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एक ताने ने बदल दी हजारों की जिंदगी, बनारस की बेटी बनी मिसाल - बनारस की लड़की शबीना

कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता जरा एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों. दुष्यंत कुमार की लिखी यह लाइनें वाराणसी की शबीना खान पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं. मलिन बस्ती नक्खीघाट की रहने वाली शबीना खान ने समाज के तानों को बर्दाश्त न कर कुछ अलग कर गुजरने की ठानी. उन्होंने अपनी जिंदगी में एक ऐसा मकसद चुना जिसने आज हजारों लोगों को शिक्षित करने का काम किया है.

वाराणसी
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Published : Feb 13, 2019, 6:08 PM IST

वाराणसी: शिक्षा के साथ देश के भविष्य कहे जाने वाले बच्चों खासतौर पर लड़कियों को उनके पैरों पर खड़ा करने के लिए शबीना कई रोजगार परक ट्रेनिंग भी देने का काम कर रही हैं. वह भी उस मुस्लिम कम्युनिटी में जहां लड़कियों और महिलाओं को परदे में रखा जाता है. इन सामाजिक प्रभाव को तोड़ते हुए सबीना ने न सिर्फ खुद को शिक्षित किया, बल्कि बहुत सी लड़कियों और लड़कों को भी शिक्षित करने में जुटी हुई हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' के सपने को भी पूरा कर रही हैं.

नक्खीघाट के एक बेहद गरीब परिवार की रहने वाली शबीना एक छोटे से मकान में 2007 से एक मदरसे का संचालन करती आ रही हैं. शबीना बताती हैं कि जब वह कक्षा सात में पढ़ती थी और एक कंपटीशन में हिस्सा लेने के लिए गई थी तो वहां पर सबका परिचय लेने के दौरान जब उनसे पूछा गया कि तुम कहां से आई हो तो उन्होंने बताया नक्खीघाट. इस पर एक व्यक्ति ने कमेंट किया कि अच्छा वही जाहिलों का मोहल्ला. बस यही बात शबीना के दिल में चोट कर गई. वह हर वक्त यह सोचने लगी कि आखिर उसके मोहल्ले को जाहिलों का मोहल्ला क्यों कहते हैं?

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देखें विशेष रिपोर्ट.
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इसी बात को दिल और दिमाग में रखकर शबीना ने अपने घर से कुछ दूर एक छोटे से कमरे में मोहल्ले के बच्चों को इकट्ठा करके पढ़ाना शुरू किया. हाल ये हुआ कि देखते-देखते बच्चों की संख्या बढ़ने लगी, लेकिन सिर्फ लड़कों की. लड़कियां अब भी उसके इस स्कूल से दूर थी, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी. शबीना ने घर-घर जाकर लड़कियों के मां-बाप को यह समझाने की कोशिश की कि अगर लड़कियां पढ़ेंगी नहीं तो कल जब उनकी शादी होगी तो वह अपने पति के ऊपर निर्भर होंगी. और अगर पति ने उन्हें छोड़ दिया तो शायद उनके आगे खाने के भी लाले होंगे.

कई दिनों की मेहनत के बाद सबीना के पास पढ़ने के लिए कुछ लड़कियां पहुंची तो मैसेज आस-पास के इलाकों में पहुंचा और गरीब परिवार के लोगों ने अपनी बेटियों को शबीना के पास भेजना शुरू कर दिया. आज हालात यह है कि 200 से ज्यादा लड़कियां शबीना के मदरसे में पढ़ रही हैं. शबीना बताती हैं कि उनके इस प्रयास में उनकी मां शहजादी बेगम और उनकी सहेलियों ने उनका बड़ा साथ दिया. शबीना का कहना है कि मेरा मानना है कि अगर देश को आगे बढ़ाना है तो इसकी शुरुआत मोहल्ले से करनी होगी, क्योंकि मोहल्ला सुधरेगा तो जिला सुधरेगा. जिला सुधरेगा तो प्रदेश सुधरेगा और अगर प्रदेश सुधरेगा तो देश सुधरेगा.

