आगराः ताजनगरी की जामा मस्जिद एक बार फिर चर्चाओं में है. पहले 15 अगस्त-2021 में ध्वजारोहण और राष्ट्रगान के विरोध की वजह से खूब हल्ला मचा था. जिससे शहर मुफ्ती और उनके बेटे के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज हुआ. अब आगरा मेट्रो प्रोजेक्ट के भूमिगत जामा मस्जिद मेट्रो स्टेशन के नाम पर मामला गरमा गया है. मेट्रो की डीपीआर में भूमिगत मेट्रो स्टेशन का नाम जामा मस्जिद है. लेकिन अब पूर्व मंत्री व आगरा छावनी विधायक डॉ. जीएस धर्मेश में इस मेट्रो स्टेशन का नाम श्री मनकामेश्वर महादेव मंदिर करने की मांग की है. इस पर मुस्लिम समुदाय नारजगी जता रहा है. इससे आगरा मेट्रो प्रोजेक्ट से ज्यादा जामा मस्जिद चर्चा में है.
आगरा मेट्रो परियोजना के तहत पुरानी मंडी चौराहा से जामा मस्जिद तक भूमिगत मेट्रो ट्रैक बन रहा है. इस ट्रैक पर जामा मस्जिद मेट्रो स्टेशन बनना प्रस्तावित है. लेकिन गुरुवार को आगरा के दो दिवसीय दौरे पर आए डिप्टी सीएम और आगरा मंडल के प्रभारी मंत्री केशव प्रसाद मौर्य से मेट्रो स्टेशन का निरीक्षण के समय आगरा छावनी के विधायक व पूर्व राज्य मंत्री डॉ. जीएस धर्मेश ने जामा मस्जिद मेट्रो स्टेशन का नाम बदलने और इस मेट्रो स्टेशन का नाम श्री मनकामेश्वर महादेव मंदिर करने की मांग की है. जिस पर डिप्टी सीएम ने मौखिक मुहर लगा दी है. इससे मेट्रो स्टेशन के नाम पर सियासत गरमा गई है.
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मुमताज की मौत के बाद शाहजहां ने दी थी आधी संपत्ति
इतिहासकार राजकिशोर राजे बताते हैं कि, मुगल शहंशाह शाहजहां और मुमताज की सबसे बड़ी बेटी जहांआरा थी. उसका जन्म 2 अप्रैल-1614 को हुआ था. जब मुमताज की मौत हुई थी. तब जहांआरा महज 17 साल की थी. मुमताज के निधन के बाद शाहजहां ने उसकी संपत्ति की आधी संपत्ति जहांआरा को दी और बाकी की संपत्ति अन्य बच्चों में बांटी थी. उस समय जहांआरा को करीब 2 करोड़ रुपये का सालाना वजीफा (जेब खर्च) मिलता था.
सबसे अमीर शहजादी थी जहांआरा
इतिहासकार राजकिशोर राजे बताते हैं कि, जहांआरा मुगलकाल की सबसे अमीर शहजादी थी. मुगलकाल में खर्चे के लिए शहजादे और शहजादियों को वजीफा (जेब खर्च) दिया जाता था. जहांआरा ने अपने वजीफा की रकम से सन् 1643 से 1648 के बीच जामा मस्जिद का निर्माण कराया था. सन् 1644 में जब जहांआरा एक हादसे में झुलस गईं थी. तब जामा मस्जिद का काम बंद रहा था. दोबारा पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गईं, तब फिर से जामा मस्जिद का निर्माण कार्य शुरू हुआ था. जामा मस्जिद 271 फुट लंबी और 270 फीट चौड़ी है. जिसमें करीब पांच लाख रुपए खर्च हुए थे. आगरा की जामा मस्जिद उत्तर भारत की विशाल मस्जिदों में से एक है. जहांआरा ने लाल बलुआ पत्थर से जामा मस्जिद बनाई है. जामा मस्जिद की दीवार में लगी टाइल्स की आकृति ज्यामितीय है. जामा मस्जिद की छत पर तीन गुम्बद हैं. एक बड़ा दालान भी बना हुआ है. मस्जिद के दोनों और बरामदे बने हैं. जामा मस्जिद में एक साथ 10 हजार लोग नमाज पढ़ सकते हैं. भारत पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की संरक्षित स्मारक में जामा मस्जिद शामिल है.
पिता का दिया अंत समय तक साथ
इतिहास का राजकिशोर राजे बताते हैं कि, बेगम मुमताज के मौत के बाद शाहजहां उदास रहने लगा था. इसके बाद औरंगजेब ने दारा शिकोह को बंदी बनाकर मरवा दिया. औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहां को भी आगरा किला के मुसम्मन बुर्ज में कैद कर लिया था. कैद में शाहजहां की देखभाल जहांआरा करती थी. पिता के अंत समय तक जहांआरा उसके साथ रहीं. जब सन् 1666 में शाहजहां की मृत्यु हो गई तो जहांआरा ने औरंगजेब से सामंजस्य बनाया और दिल्ली चली गईं. वहां पर 16 सितंबर 1681 को जहांआरा का निधन हो गया. जहांआरा की कब्र दरगाह हजरत निजामुद्दीन में स्थित है.
अंग्रेजों ने बना दिया था घुड़साल
इतिहासकार राजकिशोर राजे बताते हैं कि, सन् 1857 के गदर के दौरान अंग्रेजों ने जामा मस्जिद पर कब्जा कर लिया था. अंग्रेज जामा मस्जिद से कीमती सामान अपने साथ ले गए और जामा मस्जिद को घुड़साल बना दिया. 8 साल तक जामा मस्जिद को घुड़साल के रूप में इस्तेमाल किया था. इसके बाद सन 1865 में अंग्रेजों ने मुस्लिम समुदाय को जामा मस्जिद फिर से सुपुर्द कर दी थी.
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