आगरा: ताजनगरी को कई नामों से जाना जाता है. वहीं इसको कब्रिस्तानों का शहर भी कहा जाता है, क्योंकि यहां के हर स्मारक में किसी न किसी की कब्र मौजूद है. कब्रिस्तानों का शहर होने के बाद भी आगरा में ईसाई समुदाय के लोग परेशान हैं. उन्हें 'अपनों' के दफनाने किए दो गज जमीन नहीं मिल रही है. यही वजह है कि आगरा में जिंदगी भर साथ रहे ईसाई समाज के परिवार के सदस्य अब निधन के बाद कब्र में भी 'अपनों' के साथ रह सकेंगे. यह सुनकर आप चौंकिए मत. दरअसल ईसाई समाज की संस्था आगरा ज्वॉइंट्स सिमेट्रीज कमेटी ने इस बारे में एक अहम फैसला लिया है.
ईटीवी भारत ने आगरा ज्वॉइंट्स सिमेट्रीज कमेटी के चैयरमैन फादर मून लाजरस से विशेष बातचीत की...
सवाल: एक ही परिवार के लोगों को एक ही कब्र में दफनाने को लेकर क्या फैसला लिया गया है?
जबाव: आगरा में ईसाई समाज के प्रमुख चार कब्रिस्तान हैं. लेकिन इन कब्रिस्तान में अब जमीन की कमी पड़ रही है. इसके साथ ही नए कब्रिस्तान के लिए भी जमीन मिलना मुश्किल हो रहा है. इसे देखते हुए हम सभी कमेटी के सदस्यों के साथ बैठक की और उसमें यह निर्णय लिया गया.
इस फैसले की दो वजह हैं. पहली वजह इससे जमीन की कमी का समाधान होगा और दूसरा परिवार भी भावनात्मक रूप से जुड़ेंगे.
सवाल: जब हम किसी पुरानी कब्र को खोदेंगे, तो उसमें जो अवशेष मिलेंगे, उसका क्या होगा?
जबाव: यह बात सही है कि हम जब किसी पुरानी कब्र को खोदेंगे तो उसमें कुछ अवशेष मिल सकते हैं. लेकिन यही भी सही है कि कुछ समय के बाद शरीर सड़ और गल जाता है. मिट्टी में मिल जाता है. ऐसे में अवशेष मिलना बहुत मुश्किल है. फिर भी यदि किसी कब्र में अवशेष मिलते हैं, तो हम उस परिवार के लोगों के साथ सम्मान उन अवशेषों को उसी कब्र में दफन आएंगे.
सवाल: इस कार्य को कैसे किया जाएगा?
जवाब: दक्षिण भारत के शहर, मुम्बई और दिल्ली की तरह आगरा में भी ईसाई समाज के एक ही परिवार के लोगों का निधन होने पर कब्रिस्तान में एक ही कब्र में दफनाया जाएगा. इसलिए कब्र को पहली बार ही 15 फीट से ज्यादा गहरा खुदवाया जाएगा. फिर चारों ओर पक्की दीवार बनाकर पत्थर की स्लैब बनाई जाएगी, इसके बाद कब्र में दफनाया जाएगा.
सवाल: इसके लिए किस तरह से लोगों को जागरूक किया जा रहा है?
जबाव: दक्षिण में पहले से ही इस तरह की व्यवस्था चल रही है. मुंबई, दिल्ली और अन्य बड़े शहरों में भी इसी तरह से एक ही कब्र में एक ही परिवार के लोगों को दफनाया जा रहा है. आगरा के लिए यह नई विचारधारा और नया कॉन्सेप्ट है. इसके लिए चर्च में सत्संग या अन्य कार्यक्रम में लोगों को इस बारे में जागरूक किया जा रहा है. उन्हें समझाया जा रहा है कि जब तक वे साथ नहीं देंगे, तब तक हम इसे पूर्ण रूप से लागू नहीं कर सकते हैं.