आगरा: यमुना नदी में बाढ़ के हालात को देखते हुए 1976 में केंद्रीय जल आयोग ने पोइया घाट पर अपना साइट कार्यालय शुरू किया था. इस साइट कार्यालय में कई अत्याधुनिक मशीनें मौजूद हैं.इन मशीनों से यमुना के तेज बहाव, यमुना में सिल्ट और पानी की गहराई समेत अन्य तमाम रीडिंग्स ली जाती है. इनमें से यूएस मेड एक मशीन है, जिसका नाम है एडीसीपी. इस मशीन की खासियत को जानने के लिए ईटीवी भारत ने केंद्रीय जल आयोग के जूनियर इंजीनियर भागीरथी से बातचीत की.
क्या है एडीसीपी
केंद्रीय जल आयोग के जूनियर इंजीनियर भागीरथी अग्रहरि ने ईटीवी भारत से बात करते हुए बताया कि हम हर दिन यमुना के वाटर लेवल का मेजरमेंट करते हैं. इसकी कई तकनीके हैं. इनमें हमारे पास सबसे अत्याधुनिक तकनीक की यूस मेड एडीसीपी मशीन है. इससे हम आसानी से और बहुत ही एक्यूरेट पानी की वैलोसिटी, पानी की डेप्थ और अन्य तमाम जांचे करते हैं. इसे नाव के पीछे बांध दिया जाता है. इसके बाद से जीपीएस से लैपटॉप से कनेक्ट करके मेजरमेंट किया जाता है. इसके साथ ही सिल्ट और अन्य तमाम मेजरमेंट के लिए भी हमारे पास कई अत्याधुनिक इंस्ट्रूमेंट हैं.
क्या है सिल्ट सैंपलर
भागीरथी अग्रहरि ने बताया कि यमुना में कितनी सिल्ट है, इसकी भी जांच हम कर सकते हैं. इसके लिए हमारे पास सिल्ट सैंपलर समेत अन्य अत्याधुनिक उपकरण हैं, जिससे हम इस समय यमुना में पानी के साथ कितनी सिल्ट बह रही है इसका भी मेजरमेंट करते हैं.
48 घंटे पहले चल सकता है बाढ़ का पता
भागीरथी अग्रहरि ने बताया कि केंद्रीय जल आयोग की टीम के जरिए बाढ़ का पूर्वानुमान की भी व्यवस्था की गई है. इसमें जब बाढ़ का पूर्वानुमान करना होता है, तो हमें 24 से 48 घंटे पहले ही पता चल जाता है कि यमुना में कितना पानी बढ़ सकता है. इसके बाद इसकी जानकारी तत्काल जिला प्रशासन को देने की व्यवस्था की गई है.
जलस्तर की पीक प्वाइंट का चलेगा पता
भागीरथी अग्रहरि ने बताया कि इस तकनीक से किस समय पर यमुना नदी में जलस्तर का पीक प्वॉइन्ट होगा, इसका पता लगाया जा सकता है. इससे बाढ़ जैसी समस्याओं से निबटने में सहायता मिलेगी.
पोइया घाट कार्यालय की खासियत
केंद्रीय जल आयोग की साइट का कार्यालय साल 1976 में पोइया घाट पर खोला गया था. इसके लिए पहले गेज पोस्ट की जांच शुरू हुई. फिर सिल्ट और वाटर क्वालिटी की जांच शुरू की गई. इस साइट कार्यालय की वजह से ही पोइया घाट पर यमुना में मार्किंग के लिए पॉइंट भी बनाए गए हैं, जिससे वाटर लेवल का पता किया जा सकता है.