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19 की मध्यरात्रि में होगा पालनहार श्री कृष्ण का जन्म, दो अद्भुत योग में व्रत और पूजन देगा हर मनोवांछित फल - जन्माष्टमी व्रत का संकल्प

भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि 18 अगस्त को रात्रि 12:14 पर लग रही है. जो 19 अगस्त की रात्रि 1:06 तक रहेगी. श्रीकृष्ण जन्मोत्सव 19 अगस्त की रात्रि 12:00 बजे ही मान्य होगा. क्योंकि इस दिन ही 12:00 बजे मध्य रात्रि में अष्टमी तिथि मौजूद रहेगी.

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मध्यरात्रि में होगा पालनहार श्री कृष्ण का जन्म
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Published : Aug 18, 2022, 3:35 PM IST

वाराणसी: सनातन धर्म में भाद्र कृष्ण अष्टमी को श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत के नाम से जाना जाता है. इस दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है. भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी बुधवार को रोहिणी नक्षत्र में अर्धरात्रि के समय वृष राशि के चंद्रमा में हुआ था. भगवान विष्णु के 10 अवतारों में से सर्व प्रमुख पूर्णा अवतार 16 कलाओं से परिपूर्ण भगवान श्री कृष्ण को माना जाता है. इस बार श्री कृष्ण जन्माष्टमी 19 अगस्त को मनाई जाएगी. गोकुलाष्टमी उदय काल में अष्टमी भी मथुरा वृंदावन में इस दिन ही मनाई जाएगी. वहीं, श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर दो अद्भुत योग इस पर्व को और भी खास बनाने जा रहे हैं. ध्रुव और जय योग में संपूर्ण जन्माष्टमी का फल और व्रत आपको विजय के साथ मनोवांछित फल की प्राप्ति करवाएगा.

ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी ने दी जानकारी
पंडित ऋषि द्विवेदी ने बताया कि भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि 18 अगस्त को रात्रि 12:14 पर लग रही है जो 19 अगस्त की रात्रि 1:06 तक रहेगी और श्रीकृष्ण जन्मोत्सव 19 अगस्त की रात्रि 12:00 बजे ही मान्य होगा, क्योंकि इस दिन ही 12:00 बजे मध्य रात्रि में अष्टमी तिथि मौजूद रहेगी. वहीं वैष्णवजन यानी रोहिणी मताबलम्बी 20 अगस्त को व्रत रखेंगे और श्री कृष्ण का जन्म उत्सव मनाएंगे. ज्योतिषाचार्य ने बताया कि श्री कृष्ण जन्मोत्सव का पर्व 18 और 19 अगस्त को मनाए जाने की बात कही जा रही है. लेकिन 18 अगस्त को अष्टमी तिथि रात्रि में 12:15 बजे लगने की वजह से 19 अगस्त को मध्य रात्रि में ही इस का मान होगा. रोहिणी नक्षत्र को मानने वाले लोग 20 अगस्त को जन्माष्टमी का पर्व मनाएंगे. क्योंकि रोहिणी नक्षत्र 20 अगस्त की भोर में 4:58 पर लग रहा है, जो 21 अगस्त की सुबह 7:00 बजे तक रहेगा.

इसे भी पढ़े-बुलडोजर पर सवार होकर नंद गोपाल चले सिंगापुर, काष्ठ कला में दिखा अद्भुत प्रयोग

पंडित ऋषि द्विवेदी ने बताया कि कृष्ण जन्मउत्सव को अपने तरीके से मनाने का विधान है. इस दिन बाल, कुमार, युवा, वृद्ध सभी अवस्था वाले नर नारियों को यह व्रत करना चाहिए. इसके अनेक फायदे हैं. पापों से मुक्ति दिला कर सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिए यह व्रत उत्तम माना जाता है. जन्माष्टमी महोत्सव के दौरान घरों से लेकर मठ मंदिरों तक बधाई गूंजे की और सोहर गीत गाए जाएंगे. व्रतियों को चाहिए कि इस दिन उपवास से पहले दिन में अल्पाहार करके रात में भगवान का ध्यान और पूजन करें व्रत के दिन प्रातः स्नानादि कर सूर्य, पवन, भूमि आकाश, बम और ब्रह्मा आदि को नमस्कार कर उत्तर विमुख बैठे. हाथ में जल अक्षत पुष्प लेकर मास तिथि इत्यादि का उच्चारण कर जन्माष्टमी व्रत का संकल्प लें. दोपहर में काले तिल युक्त जल से स्नान कर माता देवकी के लिए सूतिका गृह नियत करें. उसे स्वच्छ और सुशोभित कर सूती का उपयोग समस्त सामग्री तथा क्रम रखें. अक्षत आदि मंडल बनाकर कलश की स्थापना करें और उस पर श्री कृष्ण की मूर्ति स्थापित करें. रात में भगवान के जन्म के बाद जागरण और भजन करना उत्तम माना गया है.

पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व अपने आप में सबसे उत्तम और सभी मनोवांछित फलों को देने वाला व्रत होता है. इस दिन जो भी निसंतान दंपत्ति खास करके महिला भगवान श्री कृष्ण की आराधना करके यह व्रत रखती है उसे संतान की प्राप्ति होती है. पुत्र प्राप्ति की कामना के लिए भी बहुत से लोग इस व्रत को रखते हैं.

पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि यह दिन अपने आप में इस बार खास इसलिए भी है क्योंकि, 19 अगस्त को मध्य रात्रि के वक्त दो ऐसे अद्भुत योग मिल रहे हैं, जो इस दिन को और भी खास बना देंगे. इस दिन एक तरफ जहां ध्रुव योग है तो दूसरा जय योग. जय योग हर कार्य में विजय दिलवाने के लिए उत्तम माना जा रहा है. ध्रुव योग में भगवान श्री कृष्ण की आराधना मनोवांछित फल के साथ धन-संपत्ति और हर तरह की इच्छाओं की पूर्ति के लिए उत्तम है.

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वाराणसी: सनातन धर्म में भाद्र कृष्ण अष्टमी को श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत के नाम से जाना जाता है. इस दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है. भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी बुधवार को रोहिणी नक्षत्र में अर्धरात्रि के समय वृष राशि के चंद्रमा में हुआ था. भगवान विष्णु के 10 अवतारों में से सर्व प्रमुख पूर्णा अवतार 16 कलाओं से परिपूर्ण भगवान श्री कृष्ण को माना जाता है. इस बार श्री कृष्ण जन्माष्टमी 19 अगस्त को मनाई जाएगी. गोकुलाष्टमी उदय काल में अष्टमी भी मथुरा वृंदावन में इस दिन ही मनाई जाएगी. वहीं, श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर दो अद्भुत योग इस पर्व को और भी खास बनाने जा रहे हैं. ध्रुव और जय योग में संपूर्ण जन्माष्टमी का फल और व्रत आपको विजय के साथ मनोवांछित फल की प्राप्ति करवाएगा.

ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी ने दी जानकारी
पंडित ऋषि द्विवेदी ने बताया कि भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि 18 अगस्त को रात्रि 12:14 पर लग रही है जो 19 अगस्त की रात्रि 1:06 तक रहेगी और श्रीकृष्ण जन्मोत्सव 19 अगस्त की रात्रि 12:00 बजे ही मान्य होगा, क्योंकि इस दिन ही 12:00 बजे मध्य रात्रि में अष्टमी तिथि मौजूद रहेगी. वहीं वैष्णवजन यानी रोहिणी मताबलम्बी 20 अगस्त को व्रत रखेंगे और श्री कृष्ण का जन्म उत्सव मनाएंगे. ज्योतिषाचार्य ने बताया कि श्री कृष्ण जन्मोत्सव का पर्व 18 और 19 अगस्त को मनाए जाने की बात कही जा रही है. लेकिन 18 अगस्त को अष्टमी तिथि रात्रि में 12:15 बजे लगने की वजह से 19 अगस्त को मध्य रात्रि में ही इस का मान होगा. रोहिणी नक्षत्र को मानने वाले लोग 20 अगस्त को जन्माष्टमी का पर्व मनाएंगे. क्योंकि रोहिणी नक्षत्र 20 अगस्त की भोर में 4:58 पर लग रहा है, जो 21 अगस्त की सुबह 7:00 बजे तक रहेगा.

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पंडित ऋषि द्विवेदी ने बताया कि कृष्ण जन्मउत्सव को अपने तरीके से मनाने का विधान है. इस दिन बाल, कुमार, युवा, वृद्ध सभी अवस्था वाले नर नारियों को यह व्रत करना चाहिए. इसके अनेक फायदे हैं. पापों से मुक्ति दिला कर सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिए यह व्रत उत्तम माना जाता है. जन्माष्टमी महोत्सव के दौरान घरों से लेकर मठ मंदिरों तक बधाई गूंजे की और सोहर गीत गाए जाएंगे. व्रतियों को चाहिए कि इस दिन उपवास से पहले दिन में अल्पाहार करके रात में भगवान का ध्यान और पूजन करें व्रत के दिन प्रातः स्नानादि कर सूर्य, पवन, भूमि आकाश, बम और ब्रह्मा आदि को नमस्कार कर उत्तर विमुख बैठे. हाथ में जल अक्षत पुष्प लेकर मास तिथि इत्यादि का उच्चारण कर जन्माष्टमी व्रत का संकल्प लें. दोपहर में काले तिल युक्त जल से स्नान कर माता देवकी के लिए सूतिका गृह नियत करें. उसे स्वच्छ और सुशोभित कर सूती का उपयोग समस्त सामग्री तथा क्रम रखें. अक्षत आदि मंडल बनाकर कलश की स्थापना करें और उस पर श्री कृष्ण की मूर्ति स्थापित करें. रात में भगवान के जन्म के बाद जागरण और भजन करना उत्तम माना गया है.

पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व अपने आप में सबसे उत्तम और सभी मनोवांछित फलों को देने वाला व्रत होता है. इस दिन जो भी निसंतान दंपत्ति खास करके महिला भगवान श्री कृष्ण की आराधना करके यह व्रत रखती है उसे संतान की प्राप्ति होती है. पुत्र प्राप्ति की कामना के लिए भी बहुत से लोग इस व्रत को रखते हैं.

पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि यह दिन अपने आप में इस बार खास इसलिए भी है क्योंकि, 19 अगस्त को मध्य रात्रि के वक्त दो ऐसे अद्भुत योग मिल रहे हैं, जो इस दिन को और भी खास बना देंगे. इस दिन एक तरफ जहां ध्रुव योग है तो दूसरा जय योग. जय योग हर कार्य में विजय दिलवाने के लिए उत्तम माना जा रहा है. ध्रुव योग में भगवान श्री कृष्ण की आराधना मनोवांछित फल के साथ धन-संपत्ति और हर तरह की इच्छाओं की पूर्ति के लिए उत्तम है.

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