आगराः इंटरनेशनल यूनियन ऑफ जूलॉजिकल साइंस (आईयूजेएस) ने हाल में ही राजस्थान के मकराना संगमरमर को ग्लोबल हेरिटेज का दर्जा दिया है. मगर आगरा की बात की जाए तो 400 साल पहले ही मकराना की संगमरमर की चमक के मुगल कायल हो गए थे.
ताज से पहले भी प्रयोग हुआ मकराना का मार्बल
ताजमहल से पहले भी मुगल शहंशाहों ने सिकंदरा स्थित अकबर के मकबरा, मिर्जा ग्यासबैग के मकबरा और फतेहपुर सीकरी में शेख सलीम चिश्ती की दरगाह में मकराना का मार्बल उपयोग किया था. इतना ही नहीं, मुगल शहंशाह शाहजहां ने अगस्त 1632 में मोहब्बत की निशानी ताजमहल के लिए मकराना की संगमरमर भिजवाने को फारसी भाषा में एक फरमान जयपुर के राजा जयसिंह को जारी किया था.
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बता दें कि ताजमहल के निर्माण सन् 1632 से 1648 के बीच हुआ. वर्ष 1983 में यूनेस्को ने ताजमहल को वर्ल्ड हेरिटेज का दर्जा दिया. ताजमहल में उपयोग किया गया संगमरमर राजस्थान नागौर जिले की मकराना तहसील की खदानों और इटली की सतवारियों में संगमरमर मिलता है. मकराना के संगमरमर में 99 कैल्शियम होता है, जबकि अन्य पत्थर डोलोमाइट हैं. इटली का सतवारियों संगमरमर काफी महंगा है.
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ताजमहल बनने से पहले भी आगरा में मकराना के संगमरमर से मकबरे और अन्य इमारतें बनवाई गई हैं. सिकंदरा स्थित अकबर के मकबरा, मिर्जा ग्यास बेग के मकबरा एत्माद्दौला और फतेहपुर सीकरी स्थित शेख सलीम चिश्ती की दरगाह के लिए भी शहंशाह जहांगीर ने मकराना से संगमरमर मंगवाया था. आगरा किला में भी शहंशाह द्वारा बनवाए गए मोती मस्जिद, मुसम्मन बुर्ज और अन्य भवनों में भी इस संगमरमर का उपयोग किया गया है.
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ताज म्यूजियम के प्रभारी आरके सिंह कहते है
मुगल शहंशाह शाहजहां ने फारसी भाषा में जयपुर के राजा जयसिंह को एक फरमान जारी किया था. जिसमें लिखा था कि नागौर जिले की मकराना तहसील में निकलने वाले संगमरमर को आगरा भिजवाने की व्यवस्था करें. इसके बाद फिर शहंशाह शाहजहां ने एक और रिमाइंडर राजा जयसिंह को भेजा था. इसमें लिखा था कि अकबराबाद तक इमारतों के लिए मकराना की खदानों से संगमरमर लाने के लिए इलाहादाद को नियुक्त करने, गाड़ियों की व्यवस्था और सुरक्षा करने का निर्देश था. साथ ही आदेश की अवज्ञा न करने की ताकीद भी दी गई थी. इसकी प्रतिलिपि ताज म्यूजियम में मौजूद है. असल फरमान जयपुर के म्यूजियम में रखा हुआ है.