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KARGIL WAR कारगिल विजय दिवस: वीरता के अद्भुत मिसाल थे शहीद धर्मवीर

आगरा जिले के खंदौली थाना क्षेत्र के मलूपुर गांव निवासी धर्मवीर ने कारगिल युद्ध (kargil war) में दुश्मनों के नापाक मंसूबों को नाकाम करते हुए अपने प्राणों की आहूति दे दी थी. भारत मां के वीर सपूतों ने कारगिल की ऊंची चोटियों से दुश्मनों के चंगुल से देश की रक्षा की थी. इन्हीं शहीदों की याद में हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है.

कारगिल विजय दिवस
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Published : Jul 26, 2021, 5:33 AM IST

आगरा: आज पूरे देश में 22वां कारगिल विजय दिवस (kargil Vijay Diwas) मनाया जा रहा है. 26 जुलाई 1999 को आज ही के दिन भारतीय सेना ने कारगिल युद्ध (Kargil War) के दौरान चलाए गए ऑपरेशन विजय (Operation Vijay) को सफलतापूर्वक अंजाम देकर भारत भूमि को घुसपैठियों के चंगुल से मुक्त कराया था. इस विजय अभियान में आगरा के खंदौली थाना क्षेत्र के गांव मलूपुर के रहने वाले धर्मवीर भी शामिल थे.

कारगिल युद्ध के समय धर्मवीर अविवाहित थे और दुश्मनों के नापाक मंसूबों को नाकाम करते हुए शहीद हो गए. बेटे की शहादत का जिक्र होते ही मां की आखों में आंसू और हृदय गर्व से भर जाता है. बूढ़ी मां की इच्छा है कि उनके छोटे बेटे का इकलौता बेटा चेतन भी आर्मी में जाए. बेटा धर्मवीर की तरह ही देश की सेवा और रक्षा करे. कारगिल युद्ध (Kargil War) में आगरा के 10 सपूत शहीद हुए थे. उन वीरों की वीरता की कहानी आज भी लोगों की जुबान पर है.

स्पेशल स्टोरी

शहीद धर्मवीर की मां श्रीमती देवी ने बताया कि, बड़ा बेटा धर्मवीर 17 जाट रेजीमेंट में सिपाही था. परिवार में बड़ा बेटा धर्मवीर, छोटा बेटा रवि और चार बेटियां थीं. बेटा धर्मवीर महज 21 साल की उम्र में कारगिल में शहीद हो गए. तब उनकी शादी भी नहीं हुई थी. वहीं, घर पर एक हादसे में करंट लगने से छोटा बेटा रवि भी अपने पीछे पत्नी और एक बेटे को छोड़कर चला गया. शहीद धर्मवीर की मां श्रीमती देवी ने बताया कि, बेटा धर्मवीर ने कारगिल पर जीत तो दिला दी, पर खुद शहीद हो गए. उनकी शहादत के बाद गांव में शहीद धर्मवीर की प्रतिमा लगाकर एक पार्क बनाया गया है. भारतीय सेना (Indian Army) की ओर से हर साल कारगिल युद्ध (Kargil War) की विजय और शहीदों के सम्मान में एक बड़ा कार्यक्रम होता है. शहीद धर्मवीर की मां श्रीमती देवी ने बताया कि, सेना से कारगिल में होने वाले सम्मान समारोह का निमंत्रण आया है. सेना के बुलावे पर बेटी और उसके बेटा और नाती चेतन चौधरी के साथ समारोह में शामिल होंगी. पिछली साल कोरोना संक्रमण के चलते सेना ने विजय दिवस (Vijay Diwas) पर सम्मान के लिए नहीं बुलाया था. सेना की ओर से एक सम्मान पत्र जरूर घर पर आया था. मां श्रीमति देवी का कहना है कि बेटे के शहीद होने पर पेट्रोल पंप मिला. मगर, नौकरी किसी को नहीं मिली थी. मेरे छोटे बेटे स्वर्गीय रवि का एकलौता बेटा चेतन चौधरी है. जो मेरे वंश की आखिरी आस है. मेरी इच्छा है कि, नाती चेतन 21 का होकर सेना में जाए. वह भी बेटे धर्मवीर की तरह देश की सेवा और रक्षा करे. शहीद धर्मवीर का भतीजा चेतन चौधरी भी अपने ताऊ की तरह फौज में जाना चाहता है. चेतन ने बताया कि, वह भी ताऊ की तरह देश की सेवा करना चाहता है. वह अभी सातवीं में पढ़ रहा है और एनडीए से लेफ्टिनेंट बनकर भारत मां की रक्षा करेगा.

