लंदन : भारत प्रत्यर्पित किए जाने के खिलाफ यहां कानूनी लड़ाई लड़ रहे नीरव मोदी के मामले की सुनवाई एक बार फिर भारत में जेलों की स्थिति और उसकी नाजुक मानसिक हालत पर केंद्रित रही.
पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) से करीब दो अरब डॉलर की धोखाधड़ी और धनशोधन के मामले में भगोड़ा हीरा कारोबारी नीरव (49) वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट अदालत में भारत प्रत्यर्पण के खिलाफ मुकदमा लड़ रहा है.
न्यायमूर्ति सैमुअल गूज की अध्यक्षता में पांच दिवसीय सुनवाई का तीसरा दिन बचाव पक्ष के लिए समर्पित था, जिसने नीरव मोदी के खिलाफ धोखाधड़ी और धनशोधन के प्रथम दृष्टया मामले के खिलाफ दलीलें दी.
नीरव मोदी ने वैंड्सवर्थ जेल से वीडियो लिंक के जरिए अदालत की कार्यवाही देखी. नीरव मोदी पिछले साल मार्च में अपनी गिरफ्तारी के बाद से ही इसी जेल में बंद है.
नीरव मोदी सुनवाई के दौरान अधिकांश समय बेजान नजर आ रहा था. इसे देखते हुए एक समय अदालत ने सुनवाई रोक कर जांच करने को कहा कि क्या वीडियो संपर्क टूट गया है. अदालत ने नीरव को समय-समय पर कुछ हावभाव दिखाने को कहा ताकि अदालत आश्वस्त हो सके कि वह कार्यवाही से जुड़ा हुआ है.
वकील क्लेर मोंटगोमरी की अगुवाई में नीरव मोदी की कानूनी टीम ने एक बार फिर मुंबई की आर्थर रोड जेल में बैरक संख्या 12 की स्थितियों की चर्चा की और दावा किया कि वहां एक आतंकवादी को रखा गया था. इसलिए उसे पूरी तरह से ढक दिया गया था. इसके साथ ही बैरक में गर्मी के अलावा नमी, धूल, कीड़े मकौड़ों जैसी अन्य समस्याएं भी हैं.
बुधवार की सुनवाई के दौरान नीरव मोदी के वकीलों ने यह दावा भी किया कि उनका मुवक्किल 'मीडिया ट्रायल' का विषय रहा है और भारत में उसकी निष्पक्ष सुनवाई नहीं हो सकेगी.
इस मामले में कोई फैसला साल के अंत तक या अगले साल की शुरुआत में आने की उम्मीद नहीं है क्योंकि अंतिम सुनवाई के लिए एक दिसंबर की तारीख अस्थायी रूप से निर्धारित की गई है.
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बचाव पक्ष ने भारतीय उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश अभय थिप्से को निजी तौर पर वीडियो लिंक के जरिए अपना विशेषज्ञ बयान देने की अनुमति देने का अनुरोध किया था जिसे अदालत ने इसी सप्ताह के शुरू में ठुकरा दिया था. इसके बाद उनका लिखित बयान अदालत में प्रस्तुत किया गया ताकि भारत सरकार द्वारा पेश किए गए कुछ सबूतों की स्वीकार्यता के खिलाफ जोर दिया जा सके.
थिप्से की गवाही सवाल उठाती है कि क्या केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा मुहैया कराए गए बयान भारतीय कानून के तहत 'वैधानिक आवश्यकताओं' को पूरा करते हैं.