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शबीना की मां शहजादी बेगम का कहना है कि मेहनत मजदूरी करके मैंने अपनी बेटियों को पाला है. जब शबीना छोटी थी तो जाहिल शब्द सुनकर उसने कुछ अलग करने की ठानी. उसने मुझको बताया कि लोग हमारे मोहल्ले को जाहिल कहते हैं. इस बात को सुनकर मुझे भी खराब लगा, क्योंकि मेरे मां-बाप ने मुझे कक्षा 5 तक पढ़ाकर छोड़ दिया था. इसलिए मैंने यह सोचा कि मैं तो नहीं पढ़ी, लेकिन मेरी बेटी जरूर पढ़ेगी. एमए की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह आगे की पढ़ाई जारी रखे हुए है. वह बहुत से बच्चों को अकेले दम पर पढ़ा रही है.


शबीना से पढ़ने वाली बहुत सी बेटियां ऐसी हैं जिनकी मां भी शबीना से पढ़ी हैं और आज उनकी बेटियां भी यहां पर शिक्षा ग्रहण कर रही हैं. शायद यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव समेत कई लोगों शबीना को सम्मानित कर चुके हैं. शबीना का यह प्रयास एक सीख है उन लोगों के लिए जो बेटियों को सिर्फ और सिर्फ आज भी घरों में कैद रखकर चूल्हे चौके तक सीमित रखना चाहते हैं.

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वाराणसी: शिक्षा के साथ देश के भविष्य कहे जाने वाले बच्चों खासतौर पर लड़कियों को उनके पैरों पर खड़ा करने के लिए शबीना कई रोजगार परक ट्रेनिंग भी देने का काम कर रही हैं. वह भी उस मुस्लिम कम्युनिटी में जहां लड़कियों और महिलाओं को परदे में रखा जाता है. इन सामाजिक प्रभाव को तोड़ते हुए सबीना ने न सिर्फ खुद को शिक्षित किया, बल्कि बहुत सी लड़कियों और लड़कों को भी शिक्षित करने में जुटी हुई हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' के सपने को भी पूरा कर रही हैं.

नक्खीघाट के एक बेहद गरीब परिवार की रहने वाली शबीना एक छोटे से मकान में 2007 से एक मदरसे का संचालन करती आ रही हैं. शबीना बताती हैं कि जब वह कक्षा सात में पढ़ती थी और एक कंपटीशन में हिस्सा लेने के लिए गई थी तो वहां पर सबका परिचय लेने के दौरान जब उनसे पूछा गया कि तुम कहां से आई हो तो उन्होंने बताया नक्खीघाट. इस पर एक व्यक्ति ने कमेंट किया कि अच्छा वही जाहिलों का मोहल्ला. बस यही बात शबीना के दिल में चोट कर गई. वह हर वक्त यह सोचने लगी कि आखिर उसके मोहल्ले को जाहिलों का मोहल्ला क्यों कहते हैं?

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देखें विशेष रिपोर्ट.
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इसी बात को दिल और दिमाग में रखकर शबीना ने अपने घर से कुछ दूर एक छोटे से कमरे में मोहल्ले के बच्चों को इकट्ठा करके पढ़ाना शुरू किया. हाल ये हुआ कि देखते-देखते बच्चों की संख्या बढ़ने लगी, लेकिन सिर्फ लड़कों की. लड़कियां अब भी उसके इस स्कूल से दूर थी, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी. शबीना ने घर-घर जाकर लड़कियों के मां-बाप को यह समझाने की कोशिश की कि अगर लड़कियां पढ़ेंगी नहीं तो कल जब उनकी शादी होगी तो वह अपने पति के ऊपर निर्भर होंगी. और अगर पति ने उन्हें छोड़ दिया तो शायद उनके आगे खाने के भी लाले होंगे.

