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अब जिंदगी के बाद भी मिलेगा 'अपनों' का साथ, पढ़िए पूरी रिपोर्ट - कब्र

उत्तर प्रदेश के आगरा में ईसाई समाज की संस्था आगरा ज्वॉइंट्स सिमेट्रीज कमेटी ने एक अहम फैसला लिया है. इस फैसले के तहत अब ईसाई समुदाय में निधन के बाद उन्हें परिवार के सदस्य की कब्र में ही दफनाया जाएगा.

आगरा ज्वॉइंट्स सिमिट्रीज कमेटी.
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Published : Jul 26, 2019, 9:08 AM IST

आगरा: ताजनगरी को कई नामों से जाना जाता है. वहीं इसको कब्रिस्तानों का शहर भी कहा जाता है, क्योंकि यहां के हर स्मारक में किसी न किसी की कब्र मौजूद है. कब्रिस्तानों का शहर होने के बाद भी आगरा में ईसाई समुदाय के लोग परेशान हैं. उन्हें 'अपनों' के दफनाने किए दो गज जमीन नहीं मिल रही है. यही वजह है कि आगरा में जिंदगी भर साथ रहे ईसाई समाज के परिवार के सदस्य अब निधन के बाद कब्र में भी 'अपनों' के साथ रह सकेंगे. यह सुनकर आप चौंकिए मत. दरअसल ईसाई समाज की संस्था आगरा ज्वॉइंट्स सिमेट्रीज कमेटी ने इस बारे में एक अहम फैसला लिया है.

फादर मून लाजरस से बातचीत करते ईटीवी भारत संवाददाता.

ईटीवी भारत ने आगरा ज्वॉइंट्स सिमेट्रीज कमेटी के चैयरमैन फादर मून लाजरस से विशेष बातचीत की...

सवाल: एक ही परिवार के लोगों को एक ही कब्र में दफनाने को लेकर क्या फैसला लिया गया है?
जबाव: आगरा में ईसाई समाज के प्रमुख चार कब्रिस्तान हैं. लेकिन इन कब्रिस्तान में अब जमीन की कमी पड़ रही है. इसके साथ ही नए कब्रिस्तान के लिए भी जमीन मिलना मुश्किल हो रहा है. इसे देखते हुए हम सभी कमेटी के सदस्यों के साथ बैठक की और उसमें यह निर्णय लिया गया.
इस फैसले की दो वजह हैं. पहली वजह इससे जमीन की कमी का समाधान होगा और दूसरा परिवार भी भावनात्मक रूप से जुड़ेंगे.

सवाल: जब हम किसी पुरानी कब्र को खोदेंगे, तो उसमें जो अवशेष मिलेंगे, उसका क्या होगा?
जबाव: यह बात सही है कि हम जब किसी पुरानी कब्र को खोदेंगे तो उसमें कुछ अवशेष मिल सकते हैं. लेकिन यही भी सही है कि कुछ समय के बाद शरीर सड़ और गल जाता है. मिट्टी में मिल जाता है. ऐसे में अवशेष मिलना बहुत मुश्किल है. फिर भी यदि किसी कब्र में अवशेष मिलते हैं, तो हम उस परिवार के लोगों के साथ सम्मान उन अवशेषों को उसी कब्र में दफन आएंगे.

सवाल: इस कार्य को कैसे किया जाएगा?
जवाब: दक्षिण भारत के शहर, मुम्बई और दिल्ली की तरह आगरा में भी ईसाई समाज के एक ही परिवार के लोगों का निधन होने पर कब्रिस्तान में एक ही कब्र में दफनाया जाएगा. इसलिए कब्र को पहली बार ही 15 फीट से ज्यादा गहरा खुदवाया जाएगा. फिर चारों ओर पक्की दीवार बनाकर पत्थर की स्लैब बनाई जाएगी, इसके बाद कब्र में दफनाया जाएगा.

सवाल: इसके लिए किस तरह से लोगों को जागरूक किया जा रहा है?
जबाव: दक्षिण में पहले से ही इस तरह की व्यवस्था चल रही है. मुंबई, दिल्ली और अन्य बड़े शहरों में भी इसी तरह से एक ही कब्र में एक ही परिवार के लोगों को दफनाया जा रहा है. आगरा के लिए यह नई विचारधारा और नया कॉन्सेप्ट है. इसके लिए चर्च में सत्संग या अन्य कार्यक्रम में लोगों को इस बारे में जागरूक किया जा रहा है. उन्हें समझाया जा रहा है कि जब तक वे साथ नहीं देंगे, तब तक हम इसे पूर्ण रूप से लागू नहीं कर सकते हैं.

