आगरा. ताजनगरी की जामा मस्जिद एक बार फिर चर्चा में है. पूर्व मंत्री व आगरा छावनी विधायक डॉ. जीएस धर्मेश ने जामा मस्जिद मेट्रो स्टेशन का नाम श्री मनकामेश्वर महादेव मंदिर करने की मांग की है. इस पर सियासत गरमा गई है. श्री मनकामेश्वर महादेव मंदिर द्वापर युग का है. यहां पर भगवान शिव की मन्नत पूरी हुई थी.
आगरा मेट्रो परियोजना की डीपीआर में पुरानी मंडी चौराहा से जामा मस्जिद तक भूमिगत मेट्रो ट्रैक दर्ज है. इस ट्रैक पर जामा मस्जिद मेट्रो स्टेशन भी बनना प्रस्तावित है. लेकिन फतेहाबाद रोड पर मेट्रो परियोजना के निर्माण कार्य का निरीक्षण करने आए डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य से आगरा छावनी विधायक व पूर्व राज्य मंत्री डॉ. जीएस धर्मेश ने जामा मस्जिद मेट्रो स्टेशन का नाम बदलने और इस मेट्रो स्टेशन का नाम मनकामेश्वर महादेव मंदिर करने की मांग की है. जिस पर उस समय डिप्टी सीएम ने मौखिक मुहर लगा दी. इससे मेट्रो स्टेशन के नाम पर सियासत गरमा गई है. क्योंकि, मुस्लिम समुदाय के लोग इसके विरोध में उतर आए हैं.
आगरा के ऐतिहासिक दृष्टिकोण से जुड़ा है
पुराने आगरा शहर के रावतपाड़ा में श्री मनकामेश्वर महादेव मंदिर है. यह आगरा फोर्ट रेलवे स्टेशन और जामा मस्जिद से चंद कदम की दूरी पर है. जो द्वापर युग का है. यहां पर भगवान शिव ने शिवलिंग की स्थापना की थी. श्री मनकामेश्वर महादेव मंदिर के महंत योगेश पुरी बताते हैं कि, एएसआई के अधिकारी सिद्दकी और हरिकृष्ण कौर की टीम ने सन 1980 में मंदिर की यात्रा की थी. उन्होंने शिवलिंग की उम्र के लिए सैंपल लेने और लैब से टेस्ट कराकर सर्टिफिकेट देने की बात कही थी. तब मेरे पिताजी महाराज ने उन्हें सैंपल देने से इनकार कर दिया था. कहा था कि, बाबा आदि, अनादि और अनंत है. उन्होंने भी शिवलिंग देखकर कहा था कि, यह करीब साढ़े हजार वर्ष पुराना होना चाहिए.
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सबसे बड़ी बात यह है कि, बाबा शिव ने यहां रात्रि विश्राम करके अपने हाथों से शिवलिंग की स्थापना की. इस कारण से मनकामेश्वर महादेव मंदिर का शिवलिंग शुद्ध, सिद्ध और पवित्र हो जाता है. आगरा मेट्रो के स्टेशन का नाम मनकामेश्वर महादेव किए जाने को लेकर सवाल उठा रहे हैं. तो उन्हें यह बताना चाहता हूं कि, मनकामेश्वर महादेव मंदिर आगरा के ऐतिहासिक दृष्टिकोण से जुड़ा हुआ है.
श्री मनकामेश्वर महादेव मंदिर के महंत योगेश पुरी बताते हैं कि, प्रचलित कथा के अनुसार, द्वापर युग में जब भगवान श्रीकृष्ण का मथुरा में जन्म हुआ था. तो भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप के दर्शन करने की कामना हृदय में लिए कैलाश पर्वत से चलकर भगवान शंकर यहां यमुना किनारे आए थे. उन्होंने यहां पर एक रात बिताई थी और साधना भी की थी. भगवान शंकर ने यहां पर प्रण लिया कि कान्हा को अपनी गोद में खिला पाए तो यहां पर शिवलिंग की स्थापना करेंगे. अगले दिन भगवान शंकर जब गोकुल में नंदबाबा के दरवाजे पर पहुंचे तो मां यशोदा ने भगवान शंकर का भस्म-भभूत और जटा-जूटधारी रूप देखकर उनकी गोद में कान्हा को इनकार कर दिया.
मां यशोदा ने कहा कि बाबा आपको देखकर कान्हा डर जाएगा. इस पर भगवान शंकर पास में स्थित बरागद के पेड़ के नीचे ध्यान में बैठ गए. जब कान्हा को पता चला कि भगवान शंकर उनके घर आए और मां यशोदा ने उन्हें यहां से जाने को कह दिया, तो कान्हा ने रोने की लीला की. कान्हा को रोता देखकर मां यशोदा घबरा गईं और भगवान शंकर के पास कान्हा को लेकर पहुंची. यह देखकर भगवान शंकर ने कान्हा को गोद में लिया. उनके दर्शन किए. तभी कान्हा चुप हो गए. इसके बाद भगवान शंकर लौट कर आए और यहां पर अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर शिवलिंग की स्थापना की.
श्री मनकामेश्वर महादेव मंदिर के महंत योगेश पुरी बताते हैं कि, बाबा शंकर ने कहा था कि जैसे मेरी यहां मनोकामना पूरी हुई है. वैसे ही सच्चे मन से यहां आने वाले हर भक्त की मनोकामना पूर्ण होगी. यही श्री मनकामेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास है.
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