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चंबल की गोद में पहुंचे नन्हें मेहमान, कछुओं के 2000 बच्चों को मिली नई जिंदगी

चंबल सेंचुरी के जैतपुर के नदगवां घाट पर 2500 और इटावा के गढायता चंबल नदी घाट पर करीब 2000 हजार कछुओं के बच्चों को चंबल नदी में छोड़ा गया. कछुआ प्रजातियों की नेस्टिंग के बाद बच्चों की हैचिंग हो रही है, जिसे देखकर टीएसए और वन विभाग उत्साहित दिखाई दे रहा है.

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Published : May 23, 2023, 5:58 PM IST

Updated : May 24, 2023, 12:47 PM IST

चंबल नदी में छोड़े गए कछुए के बच्चे.

आगराः जिले के बाह थाना क्षेत्र से सटी चंबल सेंचुरी में घड़ियाल और मगरमच्छों के साथ कछुओं का परिवार लगातार बढ़ रहा है. दुनिया भर से कछुओं की कई प्रजाति विलुप्त हो गई हैं, जो कि चंबल में पाई जा रही हैं. इन प्रजातियों का संरक्षण टीएसए (टर्टल सर्वाईवल एलाइंस) संस्था एवं वन विभाग द्वारा किया जा रहा है. इससे कछुआ प्रजाति चंबल सेंचुरी में लगातार बढ़ रही है. कछुओं के बचाव के लिए लगाये गये नेस्टो से सोमवार को चंबल सेंचुरी के जैतपुर के नदगवां घाट पर 2500 एवं इटावा के गढायता चंबल नदी घाट पर करीब 2000 हजार कछुआ के बच्चों को चंबल नदी की गोद में वनकर्मियों द्वारा छोड़ा गया.

चंबल नदी में पहुंचे नन्हें मेहमान
2000 हजार कछुए चंबल नदी में छोड़े गये

बता दें कि भारत में करीब 29 प्रजातियां कछुआ की पाई जाती हैं, जिनमें से 9 दुर्लभ प्रजाति चंबल नदी में देखने को मिलती हैं. इनका संरक्षण चंबल सेंचुरी में हो रहा है. रेड क्राउन रूफ टर्टल चंबल नदी में पाया जाता है. चंबल नदी में ज्यादातर सीम, साल, बटागुर, पचपेड़ा, कटहेवा, घोंड, इंडियन स्टार, सुंदरी, मोरपंखी, ढोर और काली ढोर कछुओं की आदि प्रजातियां पाई जाती हैं. कछुआ ऐसा जलीय जीव है, जो पानी की गंदगी को साफ करता है. मई माह में चंबल नदी सेंचुरी क्षेत्र में कछुआ प्रजातियों की नेस्टिंग हुई और अब नन्हें बच्चों की हैचिंग हो रही है, जिसे देखकर टीएसए और वन विभाग उत्साहित दिखाई दे रहा है.

चंबल सेंचुरी में मगरमच्छ
चंबल सेंचुरी में मगरमच्छ

चंबल सेंचुरी में लगातार कछुओं का कुनबा बढ़ने से वन विभाग उत्साहित दिखाई दे रहा है. वहीं, कछुआ प्रजाति संरक्षण पर टीएसए संस्था करीब 13 वर्षों से काम कर रही है और उनकी मेहनत भी लगातार रंग ला रही है. खुशी की बात यह है कि दुनिया भर में साल प्रजाति की कुछ 500 के करीब कछुए बचे हुए हैं. वह भी चंबल सेंचुरी में पाए जाते हैं. बता दें कि इटावा के गढायता हर वर्ष हेचरी बनाई जाती है, जो की चंबल नदी किनारे कछुआ के अंडा को जमा करती है. इनमें सैकड़ों की संख्या में नन्हें कछुए के बच्चे जन्म देते हैं.

कछुआ प्रजाति बिल्कुल सरल स्वभाव की होती है, जो पानी में सड़े गले जीव जंतुओं को खाकर पानी को साफ रखते हैं. इसी संदर्भ में चंबल वाइल्डलाइफ सेंचुरी क्षेत्र के रेंजर आरके सिंह राठौर ने बताया कि नेस्टिंग के बाद कछुओं की हैचिंग हुई है, जिनमें नन्हें बच्चों को चंबल नदी में छोड़ा गया है. वनकर्मियों के लिए उत्साह वाला दिन है. कछुआ की दुर्लभ प्रजाति का लगातार चंबल में कुनबा बढ़ रहा है. वन विभाग पूरी तरह से जल ही जीवन की रक्षा के लिए प्रयासरत है. अगले माह जून में घड़ियाल और मगरमच्छों की हैचिंग होगी, जिसके लिए भी तैयारी पूरी कर ली गई है.

