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लखनऊ : मंडल कमीशन की जमीन पर सपा-बसपा गठबंधन खेल रहा दांव

उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन भारतीय जनता पार्टी को एक बार फिर मंडल कमीशन के अखाड़े में घेरने की कोशिश कर रहा है. सपा हालांकि बेरोजगारी और किसानों की बदहाली को भी चुनावी विमर्श में शामिल करना चाहती है. मगर उसका असली फोकस भाजपा को सवर्ण समर्थक पार्टी करार देने में है.

मंडल कमीशन की जमीन पर सपा-बसपा गठबंधन खेल रहा दांव
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Published : Apr 5, 2019, 8:11 AM IST

लखनऊ :सपा-बसपा गठबंधन उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को एक बार फिर मंडल कमीशन के अखाड़े में घेरने की कोशिश कर रहा है. समाजवादी पार्टी हालांकि बेरोजगारी और किसानों की बदहाली को भी चुनावी विमर्श में शामिल करना चाहती है. मगर उसका असली फोकस भाजपा को सवर्ण समर्थक पार्टी करार देने में है. इससे जातीय समीकरण की धुरी भी मजबूत हो रही है.

मंडल कमीशन की जमीन पर सपा-बसपा गठबंधन खेल रहा दांव

लगभग 26 साल बाद सपा और बसपा में एक बार दोबारा जब गठबंधन हुआ है तो दोनों ही राजनीतिक दलों की मंशा मंडल कमीशन की राजनीतिक विरासत का इकलौता वारिस बनना है. पांच साल पहले पीएम मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने सपा-बसपा से मंडल कमीशन की पुरानी राजनीतिक जमीन हिंदुत्व के एजेंडे पर छीन ली थी. राम लहर के बाद ऐसा पहली बार हुआ था जब जातियों में बंटे मतदाताओं ने खांचे तोड़कर भाजपा के पक्ष में वोट किया था और बसपा को लोकसभा से बाहर बैठने पर मजबूर कर दिया था. तब सपा भी केवल 5 सीटें जीत सकी थी. यही वजह है कि इस बार बसपा और सपा दोनों ने दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक गठजोड़ बनाने की दिशा में ठोस पहल की और मतदाताओं को भी मोदी मैजिक से बाहर निकलने का रास्ता दिखाया है.

मंडल कमीशन के जातीय जनाधार पर दिल्ली पहुंचने का सपना देख रहे दोनों राजनीतिक दल लगातार भाजपा पर हमलावर हैं. उसे सवर्ण समर्थक पार्टी साबित करने में जुटे हैं. यही वजह है कि समाजवादी पार्टी अक्सर बेरोजगारी और विकास के मुद्दे पर भाजपा को घेरने की कोशिश करती है. मगर जब चुनाव में टिकट वितरण के जरिए राजनीतिक संदेश देने की बारी आती है तो सबसे ज्यादा मौका पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक और दलित वर्ग की झोली में डाल देती है. इस तरह वह अपने दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक उत्थान के एजेंडे को परवान देने की कोशिश करती है. सपा-बसपा गठबंधन पर आरोप भी यही है कि विकास और बेरोजगारी को मुद्दा बनाने वाली पार्टी देश की नई दिशा का कोई रोड मैप अब तक तैयार नहीं कर सकी है.

लखनऊ :सपा-बसपा गठबंधन उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को एक बार फिर मंडल कमीशन के अखाड़े में घेरने की कोशिश कर रहा है. समाजवादी पार्टी हालांकि बेरोजगारी और किसानों की बदहाली को भी चुनावी विमर्श में शामिल करना चाहती है. मगर उसका असली फोकस भाजपा को सवर्ण समर्थक पार्टी करार देने में है. इससे जातीय समीकरण की धुरी भी मजबूत हो रही है.

मंडल कमीशन की जमीन पर सपा-बसपा गठबंधन खेल रहा दांव

लगभग 26 साल बाद सपा और बसपा में एक बार दोबारा जब गठबंधन हुआ है तो दोनों ही राजनीतिक दलों की मंशा मंडल कमीशन की राजनीतिक विरासत का इकलौता वारिस बनना है. पांच साल पहले पीएम मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने सपा-बसपा से मंडल कमीशन की पुरानी राजनीतिक जमीन हिंदुत्व के एजेंडे पर छीन ली थी. राम लहर के बाद ऐसा पहली बार हुआ था जब जातियों में बंटे मतदाताओं ने खांचे तोड़कर भाजपा के पक्ष में वोट किया था और बसपा को लोकसभा से बाहर बैठने पर मजबूर कर दिया था. तब सपा भी केवल 5 सीटें जीत सकी थी. यही वजह है कि इस बार बसपा और सपा दोनों ने दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक गठजोड़ बनाने की दिशा में ठोस पहल की और मतदाताओं को भी मोदी मैजिक से बाहर निकलने का रास्ता दिखाया है.

