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The Kerala Story : बंगाल में 'द केरल स्टोरी' बैन, इन तीन बेहद जरूरी सवालों पर आपने दिया ध्यान? - बंगाल में बैन द केरल स्टोरी

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार ने हालिया रिलीज फिल्म 'द केरल स्टोरी' को राज्य में बैन कर दिया है. ऐसे में आज के ओटीटी एज में फिल्म को बैन करने को लेकर तीन सवाल सामने आते हैं. यहां देखिए.

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Published : May 9, 2023, 10:42 PM IST

कोलकाता: पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा राज्य में फिल्म 'द केरल स्टोरी' दिखाने पर प्रतिबंध लगाए जाने के फैसले से दर्शकों की मन में कुछ सवाल बैठ गए हैं. जो लोग प्रतिबंध के खिलाफ हैं, वे तीन अलग-अलग तार्किक आधारों का हवाला दे रहे हैं. लोगों का मानना है कि क्या वास्तव में फिल्म पर बैन लगाने से इस पर कुछ असर पड़ेगा...नहीं. दरअसल, दर्शकों का मानना है कि आज के ओटीटी एज में बैन लगाने से लोगों के मन में फिल्म के प्रति क्रेज और भी बढ़ सकता है.

फिल्म पर प्रतिबंध लगाने का मतलब?
पहला, एक फिल्म पर प्रतिबंध लगाने का औचित्य क्या है, जिसे सेंसर बोर्ड से मंजूरी मिल गई है. दूसरा, ओटीटी के इस युग में बैन का कोई की प्रभाव नहीं पड़ेगा. फिल्म जल्द ही ओटीटी प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध होगी. तीसरा, फिल्म पर प्रतिबंध लगाकर वास्तव में सरकार ने इसके प्रति लोगों में क्रेज बढ़ा दिया है. दूसरी ओर, जो लोग फिल्म पर प्रतिबंध लगाने के फैसले के समर्थन में हैं, उन्हें लगता है कि पश्चिम बंगाल में हाल के दिनों में आए सामाजिक-सांस्कृतिक बदलावों को देखते हुए फिल्म के प्रदर्शन की अनुमति देने में जोखिम था और इसलिए राज्य सरकार ने जोखिम न लेकर सही काम किया है.

एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स (एपीडीआर) के महासचिव रंजीत सूर के मुताबिक, 'जब फिल्म के प्रदर्शन पर रोक का फैसला लिया गया था, तब तक राज्य के अलग-अलग मल्टीप्लेक्स में चार दिनों तक फिल्म की स्क्रीनिंग की जा चुकी थी. सूर ने कहा कि फिल्म की स्क्रीनिंग को लेकर कानून और व्यवस्था की समस्या की एक भी रिपोर्ट नहीं आई है.' राज्य सरकार को फिल्म की स्क्रीनिंग की अनुमति देनी चाहिए थी और राज्य के लोगों को यह तय करने देना चाहिए था कि वे इसे स्वीकार करते हैं या अस्वीकार करते हैं.' 'मुझे नहीं लगता कि फिल्म के प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगाकर राज्य सरकार ने सांप्रदायिक विभाजन पैदा करने के प्रयासों के खिलाफ एक क्रांतिकारी कदम उठाया है.' यह वोट बैंक के ध्रुवीकरण को ध्यान में रखते हुए एक शुद्ध राजनीतिक खेल है.'

इस पर कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील कौशिक गुप्ता ने कहा कि 'सिनेमा हॉल या मल्टीप्लेक्स में फिल्मों के प्रदर्शन पर इस तरह की रोक इंटरनेट और ओटीटी के मौजूदा युग में बेकार है'. गुप्ता ने कहा कि 'पहले से ही फिल्म के ऑनलाइन लीक होने की खबरें आ रही हैं और बहुत जल्द फिल्म एक या एक से अधिक ओटीटी प्लेटफॉर्म पर दिखाई देगी.' 'राज्य सरकार लोगों को वहां देखने से कैसे रोकेगी? बल्कि यह प्रतिबंध अब उन लोगों को भी प्रोत्साहित करेगा, जो फिल्म देखने नहीं गए'.'

