो ऑफ इंडिया की शुरुआत हुई. आगे चलकर जिसका नाम 'ऑल इंडिया रेडियो' हुआ. सन् 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत होने पर भारत में भी रेडियो के सारे लाइसेंस रद्द कर दिए. यहां भी ट्रांसमीटर को सरकार ने जमा करने के आदेश दिए थे.
देश की आजादी में रेडियो का योगदान
जब सन् 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत होने पर ब्रिटिश अधिकारियों की ओर से रेडियो लाइसेंस रद्द करने और ट्रांसमीटर को जमा कराने के आदेश हुए, उस समय बॉम्बे टेक्निकल इंस्टिट्यूट बायकोला के प्रिंसिपल नरीमन प्रिंटर ने अपना ट्रांसमीटर खोल कर उसके पुर्जे अलग-अलग छिपा दिए. जब गांधीजी ने 'अंग्रेजो भारत छोड़ो' का नारा दिया तो 9 अगस्त 1942 को गांधी सहित अन्य तमाम नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया. प्रेस पर पाबंदी लगा दी गई. उसी समय कांग्रेस के नेताओं के साथ मिलकर नरीमन प्रिंटर ने पुर्जे पुर्जे जोड़कर अपना ट्रांसमीटर बनाया. सन् 27 अगस्त 1942 को नेशनल कांग्रेस रेडियो का प्रसारण शुरू किया गया था, जिसके बाद ब्रिटिश हुकूमत हिल गई थी.
नेताजी ने रेडियो से दिया था संदेश
नवंबर 1941 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लोगों को एकजुट करने के लिए 'रेडियो जर्मनी' से एक संदेश दिया था. इतिहास में यह संदेश दर्ज है. नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भारतीयों से कहा था कि, 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा'. इसके बाद सन् 1942 में 'आजाद हिंद रेडियो' की स्थापना हुई. जो पहले जर्मनी फिर सिंगापुर और रंगून से भारतीयों के लिए समाचार प्रसारित करता था.
यूं हुई विश्व रेडियो की शुरुआत
सन् 2010 में पहली बार स्पेन रेडियो एकादशी ने विश्व रेडियो दिवस का प्रस्ताव रखा था. 2011 में यूनिस्को की महासभा ने 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस घोषित किया. मगर, 14 जनवरी 2013 को संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने इसे मंजूरी थी. तभी से लगातार रेडियो दिवस मनाया जा रहा है.
ब्रिटिश काल में समाचार सुनने पर पाबंदी थी
इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' का कहना है कि जिस तरह से इस समय बाइक या कार लेने के लिए लोगों को रजिस्ट्रेशन कराना पड़ता है, प्रार्थना पत्र देना पड़ता है वैसे ही पहले रेडियो के लिए रजिस्ट्रेशन कराना पड़ता था. रेडियो के लिए लाइसेंस जारी होता था, इसके लिए डाकखाने में आवेदन करना पड़ता था, फिर रेडियो का लाइसेंस मिलता था. इस लाइसेंस में रेडियो के मॉडल से लेकर उसकी कंपनी और चेसिस नंबर तक दर्ज होता था. उसका टैक्स किस डाकघर में जमा हुआ, यह सब लाइसेंस पर होता था. उन्होंने बताया कि उनके पास सन् 1968 का रेडियो का लाइसेंस है, जो उनके भाई के नाम पर था. यह रिवाज अंग्रेजों के समय रेडियो चला आ रहा था क्योंकि, ब्रिटिश काल में लोगों के समाचार सुनने पर भी पाबंदी थी. अंग्रेजों ने ही रेडियो के लाइसेंस जारी करने की शुरुआत की थी.
रेनबो एफएम दे रहा निजी एफएम को टक्कर
आकाशवाणी आगरा के प्रोग्राम एग्जीक्यूटिव अनेंद्र सिंह ने बताया कि रेडियो जन-जन तक प्रशासनिक अमला की बात, सरकारी योजनाओं को पहुंचाने का काम करता था और अभी भी कर रहा है. मगर, समय के साथ बदलाव आया, लोगों का नजरिया बदला, टेक्नोलॉजी बदली. रेडियो का मकसद सूचना के साथ ही इंटरटेनमेंट भी देना था. उन्होंने बताया कि समय के साथ इंटरटेनमेंट का जो पुट था वह बढ़ा है. निजी एफएम रेडियो ने उसे हथियाने का प्रयास किया और काफी हद तक वह सफल भी हुआ. अगर इंफोटेनमेंट की बात करें तो अब रेडियो ने नई तकनीक के साथ मजबूत किया है. आकाशवाणी के रेनबो एफएम भी अब बड़े बड़े शहरों में शुरू हो गए हैं. हम अपने आपको व्यवस्थित तरीके से, व्यवस्थित तरीके से एफएम कल्चर में लोगों के सामने पेश कर रहे हैं. एफएम रेनबो की पहुंच भी अब जन जन तक हो रही है.
पीएम मोदी ने की 'मन की बात'
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रेडियो पर अक्टूबर-2014 में पहली बार 'मन की बात' कार्यक्रम के जरिए जनता से संपर्क किया था. उस समय प्रधानमंत्री ने लोगों से गांधीजी के प्रिय खादी के उत्पादों को पहनने की अपील की थी. स्वामी विवेकानंद का दृष्टांत भी सुनाया था. इसके साथ ही लोगों से सुझाव भी मांगे थे. उनका जिक्र तभी से पीएम अपने 'मन की बात' कार्यक्रम में करते हैं.
पीएम के 'मन की बात' से फिर बना जनता का जुड़ाव
आकाशवाणी आगरा के प्रोग्राम एग्जीक्यूटिव अनेंद्र सिंह ने बताया कि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'मन की बात' का कार्यक्रम उनकी बात लोगों तक पहुंचाने में रेडियो बहुत हद तक कामयाब हुआ है. उनसे एक बार फिर लोगों का रेडियो से जुड़ाव बढ़ता जा रहा है. जो निजी एफएम के आने से ब्रेक हुआ था, वो फिर से बना है. अब लोग इसको पसंद कर रहे हैं, रेडियो को सुन भी रहे हैं. तकनीकी के साथ रेडियो भी आगे बढ़ रहा है. अब मोबाइल पर भी आकाशवाणी ने अपना एप शुरू किया है. यह एप 'न्यूज ऑन एयर' है. जिसके जरिए आप किसी भी हिंदुस्तान के रेडियो स्टेशन को और कहीं भी अपने मोबाइल पर सुन सकते हैं.
एक नजर
- देशभर में आकाशवाणी के 420 स्टेशन हैं.
- 23 भाषाओं में आकाशवाणी से प्रसारण होता है.
- 14 बोलियों में आकाशवाणी से प्रसारण होता है.
- 214 से ज्यादा देशभर में कम्युनिटी रेडियो स्टेशन.