मंडल कमीशन के जातीय जनाधार पर दिल्ली पहुंचने का सपना देख रहे दोनों राजनीतिक दल लगातार भाजपा पर हमलावर हैं. उसे सवर्ण समर्थक पार्टी साबित करने में जुटे हैं. यही वजह है कि समाजवादी पार्टी अक्सर बेरोजगारी और विकास के मुद्दे पर भाजपा को घेरने की कोशिश करती है. मगर जब चुनाव में टिकट वितरण के जरिए राजनीतिक संदेश देने की बारी आती है तो सबसे ज्यादा मौका पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक और दलित वर्ग की झोली में डाल देती है. इस तरह वह अपने दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक उत्थान के एजेंडे को परवान देने की कोशिश करती है. सपा-बसपा गठबंधन पर आरोप भी यही है कि विकास और बेरोजगारी को मुद्दा बनाने वाली पार्टी देश की नई दिशा का कोई रोड मैप अब तक तैयार नहीं कर सकी है.

Intro:लखनऊ. सपा -बसपा गठबंधन उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को एक बार फिर मंडल कमीशन के अखाड़े में घेरने की कोशिश कर रहा है. समाजवादी पार्टी हालांकि बेरोजगारी और किसानों की बदहाली को भी चुनावी विमर्श में शामिल करना चाहती है लेकिन उसका असली फोकस भाजपा को सवर्ण समर्थक पार्टी करार देने में है. इससे जातीय समीकरण की धुरी भी मजबूत हो रही है।


Body:लगभग 26 साल बाद समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में एक बार दोबारा जब गठबंधन हुआ है तो दोनों ही राजनीतिक दलों की मंशा मंडल कमीशन की राजनीतिक विरासत का इकलौता वारिस बनना ही है 5 साल पहले नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में
भारतीय जनता पार्टी ने सपा बसपा से मंडल कमीशन की पुरानी राजनीतिक जमीन हिंदुत्व के एजेंडे पर छीन ली थी. राम लहर के बाद ऐसा पहली बार हुआ था जब जातियों में बटे मतदाताओं ने खांचे तोड़कर भाजपा के पक्ष में वोट किया था और बहुजन समाज पार्टी को लोकसभा से बाहर बैठने पर मजबूर कर दिया था। समाजवादी पार्टी भी केवल 5 सीटें जीत सकी थी। यही वजह है कि इस बार बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी दोनों ने दलित पिछड़ा अल्पसंख्यक गठजोड़ बनाने की दिशा में ठोस पहल की और मतदाताओं को भी मोदी मैजिक से बाहर निकलने का रास्ता दिखाया है।

बाइट /नवीन जोशी वरिष्ठ पत्रकार

मंडल कमीशन के जातीय जनाधार पर दिल्ली पहुंचने का सपना देख रहे दोनों राजनीतिक दल लगातार भाजपा पर हमलावर हैं और उसे सवर्ण समर्थक पार्टी साबित करने में जुटे हैं। यही वजह है कि समाजवादी पार्टी अक्सर बेरोजगारी और विकास के मुद्दे पर भाजपा को घेरने की कोशिश करती है लेकिन जब चुनाव में टिकट वितरण के जरिए राजनीतिक संदेश देने की बारी आती है तो सबसे ज्यादा मौका पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक और दलित वर्ग की झोली में डाल देती है। इस तरह वह अपने दलित, पिछड़ा अल्पसंख्यक उत्थान के एजेंडे को परवान देने की कोशिश करती है सपा बसपा गठबंधन पर आरोप भी यही है कि विकास और बेरोजगारी को मुद्दा बनाने वाली पार्टी देश की नई दिशा का कोई रोड मैप अब तक तैयार नहीं कर सकी है ।


बाइट /रहीस सिंह राजनीतिक विश्लेषक व स्तंभकार




Conclusion:पीटीसी अखिलेश तिवारी

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