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आजादी का अमृत महोत्सव: आगरा के इसी किले पर दो भाइयों ने बहाने से फहराया था तिरंगा, हिल उठी थी ब्रितानी हुकूमत

आजादी का अमृत महोत्सव पूरा देश मना रहा है. देश की आजादी में योगदान देने वाले वीरों और स्वतंत्रता सेनानियों की यश गाथा का गुणगान हो रहा है. ऐसे में हम आपको बताने जा रहे हैं ऐसे गुमनाम क्रांतिकारियों के बारे में जिनके बारे में शायद ही कोई जानता हो. आगरा के दो भाई ऐसे ही गुमनाम क्रांतिकारियों में शामिल हैं. चलिए जानते हैं उनके बारे में.

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स्पेशल.....आजादी का अमृत महोत्सव: नौजवान भाईयों ने आगरा किला की प्राचीर पर फहराया था तिरंगा, जानें कौन थे साहसी देशभक्त
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Published : Aug 10, 2022, 3:21 PM IST

आगराः यह यशगाथा है सन् 26 जनवरी 1931 की जब आगरा के किले में दो भाई बहाने से तिरंगा फहराकर भाग निकले. उनकी इस दिलेरी ने ब्रितानी हुकूमत को हिला कर रख दिया था. इंग्लैंड तक हड़कंप मच गया था. इन दोनों ही भाइयों के योगदान इतिहास के पन्नों में गुम हो गया. ईटीवी भारत की टीम ने इस बारे में इतिहासकारों से जानकारी जुटाई.

इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' ने बताया कि, एत्मादपुर तहसील के गांव धीरपुरा में सगे भाई महाराज सिंह और सोबरन सिंह ने गांव में ऐलान किया था कि अंजाम चाहे जो कुछ भी हो मगर वे आगरा किले की प्राचीर पर तिरंगा फहराएंगे. गांव वालों ने दोनों की बात हो हंसी में टाल दिया. देशभक्त महाराज सिंह और सोबरन सिंह के सिर पर आगरा किला पर तिरंगा फहराने का जुनून सवार था. उस दौर में अंग्रेजी हुकूमत के लिए कई हिंदुस्ताननी नौकरी करते थे. इसका ही दोनों भाइयों ने फायदा उठाया. दोनों भाइयों ने आगरा किला में प्रवेश के लिए योजना बनाई.

एक भाई डाक देने के बहाने किले में घुसने की योजना बनाई. अंग्रेजी हुकूमत में चपरासी से आगरा किला में प्रवेश की पूरी प्रक्रिया जानी. 26 जनवरी 1931 को देशभक्त महाराज सिंह और सोबरन सिंह ने कपडों में तिरंगा छिपा ले गए. महाराज सिंह चपरासी बना और सोवरन सिंह विकलांग बनकर हाथ में लाठी लेकर आगरा किला पहुंचे.

इतिहासकार ने दी यह जानकारी.

दोनों भाइयों ने डाक देने के बहाने आगरा किले में देहली गेट से प्रवेश किया. किले में मौका मिलते ही महाराज सिंह और सोबरन सिंह आगरा किले की प्राचीर पर पहुंच गए. वहां ब्रितानी हुकूमत का झंडा उतारकर दोनों ने छिपाकर ले गए तिरंगे को फहरा दिया. इसके लिए विकलांग बने भाई ने अपनी लाठी दी. इसके बाद दोनों आराम से वहां से निकल गए.इन दोनों ही भाइयों की देशभक्ति और साहस इतिहास के पन्नों में गुम हो गई. उन्होंने बताया कि इन दोनों ही भाइयों की देशभक्ति का जिक्र उन्होंने अपनी किताब में किया है. उन्होंने मांग की दोनों भाइयों के सम्मान में कोई स्मृति चिह्न बनना चाहिए ताकि नई पीढ़ी उनसे प्रेरणा ले सके.


इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' ने बताया कि देशभक्त महाराज सिंह और सोबरन सिंह के आगरा किला की प्राचीर पर तिरंगा फहराने से अंग्रेजी हुकूमत में खलबली मच गई. आगरा किला पर पहरा कड़ा कर दिया गया था. आगरा किला में किसी भी भारतीय के प्रवेश पर रोक लगा दी गई थी. आगरा किला के आसपास दिखने वाले हर भारतीय संदिग्ध मानकर चेकिंग की जाती थी. इसके साथ ही तिरंगा फहराने वाले के बारे में अंग्रेजी हुकूमत ने खूब छानबीन की. अंग्रेजी हुकूमत के अफसरों ने जांच में रात दिन एक कर दी लेकिन, दोनों भाइयों की पहचान नहीं कर सकी और न ही उन्हें पकड़ सकी.

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आगराः यह यशगाथा है सन् 26 जनवरी 1931 की जब आगरा के किले में दो भाई बहाने से तिरंगा फहराकर भाग निकले. उनकी इस दिलेरी ने ब्रितानी हुकूमत को हिला कर रख दिया था. इंग्लैंड तक हड़कंप मच गया था. इन दोनों ही भाइयों के योगदान इतिहास के पन्नों में गुम हो गया. ईटीवी भारत की टीम ने इस बारे में इतिहासकारों से जानकारी जुटाई.

इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' ने बताया कि, एत्मादपुर तहसील के गांव धीरपुरा में सगे भाई महाराज सिंह और सोबरन सिंह ने गांव में ऐलान किया था कि अंजाम चाहे जो कुछ भी हो मगर वे आगरा किले की प्राचीर पर तिरंगा फहराएंगे. गांव वालों ने दोनों की बात हो हंसी में टाल दिया. देशभक्त महाराज सिंह और सोबरन सिंह के सिर पर आगरा किला पर तिरंगा फहराने का जुनून सवार था. उस दौर में अंग्रेजी हुकूमत के लिए कई हिंदुस्ताननी नौकरी करते थे. इसका ही दोनों भाइयों ने फायदा उठाया. दोनों भाइयों ने आगरा किला में प्रवेश के लिए योजना बनाई.

एक भाई डाक देने के बहाने किले में घुसने की योजना बनाई. अंग्रेजी हुकूमत में चपरासी से आगरा किला में प्रवेश की पूरी प्रक्रिया जानी. 26 जनवरी 1931 को देशभक्त महाराज सिंह और सोबरन सिंह ने कपडों में तिरंगा छिपा ले गए. महाराज सिंह चपरासी बना और सोवरन सिंह विकलांग बनकर हाथ में लाठी लेकर आगरा किला पहुंचे.

इतिहासकार ने दी यह जानकारी.

दोनों भाइयों ने डाक देने के बहाने आगरा किले में देहली गेट से प्रवेश किया. किले में मौका मिलते ही महाराज सिंह और सोबरन सिंह आगरा किले की प्राचीर पर पहुंच गए. वहां ब्रितानी हुकूमत का झंडा उतारकर दोनों ने छिपाकर ले गए तिरंगे को फहरा दिया. इसके लिए विकलांग बने भाई ने अपनी लाठी दी. इसके बाद दोनों आराम से वहां से निकल गए.इन दोनों ही भाइयों की देशभक्ति और साहस इतिहास के पन्नों में गुम हो गई. उन्होंने बताया कि इन दोनों ही भाइयों की देशभक्ति का जिक्र उन्होंने अपनी किताब में किया है. उन्होंने मांग की दोनों भाइयों के सम्मान में कोई स्मृति चिह्न बनना चाहिए ताकि नई पीढ़ी उनसे प्रेरणा ले सके.


इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' ने बताया कि देशभक्त महाराज सिंह और सोबरन सिंह के आगरा किला की प्राचीर पर तिरंगा फहराने से अंग्रेजी हुकूमत में खलबली मच गई. आगरा किला पर पहरा कड़ा कर दिया गया था. आगरा किला में किसी भी भारतीय के प्रवेश पर रोक लगा दी गई थी. आगरा किला के आसपास दिखने वाले हर भारतीय संदिग्ध मानकर चेकिंग की जाती थी. इसके साथ ही तिरंगा फहराने वाले के बारे में अंग्रेजी हुकूमत ने खूब छानबीन की. अंग्रेजी हुकूमत के अफसरों ने जांच में रात दिन एक कर दी लेकिन, दोनों भाइयों की पहचान नहीं कर सकी और न ही उन्हें पकड़ सकी.

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