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सिर पर गृहस्थी का सामान लेकर पैदल ही घर के लिए निकले मजदूर

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Published : May 13, 2020, 3:31 PM IST

कोरोना महामारी के चलते लागू लॉकडाउन में रोजी-रोटी छिनने के बाद, मजदूरों का शहर से अपने गांव जाने का सिलसिला लगातार जारी है. सिर पर गृहस्थी का सामान लेकर मजदूर तपती धूप में लगातार पैदल चल रहे हैं. मीलों तक कोई भोजन-पानी के लिए पूछने वाला नहीं है. ऐसे ही कुछ मजदूर ताजनगरी आगरा पहुंचे, जहां ईटीवी भारत ने उनसे खास बातचीत की.

migrant laborers are moving to their home due to lockdown
पैदल ही घर के लिए निकले मजदूर.

आगरा: कोरोना महामारी और डेढ़ माह के लॉकडाउन ने देश के मजदूरों की जिंदगी ही बदल दी है. लॉकडाउन से रोजगार छिन गया. जो कमाया था, वो खर्च हो गया. मकान मालिक किराया मांग रहे हैं. बेघर हुए तो अपनों की याद और ज्यादा सताने लगी. अब सिर पर गृहस्थी का सामान और गोद में मासूम बच्चों को लेकर मजदूर पैदल ही सैकड़ों किलोमीटर दूर अपने गांव को बेबसी के सफर पर निकल पड़े हैं. ईटीवी भारत ने बुधवार को आगरा की सड़कों पर पैदल, साइकिल, बाइक और ट्रकों से जा रहे प्रवासी मजदूरों से बात की तो उनका दर्द छलक उठा.

migrant laborers reached agra
साइकिल से घर के लिए जाते मजदूर.

लॉकडाउन के बाद से ही प्रवासी मजदूर अपने घरों को जाने के लिए पैदल ही सैकड़ों किलोमीटर के सफर पर निकल पड़े हैं. कोई हाईवे से तो कोई रेलवे लाइन के किनारे-किनारे जा रहा है. यह नजारा हर दिन देखा जा सकता है. सरकार ने प्रवासी श्रमिकों के लिए स्पेशल ट्रेन और रोडवेज बसों का इंतजाम किया, जिससे वे घर तक पहुंच सके, लेकिन सड़कों पर पैदल, साइकिल सवार, बाइक सवार और ट्रकों में श्रमिकों को खूब देखा जा सकता है.

migrant laborers reached agra
पैदल घर के लिए जाते मजदूर.

'पैदल चले, फिर ट्रक से आए आगरा'
एमपी के पन्ना निवासी रामगोपी ने बताया कि, 'नोएडा में परिवार के साथ मजदूरी करता था. मंगलवार से परिवार के साथ पैदल निकला हूं. फिर रास्ते में ट्रक मिल गया. काम लग नहीं रहा था. खाने के लिए पैसे नहीं थे और खाना भी नहीं मिलता था. इसलिए घर जाने के लिए निकल पड़े हैं.

देखिए स्पेशल रिपोर्ट...

एमपी के सागर निवासी सुलोचना ने बताया कि, 'परिवार के साथ गुड़गांव से आ रही हूं. वहां काम करने गए थे, पहले काम अच्छा चल रहा था. लॉकडाउन लग गया. इसके बाद काम नहीं लगा. जो रुपये थे, वे खर्च हो गए. वहां खाने के लाले थे. इसलिए घर जाने के लिए निकल पड़े हैं.'

'मकान मालिक को किराए देने को नहीं थे रुपये'
झांसी निवासी रुकसार ने बताया कि, 'पति गुड़गांव में नौकरी करते थे और अब परिवार के साथ घर जा रहे हैं. जो कमाया था, वो 2 महीने में खर्च हो गया. अब खाने पीने के लिए कुछ नहीं बचा था. मकान मालिक को देने के लिए किराया भी नहीं था. '

'पैसे खत्म होने के बाद घर निकल पड़े'
झांसी की राबिया का कहना है कि वह अपने रुपये से खाना पीना खा रहे थे. अब पैसे खत्म हो गए. कंपनी से जो 8 हजार रुपये मिले थे. उससे पहले राशन खरीद लिया था. और वह खर्च हो गए इसलिए घर जा रहे हैं.