आगरा: ताजनगरी को कई नामों से जाना जाता है. वहीं इसको कब्रिस्तानों का शहर भी कहा जाता है, क्योंकि यहां के हर स्मारक में किसी न किसी की कब्र मौजूद है. कब्रिस्तानों का शहर होने के बाद भी आगरा में ईसाई समुदाय के लोग परेशान हैं. उन्हें 'अपनों' के दफनाने किए दो गज जमीन नहीं मिल रही है. यही वजह है कि आगरा में जिंदगी भर साथ रहे ईसाई समाज के परिवार के सदस्य अब निधन के बाद कब्र में भी 'अपनों' के साथ रह सकेंगे. यह सुनकर आप चौंकिए मत. दरअसल ईसाई समाज की संस्था आगरा ज्वॉइंट्स सिमेट्रीज कमेटी ने इस बारे में एक अहम फैसला लिया है.

फादर मून लाजरस से बातचीत करते ईटीवी भारत संवाददाता.

ईटीवी भारत ने आगरा ज्वॉइंट्स सिमेट्रीज कमेटी के चैयरमैन फादर मून लाजरस से विशेष बातचीत की...

सवाल: एक ही परिवार के लोगों को एक ही कब्र में दफनाने को लेकर क्या फैसला लिया गया है?
जबाव: आगरा में ईसाई समाज के प्रमुख चार कब्रिस्तान हैं. लेकिन इन कब्रिस्तान में अब जमीन की कमी पड़ रही है. इसके साथ ही नए कब्रिस्तान के लिए भी जमीन मिलना मुश्किल हो रहा है. इसे देखते हुए हम सभी कमेटी के सदस्यों के साथ बैठक की और उसमें यह निर्णय लिया गया.
इस फैसले की दो वजह हैं. पहली वजह इससे जमीन की कमी का समाधान होगा और दूसरा परिवार भी भावनात्मक रूप से जुड़ेंगे.

सवाल: जब हम किसी पुरानी कब्र को खोदेंगे, तो उसमें जो अवशेष मिलेंगे, उसका क्या होगा?
जबाव: यह बात सही है कि हम जब किसी पुरानी कब्र को खोदेंगे तो उसमें कुछ अवशेष मिल सकते हैं. लेकिन यही भी सही है कि कुछ समय के बाद शरीर सड़ और गल जाता है. मिट्टी में मिल जाता है. ऐसे में अवशेष मिलना बहुत मुश्किल है. फिर भी यदि किसी कब्र में अवशेष मिलते हैं, तो हम उस परिवार के लोगों के साथ सम्मान उन अवशेषों को उसी कब्र में दफन आएंगे.

सवाल: इस कार्य को कैसे किया जाएगा?
जवाब: दक्षिण भारत के शहर, मुम्बई और दिल्ली की तरह आगरा में भी ईसाई समाज के एक ही परिवार के लोगों का निधन होने पर कब्रिस्तान में एक ही कब्र में दफनाया जाएगा. इसलिए कब्र को पहली बार ही 15 फीट से ज्यादा गहरा खुदवाया जाएगा. फिर चारों ओर पक्की दीवार बनाकर पत्थर की स्लैब बनाई जाएगी, इसके बाद कब्र में दफनाया जाएगा.

सवाल: इसके लिए किस तरह से लोगों को जागरूक किया जा रहा है?
जबाव: दक्षिण में पहले से ही इस तरह की व्यवस्था चल रही है. मुंबई, दिल्ली और अन्य बड़े शहरों में भी इसी तरह से एक ही कब्र में एक ही परिवार के लोगों को दफनाया जा रहा है. आगरा के लिए यह नई विचारधारा और नया कॉन्सेप्ट है. इसके लिए चर्च में सत्संग या अन्य कार्यक्रम में लोगों को इस बारे में जागरूक किया जा रहा है. उन्हें समझाया जा रहा है कि जब तक वे साथ नहीं देंगे, तब तक हम इसे पूर्ण रूप से लागू नहीं कर सकते हैं.

Intro:डेस्क से विशेष निवेदन यदि इसमें उनके द्वारा वोइस ओवर किया जाया तो बेहतर पैकेज बन सकता है. यह खबर हर भाषा में प्रसारित की जा सकती है.

आगरा.
आगरा के कई नाम हैं. कोई इसे मुगलों की राजधानी तो कोई मोहब्बत की नगरी. ताजनगरी और. सुलहकुल नगरी भी आगरा के नाम है. आगरा को कब्रिस्तानों का शहर भी कहा जाता है. क्योंकि, यहां के हर मोनुमेंट्स में किसी न किसी की कब्र मौजूद है. कब्रिस्तानों का शहर होने के बाद भी आगरा में ईसाई समुदाय के लोग परेशान हैं. उन्हें 'अपनों' के दफनाने किए दो गज जमीन कब्रिस्तान नहीं मिल रही है. यही वजह है, कि आगरा में जिंदगी भर साथ रहे ईसाई समाज के परिवार के सदस्य अब निधन के बाद कब्र में भी 'अपनों' के साथ रह सकेंगे. यह सुनकर जरा आप चौंकिए मत. ईसाई समाज की संस्था आगरा जॉइंट्स सिमिट्रीज कमेटी ने इस बारे में एक अहम फैसला लिया है. ईटीवी भारत ने आगरा जॉइंट्स सिमिट्रीज कमेटी के चैयरमैन फादर मून लाजरस से विशेष बातचीत की.


