आगरा: 'वैष्णव जन तो तेने कहिए, जे पीर पराई जाणे रे...' 'रघुपति राघव राजा राम...' जैसे ही राष्ट्रपति महात्मा गांधी के मुख से निकलता था तो आगरा में बेबी ताज से सटा बगीचा गूंज उठता था. लेकिन, आजाद भारत में बापू की स्मृतियों को समेटे आगरा का गांधी स्मारक बदहाल और खामोश है. गांधी जी 11 दिन तक यहां रहे थे. सैकडों गांधीवादी और आमजन तब गांधी जी की एक झलक पाने यहां पहुंचते थे. लेकिन, आज उसी गांधी स्मारक का रामधुन वाला ऐतिहासिक चबूतरा बदहाल है. जिस कुएं का पानी पीने से गांधी का स्वास्थ्य बेहतर हुआ था. वो कुआं भी अटा पड़ा है. इतना ही नहीं, बापू की मूर्ति बदहाल है. उसे ढकने के लिए एक मीटर कपड़ा भी नहीं है. गांधी जी की आंखों का चश्मा और चरखा भी टूट चुका है. आज बदहाल गांधी स्मारक की दास्तां सुनाने वाला भी कोई नहीं है.
जब जंग-ए-आजादी का ऐलान हुआ था, तब आंदोलन को गति देने के लिए गांधी जी ने देश के अलग-अलग हिस्सों में दौरे किये थे. वैसे गांधी जी आगरा दो बार आए. पहली बार गांधी जी ज्यादा दिन आगरा में नहीं रुके. दूसरी बार गांधी जी यहां पर इलाज कराने के लिए आए थे. गांधी जी ने आगरा प्रवास के दौरान गांधीवादी, क्रांतिकारी, व्यापारियों, जौहरियों समेत आम जनमानस से मुलाकात की थी.
कस्तूरबा गांधी और अन्य के साथ आए थे गांधीजी: वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर राजे बताते हैं कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी स्वास्थ्य लाभ के लिए सन 1929 में आगरा आए थे. गांधी जी 11 सितंबर से 21 सितंबर 1929 तक बेबी ताज से सटी ब्रजमोहन दास मेहरा के बगीची में रुके. गांधी जी के साथ कस्तूरबा गांधी, आचार्य कृपलानी, मीरा बहन और जयप्रकाश नारायण की पत्नी प्रभावती समेत अन्य आए थे. गांधी जी के पेट में कुछ दिक्कत थी. उन्हें बताया गया था कि ब्रजमोहन दास मेहरा की बगीची में स्थित कुएं का पानी पीने से पेट से जुड़ी बीमारी ठीक हो जाती हैं. इसके चलते ही गांधी जी आगरा आए. उन्होंने जब पहले दिन ही कुएं का पानी पिया तो पेट की बीमारी से आराम मिला. इसलिए, 11 दिन तक गांधी जी यहां पर रुके.
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परिवार ने महात्मा गांधी स्मारक ट्रस्ट को किया दान: इतिहासकार राजकिशोर राजे बताते हैं कि जब गांधीजी की हत्या हुई तो सन 1948 में ब्रजमोहन दास मेहरा ने अपने पिता रामदास मेहरा की स्मृति में बगीची को महात्मा गांधी स्मारक ट्रस्ट को दान कर दिया. सन 1955 में गांधी जयंती पर म्यूनिसिपल महिला औषधालय, आयुर्वेदिक औषधालय और मातृत्व शिशु कल्याण केंद्र खोले गए. लंबे अरसे तक ये यहां पर चले. इसके बाद बदहाल गांधी स्मारक का सन 2015 से 2016 में एडीए ने जीर्णोद्धार कराया था. बापू जिस जगह यमुना किनारे बैठकर राजधुन गाते थे, उस चबूतरे को सही कराया गया था. जिन कमरों में गांधीजी रुके थे, उन्हें संग्रहालय बना दिया गया.
बदहाल स्मारक की शिकायत अधिकारी सुनते नहीं: बैंक से रिटायर जगदीश यादव करीब 2010 से गांधी स्मारक की देखरेख कर रहे हैं. जगदीश ने बताया कि चबूतरा ध्वस्त हो चुका है. जो पत्थर लगे थे. उन्हें लोग ले गए. कुआं अटा हुआ है. यहां पर साफ सफाई और देखभाल नहीं होती है. नगर निगम और अन्य जिम्मेदार अधिकारी यहां पर देखने तक नहीं आते हैं. मैंने कई बार नगर निगम अधिकारियों को यहां की बदहाल हालात के बारे में जानकारी दी. लेकिन, कोई सुनने वाला नही है.
मूर्ति टूट गई, ढकने को कपड़ा तक नहीं: बैंक से रिटायर जगदीश यादव ने बताया कि गांधी जी की मूर्ति टूट गई है, चश्मा टूट गया है, चरखा टूट गया है, मूर्ति को ढकने के लिए कपड़ा तक नहीं है. मैंने ही एक कपड़ा खरीदा है. जिससे दो अक्टूबर को गांधी जी की मूर्ति ढकी जा सके. जनप्रतिनिधियों से मिला लेकिन, कोई सुनवाई नहीं कर रहा है. गांधी स्मारक में हर साल गांधी जयंती से पहले ही साफ सफाई होती है. बाकी के दिन यहां पर गंदगी का अंबार रहता है. इन दिनों में ही खुद को गांधीवादी कहने वाले कुछ नेता यहां आते हैं. इसके बाद यहां पर सन्नाटा पसरा रहता है.
जुआरी और शराबियों का अड्डा: गांधी स्मारक वैसे तो जुआरी और शराबियों का अड्डा है. दिनभर यहां पर शराबियों और जुआरियों का जमावाड़ा रहता है. ईटीवी भारत की टीम जब गांधी स्मारक पर पहुंची तो वहां पर जुआरियों की फड़ सजी हुई थी. ईटीवी भारत का कैमरा देखते ही शराबी मौके से फरार हो गए.
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