आगरा : जिले से सटी चंबल सेंचुरी में हजारों किलोमीटर का सफर करके पहुंचे प्रवासी विदेशी पक्षी चार माह बाद अब अपने वतन लौटने लगे हैं. सर्दियों के महीनों में इनकी कलरव से चंबल की वादियां गूंज रही थीं. सर्द प्रदेशों में बर्फबारी होने के बाद देश के अन्य प्रांतों और सरहद पार से विभिन्न प्रजातियों के पक्षी चंबल की ओर आने लगते हैं. दिसम्बर और जनवरी में तो क्षेत्र के तालाब पूरी तरह मेहमान और मेजबानों परिन्दों से चहकने लग जाते हैं.
दरअसल ताजनगरी से सटी राष्ट्रीय चंबल सेंचुरी राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश तीन राज्यों के 425 किलोमीटर क्षेत्रफल एरिया में फैली हुई है. चंबल नदी पूर्व में खतरनाक डाकुओं के लिए जानी जाती थी. मगर अब चंबल की वादियां और यहां का वातावरण लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है. चंबल सेंचुरी क्षेत्र में हजारों मील का सफर करके प्रवासी विदेशी पक्षी सर्दियां शुरू होते ही नवंबर माह सेंचुरी में अफगानिस्तान, पाकिस्तान, श्रीलंका, म्यांमार, स्विजरलैंड, साइबेरिया, जापान, रूस, चीन, यूरोप, नेपाल आदि देशों से विदेशी पक्षी बड़ी संख्या में पहुंचते हैं.
इनमें हवासीर (पेलिकन), राजहंस (फ्लेमिंगो), समन (बार हेडेटबूल) एवं ब्लैक हेडेड गल, पिनटिल, एशियन विल ओपन, स्ट्राक, ब्लैक हेडेड, आईडिस, साइस्कीव, स्पू्नबिल, कारमोटेट, वाटहेडडगूर, बेंडर्स, ग्रीन टैंक, रेड क्रिसटेड, बार हैडेड गीज, ग्रेलेग गीज, पिनटेल, शालवर, स्पाटबिल, ब्रहमनीडक, स्पूनबिल, मर्गेजर, वेडर, गार्गेनी, पेनीकल, पाइड, एवोसिट, रिवर टर्न, सीगल, प्रेटीन कोल जैसे दुर्लभ पक्षी दिखाई देते हैं.
नवंबर से मार्च तक भारी संख्या में पंछियों का झुंड चंबल सेंचुरी क्षेत्र में प्रवास करता है. चंबल नदी के पानी के बीच बने टापुओं पर गूंजती इन मेहमान पक्षियों की आवाज से वादियों की खूबसूरती को चार चांद लग जाती है. वहीं मार्च माह में सर्दी कम होने पर चंबल अभयारण्य से अपने घर वतन वापसी करने लगते हैं.
राष्ट्रीय चंबल सेंचुरी क्षेत्र के वन विभाग के अधिकारी कहते हैं कि तीन राज्यों में फैली चंबल सेंचुरी का महत्व बड़ा है. चंबल नदी में पक्षियों के साथ डॉल्फिन, घड़ियाल, मगरमच्छ, कई प्रजाति के कछुए, मछलियां पाई जाती हैं. जो कि एक बड़ी उपलब्धि है. जिन्हें देखने के लिए भारी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक यहां पहुंचते हैं. पक्षियों का कलरव देखकर रोमांचित साथ उर्जा देने वाला होता है.