कई दिनों की मेहनत के बाद सबीना के पास पढ़ने के लिए कुछ लड़कियां पहुंची तो मैसेज आस-पास के इलाकों में पहुंचा और गरीब परिवार के लोगों ने अपनी बेटियों को शबीना के पास भेजना शुरू कर दिया. आज हालात यह है कि 200 से ज्यादा लड़कियां शबीना के मदरसे में पढ़ रही हैं. शबीना बताती हैं कि उनके इस प्रयास में उनकी मां शहजादी बेगम और उनकी सहेलियों ने उनका बड़ा साथ दिया. शबीना का कहना है कि मेरा मानना है कि अगर देश को आगे बढ़ाना है तो इसकी शुरुआत मोहल्ले से करनी होगी, क्योंकि मोहल्ला सुधरेगा तो जिला सुधरेगा. जिला सुधरेगा तो प्रदेश सुधरेगा और अगर प्रदेश सुधरेगा तो देश सुधरेगा.

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शबीना की मां शहजादी बेगम का कहना है कि मेहनत मजदूरी करके मैंने अपनी बेटियों को पाला है. जब शबीना छोटी थी तो जाहिल शब्द सुनकर उसने कुछ अलग करने की ठानी. उसने मुझको बताया कि लोग हमारे मोहल्ले को जाहिल कहते हैं. इस बात को सुनकर मुझे भी खराब लगा, क्योंकि मेरे मां-बाप ने मुझे कक्षा 5 तक पढ़ाकर छोड़ दिया था. इसलिए मैंने यह सोचा कि मैं तो नहीं पढ़ी, लेकिन मेरी बेटी जरूर पढ़ेगी. एमए की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह आगे की पढ़ाई जारी रखे हुए है. वह बहुत से बच्चों को अकेले दम पर पढ़ा रही है.


शबीना से पढ़ने वाली बहुत सी बेटियां ऐसी हैं जिनकी मां भी शबीना से पढ़ी हैं और आज उनकी बेटियां भी यहां पर शिक्षा ग्रहण कर रही हैं. शायद यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव समेत कई लोगों शबीना को सम्मानित कर चुके हैं. शबीना का यह प्रयास एक सीख है उन लोगों के लिए जो बेटियों को सिर्फ और सिर्फ आज भी घरों में कैद रखकर चूल्हे चौके तक सीमित रखना चाहते हैं.

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Intro:वाराणसी: कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता जरा एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों, दुष्यंत कुमार की लिखी यह चंद लाइने बिल्कुल सटीक बैठती हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की मलिन बस्ती नक्खीघाट की रहने वाली शबीना खान ने समाज के तानो को बर्दाश्त न करने की ठान कर कुछ अलग कर गुजरने की चाह में अपनी जिंदगी में एक ऐसा मकसद पूरा करने की ठानी जिसने आज हजारों लोगों को शिक्षित करने का काम किया है. इतना ही नहीं शिक्षा के साथ देश के भविष्य कहे जाने वाले बच्चों खासतौर पर लड़कियों को उनके पैरों पर खड़ा करने के लिए कई रोजगार परक ट्रेनिंग भी शबीना देने का काम कर रही हैं. वह भी उस मुस्लिम कम्युनिटी में जहां लड़कियों और महिलाओं को परदे में रखा जाता है. इन सामाजिक प्रभाव को तोड़ते हुए सबीना ने ना सिर्फ खुद को शिक्षित किया, बल्कि बहुत सी लड़कियों और लड़कों को भी शिक्षित करने में जुटी हुई हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के सपने को भी पूरा कर रही हैं.