कारगिल पृष्ठभूमि

कारगिल युद्ध (kargil war) को कारगिल संघर्ष के नाम से भी जाना जाता है, भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में मई के महीने में कश्मीर के कारगिल जिले से प्रारंभ हुआ था. आज से ठीक 22 साल पहले मई-जुलाई 1999 के बीच पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा को पार कर कारगिल की उंचाइयों पर कब्जा करने का दुस्साहस दिखाया था, जहां से भारतीय फौज पर निशाना लगाना आसान था. यह युद्ध करीब दो महीने से भी ज्यादा चला. इस युद्ध में भारतीय थलसेना व वायुसेना ने लाइन ऑफ कंट्रोल (LOC) पार न करने के आदेश के बावजूद अपनी मातृभूमि में घुसे आक्रमणकारियों को मार भगाया था. स्वतंत्रता का अपना ही मूल्य होता है, जो वीरों के रक्त से चुकाया जाता है.

लगभग दो महीने तक चला यह युद्ध करीब 18 हजार फीट की ऊंचाई पर कारगिल में लड़ा गया था. इसमें हमारे लगभग 527 से अधिक वीर योद्धा शहीद हुए थे और 1300 से ज्यादा घायल हो गए थे. इन शहीदों ने तिरंगे की रक्षा और भारतीय सेना की शौर्य व बलिदान की उस सर्वोच्च परम्परा का निर्वाह किया जिसकी सौगन्ध उन्होंने खाई थी. जिस राष्ट्रध्वज के आगे कभी उनका माथा सम्मान से झुका होता था, वही तिरंगा मातृभूमि के इन बलिदानी जांबाजों से लिपटकर उनकी गौरव गाथा का आजीवन बखान करता रहेगा.

आगरा: आज पूरे देश में 22वां कारगिल विजय दिवस (kargil Vijay Diwas) मनाया जा रहा है. 26 जुलाई 1999 को आज ही के दिन भारतीय सेना ने कारगिल युद्ध (Kargil War) के दौरान चलाए गए ऑपरेशन विजय (Operation Vijay) को सफलतापूर्वक अंजाम देकर भारत भूमि को घुसपैठियों के चंगुल से मुक्त कराया था. इस विजय अभियान में आगरा के खंदौली थाना क्षेत्र के गांव मलूपुर के रहने वाले धर्मवीर भी शामिल थे.

कारगिल युद्ध के समय धर्मवीर अविवाहित थे और दुश्मनों के नापाक मंसूबों को नाकाम करते हुए शहीद हो गए. बेटे की शहादत का जिक्र होते ही मां की आखों में आंसू और हृदय गर्व से भर जाता है. बूढ़ी मां की इच्छा है कि उनके छोटे बेटे का इकलौता बेटा चेतन भी आर्मी में जाए. बेटा धर्मवीर की तरह ही देश की सेवा और रक्षा करे. कारगिल युद्ध (Kargil War) में आगरा के 10 सपूत शहीद हुए थे. उन वीरों की वीरता की कहानी आज भी लोगों की जुबान पर है.