पढ़ेंः चंबल में धूप सेंकने निकल रहे मगरमच्छ और घड़ियाल, विदेशी पक्षी कर रहे कलरव

चंबल नदी में छोड़े गए कछुए के बच्चे.

आगराः जिले के बाह थाना क्षेत्र से सटी चंबल सेंचुरी में घड़ियाल और मगरमच्छों के साथ कछुओं का परिवार लगातार बढ़ रहा है. दुनिया भर से कछुओं की कई प्रजाति विलुप्त हो गई हैं, जो कि चंबल में पाई जा रही हैं. इन प्रजातियों का संरक्षण टीएसए (टर्टल सर्वाईवल एलाइंस) संस्था एवं वन विभाग द्वारा किया जा रहा है. इससे कछुआ प्रजाति चंबल सेंचुरी में लगातार बढ़ रही है. कछुओं के बचाव के लिए लगाये गये नेस्टो से सोमवार को चंबल सेंचुरी के जैतपुर के नदगवां घाट पर 2500 एवं इटावा के गढायता चंबल नदी घाट पर करीब 2000 हजार कछुआ के बच्चों को चंबल नदी की गोद में वनकर्मियों द्वारा छोड़ा गया.

चंबल नदी में पहुंचे नन्हें मेहमान
2000 हजार कछुए चंबल नदी में छोड़े गये

बता दें कि भारत में करीब 29 प्रजातियां कछुआ की पाई जाती हैं, जिनमें से 9 दुर्लभ प्रजाति चंबल नदी में देखने को मिलती हैं. इनका संरक्षण चंबल सेंचुरी में हो रहा है. रेड क्राउन रूफ टर्टल चंबल नदी में पाया जाता है. चंबल नदी में ज्यादातर सीम, साल, बटागुर, पचपेड़ा, कटहेवा, घोंड, इंडियन स्टार, सुंदरी, मोरपंखी, ढोर और काली ढोर कछुओं की आदि प्रजातियां पाई जाती हैं. कछुआ ऐसा जलीय जीव है, जो पानी की गंदगी को साफ करता है. मई माह में चंबल नदी सेंचुरी क्षेत्र में कछुआ प्रजातियों की नेस्टिंग हुई और अब नन्हें बच्चों की हैचिंग हो रही है, जिसे देखकर टीएसए और वन विभाग उत्साहित दिखाई दे रहा है.

चंबल सेंचुरी में मगरमच्छ
चंबल सेंचुरी में मगरमच्छ

चंबल सेंचुरी में लगातार कछुओं का कुनबा बढ़ने से वन विभाग उत्साहित दिखाई दे रहा है. वहीं, कछुआ प्रजाति संरक्षण पर टीएसए संस्था करीब 13 वर्षों से काम कर रही है और उनकी मेहनत भी लगातार रंग ला रही है. खुशी की बात यह है कि दुनिया भर में साल प्रजाति की कुछ 500 के करीब कछुए बचे हुए हैं. वह भी चंबल सेंचुरी में पाए जाते हैं. बता दें कि इटावा के गढायता हर वर्ष हेचरी बनाई जाती है, जो की चंबल नदी किनारे कछुआ के अंडा को जमा करती है. इनमें सैकड़ों की संख्या में नन्हें कछुए के बच्चे जन्म देते हैं.

कछुआ प्रजाति बिल्कुल सरल स्वभाव की होती है, जो पानी में सड़े गले जीव जंतुओं को खाकर पानी को साफ रखते हैं. इसी संदर्भ में चंबल वाइल्डलाइफ सेंचुरी क्षेत्र के रेंजर आरके सिंह राठौर ने बताया कि नेस्टिंग के बाद कछुओं की हैचिंग हुई है, जिनमें नन्हें बच्चों को चंबल नदी में छोड़ा गया है. वनकर्मियों के लिए उत्साह वाला दिन है. कछुआ की दुर्लभ प्रजाति का लगातार चंबल में कुनबा बढ़ रहा है. वन विभाग पूरी तरह से जल ही जीवन की रक्षा के लिए प्रयासरत है. अगले माह जून में घड़ियाल और मगरमच्छों की हैचिंग होगी, जिसके लिए भी तैयारी पूरी कर ली गई है.

पढ़ेंः चंबल में धूप सेंकने निकल रहे मगरमच्छ और घड़ियाल, विदेशी पक्षी कर रहे कलरव

Last Updated : May 24, 2023, 12:47 PM IST
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