Body:सवाल: एक ही परिवार के लोगों को एक ही कब्र में दफनाने को लेकर के क्या फैसला लिया गया है ?
जबाव : फादर मून लाजरस ने बताया कि, आगरा में ईसाई समाज के प्रमुख चार कब्रिस्तान हैं. लेकिन इन कब्रिस्तान में अब जमीन की कमी पड़ रही है. इसके साथ ही नए कब्रिस्तान के लिए भी जमीन मिलना मुश्किल हो रहा है. इसे देखते हुए हम सभी कमेटी के सदस्यों के साथ बैठक की. और उसमें यह निर्णय लिया गया की जमीन की किल्लत को देखते हुए. हम यदि एक परिवार के सभी सदस्यों को एक भी कब्र में दफनाए तो अच्छा रहेगा. इस फैसले की दो वजह हैं. पहली वजह इससे जमीन की कमी का समाधान होगा. और दूसरा परिवार भी भावनात्मक रूप से जुड़ेंगे. क्योंकि परिवार के जो लोग जिंदगी भर साथ साथ रहे. वे सभी मौत के बाद भीअब पूरे परिवार को साथ एक ही जगह पर रह सकेंगे.
सवाल: जब हम किसी पुरानी कब्र को खो देंगे, तो उसमें जो अवशेष मिलेंगे. उसके लिए क्या रहेगा?
जबाव: फादर मून लाजरस का कहना है कि यह बात सही है कि हम जब किसी पुरानी कब्र को खोदेंगे तो उसमें कुछ अवशेष मिल सकते हैं. लेकिन यही भी सही है कि कुछ समय के बाद शरीर सड़ जाता है. गल जाता है. मिट्टी में मिल जाता है. ऐसे में अवशेष मिलना बहुत मुश्किल है. फिर भी यदि किसी कब्र में अवशेष मिलते हैं, तो हम उस परिवार के लोगों के साथ सम्मान उन अवशेषों को उसी कब्र में दफन आएंगे. अब हम यह कोशिश कर रहे हैं. कि पहले ही हम करीब 15 फीट गहरी कब्र खोदें. और उस कब्र के चारों तरफ दीवार की बनाएं. फिर जब कभी उस परिवार के किसी सदस्य की मौत होती है तो उसे उसी में दफनाएं. इस दौरान इसमें सिर्फ उतनी ही जगह उपयोग में ली जाएगी. जितने में बाक्स आएगा. फिर बाक्स के ऊपर पत्थर की एक स्लैब डाल देंगे. यह एक कंपैक्ट बन जाएगा. जिससे आगे जब भी उस परिवार का कोई सदस्य गुजरता है, तो उसे वहां पर दफनाया जा सके.
सवाल: किस इस तरह से समाज के लोगों को जागरूक किया जा रहा है जिससे वह इस तरह से दफनाने का काम करें?
जबाव : फादर फादर मून लाजरस ने बताया कि साउथ में पहले से ही इस तरह की व्यवस्था चल रही है. मुंबई, दिल्ली और अन्य बड़े शहरों में भी इसी तरह से एक ही कब्र में एक ही परिवार के लोगों को दफनाया जा रहा है. क्योंकि, आगरा के लिए यह नई विचारधारा है. और नया कॉन्सेप्ट है. इसके लिए हमें लोगों को मानसिक रूप से बहुत तैयार करना पड़ेगा. इसलिए हम लोगों ने यह निर्णय लिया है कि जिस चर्च में समूह में लोग उपस्थित होते हैं. प्रार्थना सभा है. सत्संग या अन्य कार्यक्रम में जहां पर भीड़ जमा होती है. वहां पर लोगों को इस बारे में जागरूक किया जा रहा है. उन्हें समझाया जा रहा है. जब तक लोग समझेंगे नहीं. हमारे साथ नहीं होंगे. तब तक हम इसे पूर्ण रूप से लागू नहीं कर सकते हैं.


Conclusion:दक्षिण भारत के शहर, मुम्बई और दिल्ली की तरह आगरा में भी ईसाई समाज के एक ही परिवार के लोगों का निधन होने पर कब्रिस्तान में एक ही कब्र में दफनाया जाएगा. इसलिए कब्र को पहली बार ही 15 फीट से ज्यादा गहरा खुदवाया जाएगा. फिर चारों ओर पक्की दीवार बनाकर पत्थर की स्लैब बनाई जाएगी.

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आगरा जॉइंट्स सिमिट्रीज कमेटी के चैयरमैन फादर मून लाजरस का वन-टू-वन।

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श्यामवीर सिंह
आगरा
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