ओपनिंग पीटीसी- गोपाल मिश्र


Body:वीओ-01 दरसअल नक्खीघाट के एक बेहद गरीब परिवार की रहने वाली शबीना एक पतली सी गली में छोटे से मकान में 2007 से एक मदरसे का संचालन करती आ रही है. शबीना बताती हैं कि जब वह कक्षा सात में पढ़ती थी और एक कंपटीशन में हिस्सा लेने के लिए गई थी तो वहां पर सब का परिचय लेने के दौरान जब उनसे पूछा गया कि तुम कहां से आई हो तो उन्होंने बताया नक्खीघाट इस पर एक व्यक्ति ने उनको कमेंट किया कि अच्छा वही जाहिलो का मोहल्ला, बस यही बात शबीना के दिल में घर कर गई और वह हर वक्त यह सोचने लगी कि आखिर उसके मोहल्ले को जाहिलो का मोहल्ला क्यों कहते हैं? इसी बात को दिल और दिमाग में रखकर शबीना ने अपने घर से कुछ दूर पर एक छोटे से कमरे में मोहल्ले के बच्चों को इकट्ठा करके पढ़ाना शुरू किया. हाल ये हुआ कि देखते देखते बच्चों की संख्या बढ़ने लगी लेकिन सिर्फ लड़कों की, लड़कियां अब भी उसके इस स्कूल से दूर थी लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी शबीना ने घर-घर जाकर लड़कियों के मां-बाप को यह समझाने की कोशिश की कि अगर लड़कियां पड़ेगी नहीं तो कल जब उनकी शादी होगी तो वह अपने पति के ऊपर निर्भर होंगी और अगर पति ने उन्हें छोड़ दिया तो शायद उनके आगे खाने के भी लाले होंगे, कई दिनों की मेहनत के बाद सबीना के पास कुछ लड़कियों को भेजा गया लड़कियां पढ़ना शुरू की तो मैसेज आसपास के इलाकों में पहुंचा और गरीब परिवार के लोगों ने अपनी बेटियों को शबीना के पास भेजना शुरू कर दिया. आज हालात यह है कि 200 से ज्यादा लड़कियां वर्तमान समय में शबीना के मदरसे में पढ़ रही हैं शबीना बताती हैं कि उनके इस प्रयास में उनकी मां शहजादी बेगम और उनकी सहेलियों ने उनका बड़ा साथ दिया. शबीना का कहना है कि मेरा मानना है कि अगर देश को आगे बढ़ाना है तो इसकी शुरुआत मोहल्ले से करनी होगी क्योंकि मोहल्ला सुधरेगा तो, जिला सुधरेगा, जिला सुधरेगा तो प्रदेश सुधरेगा और अगर प्रदेश सुधरेगा तो देश सुधरेगा.

बाईट- शबीना खान, टीचर और मदरसा संचालक


Conclusion:वीओ-02 शबीना की मां शहजादी बेगम का कहना है कि मेहनत मजदूरी करके मैंने अपनी बेटियों को पाला है. जब शबीना छोटी थी तो जाहिल शब्द सुनकर उसने कुछ अलग करने की ठानी उसने मुझको बताया लोग हमारे मोहल्ले को जाहिल कहते हैं. इस बात को सुनकर मुझे भी खराब लगा, क्योंकि मेरे मां बाप ने मुझे कक्षा 5 तक पढ़ा कर छोड़ दिया था. इसलिए मैंने यह सोचा कि कम से कम मैं तो नहीं पड़ी लेकिन मेरी बेटी पड़ गया है अब मैंने उसे पढ़ाया एम ए के बाद उसको आगे की पढ़ाई जारी रखते हुए इस काबिल बनाया कि आज वह अपने पढ़ने के बाद बहुत से बच्चों को अकेले दम पर पढ़ा रही है. इतना ही नहीं शबीना से पढ़ने वाली बहुत सी बेटियां ऐसी हैं जिनकी मां भी शबीना से पड़ी है और आज उनकी बेटियां भी यहां पर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. शायद यही वजह है कि सभी ना के इस प्रयास को सराहते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव समेत कई अन्य लोगों द्वारा शबीना को मंच पर सम्मानित किया जा चुका है. शबीमा का यह प्रयास एक सीख है उन लोगों के लिए जो बेटियों को सिर्फ और सिर्फ आज भी घरों में कैद रखकर चूल्हे चौके तक सीमित रखना चाहते हैं.

बाईट- शहजादी बेगम, शबीना की मां
बाईट- शबीना से पढ़ने वाली छात्रा

क्लोजिंग पीटीसी- गोपाल मिश्र
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