स्पेशल स्टोरी

शहीद धर्मवीर की मां श्रीमती देवी ने बताया कि, बड़ा बेटा धर्मवीर 17 जाट रेजीमेंट में सिपाही था. परिवार में बड़ा बेटा धर्मवीर, छोटा बेटा रवि और चार बेटियां थीं. बेटा धर्मवीर महज 21 साल की उम्र में कारगिल में शहीद हो गए. तब उनकी शादी भी नहीं हुई थी. वहीं, घर पर एक हादसे में करंट लगने से छोटा बेटा रवि भी अपने पीछे पत्नी और एक बेटे को छोड़कर चला गया. शहीद धर्मवीर की मां श्रीमती देवी ने बताया कि, बेटा धर्मवीर ने कारगिल पर जीत तो दिला दी, पर खुद शहीद हो गए. उनकी शहादत के बाद गांव में शहीद धर्मवीर की प्रतिमा लगाकर एक पार्क बनाया गया है. भारतीय सेना (Indian Army) की ओर से हर साल कारगिल युद्ध (Kargil War) की विजय और शहीदों के सम्मान में एक बड़ा कार्यक्रम होता है. शहीद धर्मवीर की मां श्रीमती देवी ने बताया कि, सेना से कारगिल में होने वाले सम्मान समारोह का निमंत्रण आया है. सेना के बुलावे पर बेटी और उसके बेटा और नाती चेतन चौधरी के साथ समारोह में शामिल होंगी. पिछली साल कोरोना संक्रमण के चलते सेना ने विजय दिवस (Vijay Diwas) पर सम्मान के लिए नहीं बुलाया था. सेना की ओर से एक सम्मान पत्र जरूर घर पर आया था. मां श्रीमति देवी का कहना है कि बेटे के शहीद होने पर पेट्रोल पंप मिला. मगर, नौकरी किसी को नहीं मिली थी. मेरे छोटे बेटे स्वर्गीय रवि का एकलौता बेटा चेतन चौधरी है. जो मेरे वंश की आखिरी आस है. मेरी इच्छा है कि, नाती चेतन 21 का होकर सेना में जाए. वह भी बेटे धर्मवीर की तरह देश की सेवा और रक्षा करे. शहीद धर्मवीर का भतीजा चेतन चौधरी भी अपने ताऊ की तरह फौज में जाना चाहता है. चेतन ने बताया कि, वह भी ताऊ की तरह देश की सेवा करना चाहता है. वह अभी सातवीं में पढ़ रहा है और एनडीए से लेफ्टिनेंट बनकर भारत मां की रक्षा करेगा.

कारगिल पृष्ठभूमि

कारगिल युद्ध (kargil war) को कारगिल संघर्ष के नाम से भी जाना जाता है, भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में मई के महीने में कश्मीर के कारगिल जिले से प्रारंभ हुआ था. आज से ठीक 22 साल पहले मई-जुलाई 1999 के बीच पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा को पार कर कारगिल की उंचाइयों पर कब्जा करने का दुस्साहस दिखाया था, जहां से भारतीय फौज पर निशाना लगाना आसान था. यह युद्ध करीब दो महीने से भी ज्यादा चला. इस युद्ध में भारतीय थलसेना व वायुसेना ने लाइन ऑफ कंट्रोल (LOC) पार न करने के आदेश के बावजूद अपनी मातृभूमि में घुसे आक्रमणकारियों को मार भगाया था. स्वतंत्रता का अपना ही मूल्य होता है, जो वीरों के रक्त से चुकाया जाता है.

लगभग दो महीने तक चला यह युद्ध करीब 18 हजार फीट की ऊंचाई पर कारगिल में लड़ा गया था. इसमें हमारे लगभग 527 से अधिक वीर योद्धा शहीद हुए थे और 1300 से ज्यादा घायल हो गए थे. इन शहीदों ने तिरंगे की रक्षा और भारतीय सेना की शौर्य व बलिदान की उस सर्वोच्च परम्परा का निर्वाह किया जिसकी सौगन्ध उन्होंने खाई थी. जिस राष्ट्रध्वज के आगे कभी उनका माथा सम्मान से झुका होता था, वही तिरंगा मातृभूमि के इन बलिदानी जांबाजों से लिपटकर उनकी गौरव गाथा का आजीवन बखान करता रहेगा.

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