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महिलाओं की 'मूक क्रांति' अब 'मुखर क्रांति' में बदली, 'नारी शक्ति वंदन अधिनियम' से और बढेगी गारंटी: कुंवर मानवेंद्र सिंह

आगरा में नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2023 (Nari Shakti Vandan Act in Agra) की विचार गोष्ठी में सभापति कुंवर मानवेंद्र सिंह (Kunwar Manvendra Singh in agra) शामिल हुए. इस दौरान उन्होंने कहा कि महिलाओं की 'मूक क्रांति' अब 'मुखर क्रांति' में बदली है. नारी शक्ति वंदन अधिनियम से देश में बदलाव आएगा.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 18, 2023, 10:00 PM IST

आगरा: ताजनगरी में नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2023 विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया. जिसमें प्रमुख सचिव विधान परिषद राजेश सिंह, विधान परिषद सदस्य विजय शिवहरे, प्रो शशि शर्मा, कवयित्री श्रुति सिन्हा, प्रो. ब्रजेश चंद्रा समेत अन्य विद्वान वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्ति किए. सभापति कुंवर मानवेंद्र सिंह ने कहा कि 'मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस विचार गोष्ठी के माध्यम से नारी शक्ति वंदन अधिनियम विषय पर विद्वान वक्ताओं के विचार देश के विकास और लोकतंत्र की मजबूती के लिए लाभदायक सिद्ध होंगे. संगोष्ठी से प्राप्त विचारों को सांविधानिक और संसदीय संस्थान केंद्रीय शाखा को प्रेषित किया जाएगा'.

27 साल बाद अधिनियम बना वास्तविकता: मानवेंद्र सिंह ने कहा कि 'दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और अब दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश में निर्णय लेने वाली संस्थाओं के उच्चतम पदों पर अधिक महिलाओं का होना उचित है. ये कानून एक परिवर्तनकारी कानून है. जो लैंगिक समानता और समतावाद को बढ़ावा देता है. 27 वर्ष तक इधर उधर भटकने के बाद महिलाओं के लिए आरक्षण को सक्षम करने वाला अधिनियम एक वास्तविकता बन गया है'.

समाज और देश को आगे बढ़ाने महिलाओं की हिस्सेदारी जरूरी: सभापति कुंवर मानवेंद्र सिंह ने कहा कि महिलाओं के लिए लोकसभा और विधानसभाओं में एक तिहाई सीटों के आरक्षण की गारंटी देता है. हालांकि, इसका क्रियान्वयन अभी कुछ वर्ष दूर है. परिसीमन प्रक्रिया और जनगणना के बाद यह ऐतिहासिक विधेयक लागू होगा. संसद में एक स्वर से महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को प्रमुखता से स्वीकार करना स्पष्ट संकेत है कि सभी राजनीतिक दल इस सच्चाई को भलीभांति जान गए हैं. परिवार ही नहीं, समाज और देश को आगे बढ़ाने के मिशन में महिलाओं को सक्रिय हिस्सेदारी बेहद जरूरी है. नए भारत के निर्माण के लक्ष्यों को इससे ही हासिल किया जा सकता है. ये सच्चाई छिपी हुई नहीं है. पुरुष वर्चस्व वाले समाज में महिलाओं को परिवार के मामलों में निर्णय की प्रक्रिया में भागीदार नहीं बनाया जाता है.

इसे भी पढ़े-काशी से दिल्ली के लिए एक और वंदे भारत, दिल्ली के सफर का जानें रूट और समय

चार पीएम के 11 बार के प्रयास भी धराशायी रहे: विधान परिषद सदस्य विजय शिवहरे ने कहा कि एक बारगी ताज्जुब होता है कि जिस विधेयक को पारित कराने में 27 साल का लम्बा समय लगा है. चार-चार प्रधानमंत्रियों के 11 बार के प्रयास भी धराशायी रहे. जिसे वर्तमान सरकार ने अपने कार्यकाल के नौंवे वर्ष में कैसे हासिल कर लिया, वो भी आम राय से. महिलाओं में आई राजनीतिक चेतना और उनकी भागीदारी ने निःसन्देह विधेयक के पक्ष में आम राय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. बीते लोकसभा चुनाव में महिला मतदाताओं ने पुरुषों के 55.26 प्रतिशत की तुलना में 59.92 प्रतिशत मतदान किया था. जो 4.06 प्रतिशत अधिक था. चुनाव दर चुनाव यह ट्रेंड चलता आ रहा है. सन 2019 के लोकसभा चुनाव में विजयी महिलाओं प्रतिशत की संख्या 82 में बढ़ोत्तरी हुई है. जो कुल संख्या का 15 प्रतिशत है. जबकि, 2014 के आम चुनाव में विजयी महिलाओं की संख्या 78 थी. महिलाओं की यह मूक क्रांति अब मुखर क्रांति में बदल गई है.