आगरा: किसानों पर लॉकडाउन की मार, 'फालसे की फसल' हुई बेकार

जयपुर से बांदा साइकिल से निकले
बांदा निवासी रामदयाल ने बताया कि, 'जयपुर में रहकर मार्बल का काम करते थे. लॉकडाउन के बाद काम बंद हो गया और अब शुरू होने की कोई उम्मीद नहीं है. कारखाना मालिक ने साइकिलें खरीद कर दीं. उसी साइकिल से हम पांच लोग घर जा रहे हैं. मालिक का कहना है कि जब काम शुरू होगा, तब बुला लिया जाएगा. अपने साथ पूरे खाने का सामान है. सभी मिलकर खाना बनाते हैं, खाते हैं और फिर साइकिल से निकल पड़ते हैं.

आगरा: कोरोना महामारी और डेढ़ माह के लॉकडाउन ने देश के मजदूरों की जिंदगी ही बदल दी है. लॉकडाउन से रोजगार छिन गया. जो कमाया था, वो खर्च हो गया. मकान मालिक किराया मांग रहे हैं. बेघर हुए तो अपनों की याद और ज्यादा सताने लगी. अब सिर पर गृहस्थी का सामान और गोद में मासूम बच्चों को लेकर मजदूर पैदल ही सैकड़ों किलोमीटर दूर अपने गांव को बेबसी के सफर पर निकल पड़े हैं. ईटीवी भारत ने बुधवार को आगरा की सड़कों पर पैदल, साइकिल, बाइक और ट्रकों से जा रहे प्रवासी मजदूरों से बात की तो उनका दर्द छलक उठा.

migrant laborers reached agra
साइकिल से घर के लिए जाते मजदूर.

लॉकडाउन के बाद से ही प्रवासी मजदूर अपने घरों को जाने के लिए पैदल ही सैकड़ों किलोमीटर के सफर पर निकल पड़े हैं. कोई हाईवे से तो कोई रेलवे लाइन के किनारे-किनारे जा रहा है. यह नजारा हर दिन देखा जा सकता है. सरकार ने प्रवासी श्रमिकों के लिए स्पेशल ट्रेन और रोडवेज बसों का इंतजाम किया, जिससे वे घर तक पहुंच सके, लेकिन सड़कों पर पैदल, साइकिल सवार, बाइक सवार और ट्रकों में श्रमिकों को खूब देखा जा सकता है.

migrant laborers reached agra
पैदल घर के लिए जाते मजदूर.

'पैदल चले, फिर ट्रक से आए आगरा'
एमपी के पन्ना निवासी रामगोपी ने बताया कि, 'नोएडा में परिवार के साथ मजदूरी करता था. मंगलवार से परिवार के साथ पैदल निकला हूं. फिर रास्ते में ट्रक मिल गया. काम लग नहीं रहा था. खाने के लिए पैसे नहीं थे और खाना भी नहीं मिलता था. इसलिए घर जाने के लिए निकल पड़े हैं.

देखिए स्पेशल रिपोर्ट...

एमपी के सागर निवासी सुलोचना ने बताया कि, 'परिवार के साथ गुड़गांव से आ रही हूं. वहां काम करने गए थे, पहले काम अच्छा चल रहा था. लॉकडाउन लग गया. इसके बाद काम नहीं लगा. जो रुपये थे, वे खर्च हो गए. वहां खाने के लाले थे. इसलिए घर जाने के लिए निकल पड़े हैं.'

'मकान मालिक को किराए देने को नहीं थे रुपये'
झांसी निवासी रुकसार ने बताया कि, 'पति गुड़गांव में नौकरी करते थे और अब परिवार के साथ घर जा रहे हैं. जो कमाया था, वो 2 महीने में खर्च हो गया. अब खाने पीने के लिए कुछ नहीं बचा था. मकान मालिक को देने के लिए किराया भी नहीं था. '

'पैसे खत्म होने के बाद घर निकल पड़े'
झांसी की राबिया का कहना है कि वह अपने रुपये से खाना पीना खा रहे थे. अब पैसे खत्म हो गए. कंपनी से जो 8 हजार रुपये मिले थे. उससे पहले राशन खरीद लिया था. और वह खर्च हो गए इसलिए घर जा रहे हैं.

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जयपुर से बांदा साइकिल से निकले
बांदा निवासी रामदयाल ने बताया कि, 'जयपुर में रहकर मार्बल का काम करते थे. लॉकडाउन के बाद काम बंद हो गया और अब शुरू होने की कोई उम्मीद नहीं है. कारखाना मालिक ने साइकिलें खरीद कर दीं. उसी साइकिल से हम पांच लोग घर जा रहे हैं. मालिक का कहना है कि जब काम शुरू होगा, तब बुला लिया जाएगा. अपने साथ पूरे खाने का सामान है. सभी मिलकर खाना बनाते हैं, खाते हैं और फिर साइकिल से निकल पड़ते हैं.

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