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डॉ. भीम राव आंबेडकर विश्वविद्यालय से वसूले गए 8 करोड़ रुपये होंगे वापस - agra university

सत्र 2010-11 में विश्वविद्यालय द्वारा तीन लाख प्रवेश फार्म की बिक्री की गई थी. इस पर उत्तर प्रदेश मूल्य संवर्धित कर अधिनियम की धारा 28 के तहत तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर डॉ. भारती योगेश ने इलाहाबाद बैंक में विश्वविद्यालय के खाते को कुर्क करते हुए लगभग साढ़े आठ करोड़ रुपये वसूले थे.

डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय
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Published : Dec 12, 2020, 12:59 PM IST

आगराः डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय की वाणिज्य कर अधिकरण न्यायालय में आठ साल तक चले मुकदमे के बाद आखिरकार फैसला आ गया है. हाईकोर्ट ने विश्वविद्यालय के पक्ष में फैसला दिया है. 2010-11 में वाणिज्य कर विभाग द्वारा फार्म बिक्री पर विश्वविद्यालय से वसूले गए लगभग आठ करोड़ रुपये की वापसी के आदेश पारित हो चुके हैं. इस खबर से विश्वविद्यालय में खुशी का माहौल है.

खाते को कुर्क कर वसूले थे 8 करोड़ रुपये
सत्र 2010-11 में विश्वविद्यालय द्वारा तीन लाख प्रवेश फार्म की बिक्री की गई थी. इस पर उत्तर प्रदेश मूल्य संवर्धित कर अधिनियम की धारा 28 के तहत तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर डॉ. भारती योगेश ने इलाहाबाद बैंक में विश्वविद्यालय के खाते को कुर्क करते हुए लगभग साढ़े आठ करोड़ रुपये वसूले थे. उस समय के तत्कालीन कुलपति प्रो. केएन त्रिपाठी व वित्ताधिकारी रामसागर पांडेय की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं की गई.

2012 में दाखिल हुई थी सेकंड अपील
प्रो. केएन त्रिपाठी के जाने के बाद प्रो. डीएन जौहर ने कुलपति का कार्यभार संभाला. उनके संज्ञान में यह मामला आया तो उन्होंने विश्वविद्यालय के अधिवक्ता डॉ. अरुण कुमार दीक्षित को पैसा वापस लाने की जिम्मेदारी सौंपी. अधिवक्ता डॉ. दीक्षित ने वाणिज्य कर अधिकरण न्यायालय में 2012 में सेकेंड अपील दाखिल की. वहां से केस की सुनवाई डिप्टी कमिश्नर वाणिज्य कर को करने के लिए आदेश हुए.

हाईकोर्ट ने ब्याज सहित पैसा वापस करने का दिया आदेश
सुनवाई के दौरान डॉ. दीक्षित ने दलील दी कि विश्वविद्यालय को डीलर नहीं माना जा सकता. आठ करोड़ रुपये गलत लिए गए हैं. इसे लेकर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के कई निर्णय दाखिल किए गए. इस मामले की बुधवार को हुई सुनवाई में डिप्टी कमिश्नर को वाणिज्य कर खंड 20 ने विश्वविद्यालय को पूरा पैसा ब्याज सहित वापस देने का आदेश पारित किया.

कुलपति ने दी बधाई
इस पूरे मामले पर कुलपति प्रो. अशोक मित्तल ने अधिवक्ता डॉ. दीक्षित को बधाई दी. कुलपति का कहना है कि आठ सालों की जंग के बाद यह महत्वपूर्ण फैसला विश्वविद्यालय के हक में हुआ है.

आगराः डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय की वाणिज्य कर अधिकरण न्यायालय में आठ साल तक चले मुकदमे के बाद आखिरकार फैसला आ गया है. हाईकोर्ट ने विश्वविद्यालय के पक्ष में फैसला दिया है. 2010-11 में वाणिज्य कर विभाग द्वारा फार्म बिक्री पर विश्वविद्यालय से वसूले गए लगभग आठ करोड़ रुपये की वापसी के आदेश पारित हो चुके हैं. इस खबर से विश्वविद्यालय में खुशी का माहौल है.

खाते को कुर्क कर वसूले थे 8 करोड़ रुपये
सत्र 2010-11 में विश्वविद्यालय द्वारा तीन लाख प्रवेश फार्म की बिक्री की गई थी. इस पर उत्तर प्रदेश मूल्य संवर्धित कर अधिनियम की धारा 28 के तहत तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर डॉ. भारती योगेश ने इलाहाबाद बैंक में विश्वविद्यालय के खाते को कुर्क करते हुए लगभग साढ़े आठ करोड़ रुपये वसूले थे. उस समय के तत्कालीन कुलपति प्रो. केएन त्रिपाठी व वित्ताधिकारी रामसागर पांडेय की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं की गई.

2012 में दाखिल हुई थी सेकंड अपील
प्रो. केएन त्रिपाठी के जाने के बाद प्रो. डीएन जौहर ने कुलपति का कार्यभार संभाला. उनके संज्ञान में यह मामला आया तो उन्होंने विश्वविद्यालय के अधिवक्ता डॉ. अरुण कुमार दीक्षित को पैसा वापस लाने की जिम्मेदारी सौंपी. अधिवक्ता डॉ. दीक्षित ने वाणिज्य कर अधिकरण न्यायालय में 2012 में सेकेंड अपील दाखिल की. वहां से केस की सुनवाई डिप्टी कमिश्नर वाणिज्य कर को करने के लिए आदेश हुए.

हाईकोर्ट ने ब्याज सहित पैसा वापस करने का दिया आदेश
सुनवाई के दौरान डॉ. दीक्षित ने दलील दी कि विश्वविद्यालय को डीलर नहीं माना जा सकता. आठ करोड़ रुपये गलत लिए गए हैं. इसे लेकर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के कई निर्णय दाखिल किए गए. इस मामले की बुधवार को हुई सुनवाई में डिप्टी कमिश्नर को वाणिज्य कर खंड 20 ने विश्वविद्यालय को पूरा पैसा ब्याज सहित वापस देने का आदेश पारित किया.

कुलपति ने दी बधाई
इस पूरे मामले पर कुलपति प्रो. अशोक मित्तल ने अधिवक्ता डॉ. दीक्षित को बधाई दी. कुलपति का कहना है कि आठ सालों की जंग के बाद यह महत्वपूर्ण फैसला विश्वविद्यालय के हक में हुआ है.

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