पीएम मोदी की सोच का परिणाम: विधान परिषद सदस्य राजेश सिंह ने कहा कि पीएम मोदी ने गर्भावस्था से कन्या भ्रूण, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओं, बेटियों की देखभाल योजना, गर्भवती माताओं के पोषण कार्यक्रम, उनकी परवरिश से लेकर विवाह तक की सुकन्या योजना, वित्तीय साक्षरता के अवसर फिर घर गृहस्थी बसाने पर गैस कनेक्शन, घर घर शौचालय और नलजल योजना से लाभान्वित करने और सामूहिक भागीदारी की व्यावहारिक परख के लिए केन्द्र से लेकर राज्य सरकारों की महिला संवर्द्धन की अनेकानेक योजनाओं के सफलतापूर्वक किये गए कामों का यह परिणाम है. आत्मनिर्भर और जीवन के हरेक क्षेत्र में महिलाएं सक्रिय हैं. नारी शक्ति वंदन विधेयक आने वाले समय में देश की राजनीति की दशा और दिशा ही नहीं, बल्कि इसका चरित्र भी बदल देगा. इस बदलाव का प्रमुख श्रेय महिलाओं की जागरूकता को दिया जाना चाहिए. जो लोकतांत्रिक व्यवस्था को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं.

1996 में प्रथम बार प्रस्तुत महिला आरक्षण विधेयक: प्रो. शशि शर्मा ने कहा कि देश में पहली बार सन 1966 में महिला आरक्षण विधेयक पारित किया गया था. लगभग तीन दशक बाद आज की दुनिया काफी बदल गई है. बड़ी संख्या में महिलाएं कामकाजी हो गई हैं. सबके हाथ में मोबाइल फोन है. जिससे पल पल की खबर मिल रही है. महिलाओं की राजनीतिक चेतना भी बहुत बढ़ी है. महिलाएं इन दिनों चुनावों के दौरान बड़ी संख्या में वोट देने निकलती हैं. महिलाएं इसे किसी उत्सव की तरह मनाती हैं. उनकी स्याही लगी उंगलियां अक्सर टीवी और अखबारों के पन्नों पर दिखाई देती हैं. गांवों में महिला सरपंचों ने गांवों की तस्वीर और तकदीर बदल दी है. इस विधेयक के कानून बनने से महिलाएं ताकतवर होंगी. जिसकी 1959 में पंचायतों के विकास के लिए गठित बलवंत राय मेहता समिति ने पुरजोर वकालत की थी.

आगरा: ताजनगरी में नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2023 विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया. जिसमें प्रमुख सचिव विधान परिषद राजेश सिंह, विधान परिषद सदस्य विजय शिवहरे, प्रो शशि शर्मा, कवयित्री श्रुति सिन्हा, प्रो. ब्रजेश चंद्रा समेत अन्य विद्वान वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्ति किए. सभापति कुंवर मानवेंद्र सिंह ने कहा कि 'मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस विचार गोष्ठी के माध्यम से नारी शक्ति वंदन अधिनियम विषय पर विद्वान वक्ताओं के विचार देश के विकास और लोकतंत्र की मजबूती के लिए लाभदायक सिद्ध होंगे. संगोष्ठी से प्राप्त विचारों को सांविधानिक और संसदीय संस्थान केंद्रीय शाखा को प्रेषित किया जाएगा'.

27 साल बाद अधिनियम बना वास्तविकता: मानवेंद्र सिंह ने कहा कि 'दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और अब दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश में निर्णय लेने वाली संस्थाओं के उच्चतम पदों पर अधिक महिलाओं का होना उचित है. ये कानून एक परिवर्तनकारी कानून है. जो लैंगिक समानता और समतावाद को बढ़ावा देता है. 27 वर्ष तक इधर उधर भटकने के बाद महिलाओं के लिए आरक्षण को सक्षम करने वाला अधिनियम एक वास्तविकता बन गया है'.

