आगरा: मथुरा की जिला अदालत के बाद अब आगरा की अदालत में भी आगरा जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबे भगवान श्रीकृष्ण के विग्रह निकालने का मामला चल रहा है. आगरा जिला जज की अदालत में दायर वाद में जामा मस्जिद का एएसआई (ASI) की तकनीकी विशेषज्ञों की टीम से सर्वे कराने की मांग की गई है. इस मामले में गुरुवार दोपहर सुनवाई हुई.
27 अक्टूबर को होगी सुनवाईः वहीं, श्रीकृष्ण जन्मभूमि संरक्षित सेवा ट्रस्ट की ओर से जामा मस्जिद की सीढ़ियों से लोगों का आवागमन बंद कराने और एएसआई सर्वे की मांग पर अगली सुनवाई 27 अक्टूबर को होगी. इस बारे में श्रीकृष्ण जन्मभूमि संरक्षित सेवा ट्रस्ट के अधिवक्ता विनोद कुमार शुक्ला ने बताया कि प्रतिवादी ने पक्ष के प्रार्थना पत्र पर सुनवाई हुई. अभी जामा मस्जिद की सीढ़ियों से आवागमन पर रोक लगाने और एएसआई के सर्वे पर मांग पर सुनवाई होनी है.
एएसआई सर्वे कराने की मांगः गौरतलब है कि पहले से ही श्रीकृष्ण जन्मभूमि संरक्षित सेवा ट्रस्ट के देवकीनंदन ठाकुर दावा कर रहे हैं कि कृष्ण जन्मभूमि के भगवान केशवदेव के विग्रह आगरा की जामा मस्जिद (जहांआरा बेगम मस्जिद) की सीढ़ियों के नीचे दबे हैं. इस बारे में वादी पक्ष के वकील विनोद शुक्ला ने बताया कि हमने कोर्ट से मांग की है, सच को सामने लाने के लिए एएसआई सर्वे कराया जाना चाहिए. एएसआई की रिपोर्ट के आधार पर विवाद खत्म किया जा सकता है. कोर्ट ने दोनों ही मामलों में सुनवाई के लिए 30 सितंबर की तिथि नियत थी. जिसके बाद 30 सिंतबर को सुनवाई हुई, जिसमें अगली सुनवाई की तारीख 12 अक्टूबर नियत की गई थी. अब इस मामले में अगली सुनवाई 27 अक्टूबर को होगी.
जामा मस्जिद मामले में एक और पक्षकार: कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर बनाम जामा मस्जिद मामले में शुक्रवार को एक पक्षकार और सामने आ गया. अधिवक्ता जुनैद इरशादी ने कोर्ट में प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कर कहा कि इस मामले में उन्हें भी पक्षकार बनाया जाए. उनके पास इससे जुड़े अहम साक्ष्य हैं.
किसने बनवाई जामा मस्जिद: इतिहासकार राजकिशोर राजे बताते हैं कि मुगल शहंशाह शाहजहां की 14 संतानें थीं. जिसमें मेहरून्निसा बेगम, जहांआरा, दारा शिकोह, शाह शूजा, रोशनआरा, औरंगजेब, उमेदबक्श, सुरैया बानो बेगम, मुराद लुतफुल्ला, दौलत आफजा और गौहरा बेगम शामिल थे. शाहजहां की सबसे प्रिय बेटी जहांआरा थी. जहांआरा ने ही अपने वजीफा की रकम से सन् 1643 से 1648 के बीच जामा मस्जिद का निर्माण कराया था. जामा मस्जिद 271 फुट लंबी और 270 फीट चौड़ी है. जिसमें करीब पांच लाख रुपए खर्च हुए थे. जामा मस्जिद में एक साथ 10 हजार लोग नमाज पढ़ सकते हैं.
औरंगजेब ने मूर्तियां दबाईं थी: वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि 16 वीं शताब्दी के सातवें दशक में मुगल बादशाह औरंगजेब ने मथुरा के केशवदेव मंदिर को ध्वस्त कराया था. केशवदेव मंदिर की मूर्तियों के साथ ही तमाम पुरावशेष आगरा में लाए गए. इन सभी मूर्तियों और पुरावशेष को जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबाया गया था. औरंगजेब ने यह इसलिए किया था कि मस्जिद में आने वाले नमाजियों के पैरों के नीचे ये मूर्तियां और विग्रह रहे. औरंगजेब का यह बहुत ही निंदनीय कार्य था. लेकिन इन मूर्तियों को अब वहां से बाहर निकाला जाना चाहिए.
औरंगजेब के इस कृत्य का पुस्तकों में विस्तार से जिक्र: वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' के मुताबिक आगरा की जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबी भगवान श्रीकृष्ण की मूर्तियों के साथ अन्य विग्रहों के बारे में तमाम इतिहासकारों ने अपनी पुस्तकों में लिखा है. सन् 1940 में एसआर शर्मा ने 'भारत में मुगल समराज' नाम से लिखी किताब में मूर्तियों को जामा मस्जिद की सीढ़ियों के दबाए जाने का जिक्र है. औरंगजेब के सहायक रहे मुहम्मद साकी मुस्तइद्दखां ने अपनी पुस्तक 'मआसिर-ए-आलमगीरी' में, इतिहासकार जदुनाथ सरकार की पुस्तक 'ए शॉर्ट हिस्ट्री ऑफ औरंगजेब' में, मेरी पुस्तक 'तवारीख़-ए-आगरा' में और मथुरा के महशहूर साहित्यकार प्रो. चिंतामणि शुक्ल की पुस्तक ' मथुरा जनपद का राजनीतिक इतिहास' में भी जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे मूर्तियां दबाने का विस्तार से जिक्र किया गया है. इन मूर्तियों को जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे से निकालने से यह पता चल जाएगा कि मथुरा के केशवदेव मंदिर में भगवान श्री कृष्ण समेत अन्य तमाम देवी देवताओं की मूर्तियां और विग्रह किस तरह के थे.
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