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बेहद करीबी और जाने-माने चित्रकार सुभाप्रसन्ना फिल्म पर प्रतिबंध लगाने के राज्य सरकार के तर्क से असहमत हैं. उनके अनुसार, वे हमेशा किसी भी रचनात्मक कार्य के खिलाफ जबरन को लेकर असहमत रहे हैं. उन्होंने कहा कि 'जब सेंसर बोर्ड ने फिल्म के प्रदर्शन को हरी झंडी दे दी है तो उन्हें राज्य सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंध पर कोई तर्क नजर नहीं आता. उन्होंने कहा, लोगों को फिल्म को स्वीकार या अस्वीकार करने की आजादी होनी चाहिए'. (आईएएनएस)

यह भी पढ़ें: The Kashmir Files : 'द कश्मीर फाइल्स' मेकर्स ने ममता बनर्जी को भेजा कानूनी नोटिस, जानें पूरा मामला

कोलकाता: पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा राज्य में फिल्म 'द केरल स्टोरी' दिखाने पर प्रतिबंध लगाए जाने के फैसले से दर्शकों की मन में कुछ सवाल बैठ गए हैं. जो लोग प्रतिबंध के खिलाफ हैं, वे तीन अलग-अलग तार्किक आधारों का हवाला दे रहे हैं. लोगों का मानना है कि क्या वास्तव में फिल्म पर बैन लगाने से इस पर कुछ असर पड़ेगा...नहीं. दरअसल, दर्शकों का मानना है कि आज के ओटीटी एज में बैन लगाने से लोगों के मन में फिल्म के प्रति क्रेज और भी बढ़ सकता है.

फिल्म पर प्रतिबंध लगाने का मतलब?
पहला, एक फिल्म पर प्रतिबंध लगाने का औचित्य क्या है, जिसे सेंसर बोर्ड से मंजूरी मिल गई है. दूसरा, ओटीटी के इस युग में बैन का कोई की प्रभाव नहीं पड़ेगा. फिल्म जल्द ही ओटीटी प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध होगी. तीसरा, फिल्म पर प्रतिबंध लगाकर वास्तव में सरकार ने इसके प्रति लोगों में क्रेज बढ़ा दिया है. दूसरी ओर, जो लोग फिल्म पर प्रतिबंध लगाने के फैसले के समर्थन में हैं, उन्हें लगता है कि पश्चिम बंगाल में हाल के दिनों में आए सामाजिक-सांस्कृतिक बदलावों को देखते हुए फिल्म के प्रदर्शन की अनुमति देने में जोखिम था और इसलिए राज्य सरकार ने जोखिम न लेकर सही काम किया है.

एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स (एपीडीआर) के महासचिव रंजीत सूर के मुताबिक, 'जब फिल्म के प्रदर्शन पर रोक का फैसला लिया गया था, तब तक राज्य के अलग-अलग मल्टीप्लेक्स में चार दिनों तक फिल्म की स्क्रीनिंग की जा चुकी थी. सूर ने कहा कि फिल्म की स्क्रीनिंग को लेकर कानून और व्यवस्था की समस्या की एक भी रिपोर्ट नहीं आई है.' राज्य सरकार को फिल्म की स्क्रीनिंग की अनुमति देनी चाहिए थी और राज्य के लोगों को यह तय करने देना चाहिए था कि वे इसे स्वीकार करते हैं या अस्वीकार करते हैं.' 'मुझे नहीं लगता कि फिल्म के प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगाकर राज्य सरकार ने सांप्रदायिक विभाजन पैदा करने के प्रयासों के खिलाफ एक क्रांतिकारी कदम उठाया है.' यह वोट बैंक के ध्रुवीकरण को ध्यान में रखते हुए एक शुद्ध राजनीतिक खेल है.'

इस पर कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील कौशिक गुप्ता ने कहा कि 'सिनेमा हॉल या मल्टीप्लेक्स में फिल्मों के प्रदर्शन पर इस तरह की रोक इंटरनेट और ओटीटी के मौजूदा युग में बेकार है'. गुप्ता ने कहा कि 'पहले से ही फिल्म के ऑनलाइन लीक होने की खबरें आ रही हैं और बहुत जल्द फिल्म एक या एक से अधिक ओटीटी प्लेटफॉर्म पर दिखाई देगी.' 'राज्य सरकार लोगों को वहां देखने से कैसे रोकेगी? बल्कि यह प्रतिबंध अब उन लोगों को भी प्रोत्साहित करेगा, जो फिल्म देखने नहीं गए'.'

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बेहद करीबी और जाने-माने चित्रकार सुभाप्रसन्ना फिल्म पर प्रतिबंध लगाने के राज्य सरकार के तर्क से असहमत हैं. उनके अनुसार, वे हमेशा किसी भी रचनात्मक कार्य के खिलाफ जबरन को लेकर असहमत रहे हैं. उन्होंने कहा कि 'जब सेंसर बोर्ड ने फिल्म के प्रदर्शन को हरी झंडी दे दी है तो उन्हें राज्य सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंध पर कोई तर्क नजर नहीं आता. उन्होंने कहा, लोगों को फिल्म को स्वीकार या अस्वीकार करने की आजादी होनी चाहिए'. (आईएएनएस)

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