समाज और देश को आगे बढ़ाने महिलाओं की हिस्सेदारी जरूरी: सभापति कुंवर मानवेंद्र सिंह ने कहा कि महिलाओं के लिए लोकसभा और विधानसभाओं में एक तिहाई सीटों के आरक्षण की गारंटी देता है. हालांकि, इसका क्रियान्वयन अभी कुछ वर्ष दूर है. परिसीमन प्रक्रिया और जनगणना के बाद यह ऐतिहासिक विधेयक लागू होगा. संसद में एक स्वर से महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को प्रमुखता से स्वीकार करना स्पष्ट संकेत है कि सभी राजनीतिक दल इस सच्चाई को भलीभांति जान गए हैं. परिवार ही नहीं, समाज और देश को आगे बढ़ाने के मिशन में महिलाओं को सक्रिय हिस्सेदारी बेहद जरूरी है. नए भारत के निर्माण के लक्ष्यों को इससे ही हासिल किया जा सकता है. ये सच्चाई छिपी हुई नहीं है. पुरुष वर्चस्व वाले समाज में महिलाओं को परिवार के मामलों में निर्णय की प्रक्रिया में भागीदार नहीं बनाया जाता है.

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चार पीएम के 11 बार के प्रयास भी धराशायी रहे: विधान परिषद सदस्य विजय शिवहरे ने कहा कि एक बारगी ताज्जुब होता है कि जिस विधेयक को पारित कराने में 27 साल का लम्बा समय लगा है. चार-चार प्रधानमंत्रियों के 11 बार के प्रयास भी धराशायी रहे. जिसे वर्तमान सरकार ने अपने कार्यकाल के नौंवे वर्ष में कैसे हासिल कर लिया, वो भी आम राय से. महिलाओं में आई राजनीतिक चेतना और उनकी भागीदारी ने निःसन्देह विधेयक के पक्ष में आम राय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. बीते लोकसभा चुनाव में महिला मतदाताओं ने पुरुषों के 55.26 प्रतिशत की तुलना में 59.92 प्रतिशत मतदान किया था. जो 4.06 प्रतिशत अधिक था. चुनाव दर चुनाव यह ट्रेंड चलता आ रहा है. सन 2019 के लोकसभा चुनाव में विजयी महिलाओं प्रतिशत की संख्या 82 में बढ़ोत्तरी हुई है. जो कुल संख्या का 15 प्रतिशत है. जबकि, 2014 के आम चुनाव में विजयी महिलाओं की संख्या 78 थी. महिलाओं की यह मूक क्रांति अब मुखर क्रांति में बदल गई है.

पीएम मोदी की सोच का परिणाम: विधान परिषद सदस्य राजेश सिंह ने कहा कि पीएम मोदी ने गर्भावस्था से कन्या भ्रूण, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओं, बेटियों की देखभाल योजना, गर्भवती माताओं के पोषण कार्यक्रम, उनकी परवरिश से लेकर विवाह तक की सुकन्या योजना, वित्तीय साक्षरता के अवसर फिर घर गृहस्थी बसाने पर गैस कनेक्शन, घर घर शौचालय और नलजल योजना से लाभान्वित करने और सामूहिक भागीदारी की व्यावहारिक परख के लिए केन्द्र से लेकर राज्य सरकारों की महिला संवर्द्धन की अनेकानेक योजनाओं के सफलतापूर्वक किये गए कामों का यह परिणाम है. आत्मनिर्भर और जीवन के हरेक क्षेत्र में महिलाएं सक्रिय हैं. नारी शक्ति वंदन विधेयक आने वाले समय में देश की राजनीति की दशा और दिशा ही नहीं, बल्कि इसका चरित्र भी बदल देगा. इस बदलाव का प्रमुख श्रेय महिलाओं की जागरूकता को दिया जाना चाहिए. जो लोकतांत्रिक व्यवस्था को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं.

1996 में प्रथम बार प्रस्तुत महिला आरक्षण विधेयक: प्रो. शशि शर्मा ने कहा कि देश में पहली बार सन 1966 में महिला आरक्षण विधेयक पारित किया गया था. लगभग तीन दशक बाद आज की दुनिया काफी बदल गई है. बड़ी संख्या में महिलाएं कामकाजी हो गई हैं. सबके हाथ में मोबाइल फोन है. जिससे पल पल की खबर मिल रही है. महिलाओं की राजनीतिक चेतना भी बहुत बढ़ी है. महिलाएं इन दिनों चुनावों के दौरान बड़ी संख्या में वोट देने निकलती हैं. महिलाएं इसे किसी उत्सव की तरह मनाती हैं. उनकी स्याही लगी उंगलियां अक्सर टीवी और अखबारों के पन्नों पर दिखाई देती हैं. गांवों में महिला सरपंचों ने गांवों की तस्वीर और तकदीर बदल दी है. इस विधेयक के कानून बनने से महिलाएं ताकतवर होंगी. जिसकी 1959 में पंचायतों के विकास के लिए गठित बलवंत राय मेहता समिति ने पुरजोर वकालत की थी.

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