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मई में कम तापमान होने पर भटक सकते हैं मानसूनी बादल

भीषण गर्मी से तप रहे पूरे देश को झेलना पड़ रहा है. मार्च के महीने में हल्की बारिश और अप्रैल में पश्चिमी विक्षोभ के एक्टिव होने की वजह से मई जून-जुलाई गर्मी के लिए जाने जाते थे.

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Published : Apr 27, 2022, 8:51 PM IST

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भटक सकते हैं मानसूनी बादल

वाराणसी : हर मौसम का अपना महत्व होता है. मौसम का मिजाज अगले मौसम का अनुमान लगाने के लिए भी काम आता है. हालांकि जब मौसम महीने के अनुसार काम नहीं करता तो निश्चित तौर पर परेशानी हर किसी को उठानी पड़ती है. ऐसा ही स्थिति इन दिनों भीषण गर्मी से तप रहे पूरे देश को झेलनी पड़ रही है. मार्च में हल्की बारिश और अप्रैल में पश्चिमी विक्षोभ के एक्टिव होने की वजह से मई जून-जुलाई गर्मी के लिए जाने जाते थे.

इस बार तो गर्मी ने ऐसा कहर ढाया कि मार्च से शुरू हुआ तपिश का प्रकोप अप्रैल आते-आते मई और जून का एहसास करा गया है. शायद पहला मौका होगा जब अप्रैल में पारा लगातार 40 के पार देखने को मिल रहा है. पश्चिमी विक्षोभ के गुम होने से आने वाले समय में मानसून का मिजाज भी बिगड़ सकता है. यूं कहिए की तपिश ज्यादा होना मई में गर्मी के असर को कम करने के बाद जुलाई में आने वाले मानसूनी बादलों को भटकाने का काम कर सकता है.

मई में अगर कम तापमान होने पर भटक सकते हैं मानसूनी बादल

मौसम के इस मिजाज को लेकर ईटीवी भारत ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय जियोफिजिक्स डिपार्टमेंट के प्रोफेसर ज्ञान प्रकाश सिंह से बातचीत की. उन्होंने मौसम को लेकर बहुत सी ऐसी टेक्निकल बातें बताई जो आम भाषा में हम आप तक पहुंचा रहे हैं. प्रोफेसर ज्ञान प्रकाश सिंह का कहना था कि गर्मी की तपिश को कम करने के लिए पश्चिमी विक्षोभ का एक्टिव होना बहुत जरूरी माना जाता है. मार्च में होली के पहले से पश्चिमी विक्षोभ जब सागर तट से एक्टिव होकर उत्तर भारत को छूता हुआ आगे बढ़ता है. पूर्वी उत्तर प्रदेश समेत पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बारिश होने की वजह से तपिश कम होने लगती है.

मार्च के महीने में कम से कम 4 और अप्रैल में तीन और मई में भी दो पश्चिमी विक्षोभ आने जरूरी माने जाते हैं लेकिन इस बार मार्च के महीने में पश्चिमी उत्तर भारत से होते हुए आगे बढ़ गया. यानी राजस्थान और चंडीगढ़ को छूता हुआ पश्चिमी विक्षोभ उधर से ही आगे चला गया और अप्रैल के महीने में तो एक बार भी एक्टिव होकर इधर आया ही नहीं. मई में एक भी पश्चिमी विक्षोभ के आने की कोई संभावना नहीं जताई जा रही है. इसका सीधा असर मौसम की तल्खी के रूप में देखने को मिल रहा है. गर्मी बढ़ती जा रही और तापमान 45 डिग्री तक पहुंच चुका है. यह कम होने के आसार फिलहाल लगभग एक से डेढ़ महीने के अंदर तो दिखाई नहीं दे रहे हैं.

प्रोफेसर ज्ञान प्रकाश सिंह का कहना था कि पश्चिमी विक्षोभ मौसम की भाषा में वह शब्द होता है जो पश्चिम से एक्टिव होता है. यानी पश्चिमी सागर तट से मोस्चर्ज लेकर जब बादल आगे बढ़ते हैं तो अफगानिस्तान, पाकिस्तान, ईरान होते हुए यह बादल भारत में प्रवेश करते हैं. यहां आने के बाद मोस्चरज और गर्मी की वजह से यह बादल जगह जगह बारिश करते हुए निकल जाते हैं लेकिन इस बार ऐसी स्थिति बनी ही नहीं मार्च के महीने में उत्तर की तरफ बादल आए. वह इधर आने की जगह उधर से ही आगे बढ़ गए. इसकी वजह से बारिश मार्च और अप्रैल में हो ही नहीं सकी. बारिश होने की वजह से तपिश कम होती है और जो हालात अभी हैं वह देखने को नहीं मिलते. मार्च में पश्चिमी विक्षोभ के एक्टिव ना होने का असर अप्रैल कर अब मई-जून में देखने को मिलेगा.

प्रोफेसर ज्ञान प्रकाश का कहना है कि इस भीषण गर्मी और तपिश का सीधा असर आने वाले महीनों में पड़ने की पूरी उम्मीद है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जब 15 जुलाई तक मानसून उत्तर भारत में एंट्री लेता है. तब मई की गर्मी को देखकर मानसून के बेहतर होने का अंदाजा लगाया जाता है. यदि मई के 15 दिनों में भीषण गर्मी और तपिश बनी रहती है तो निश्चित तौर पर मानसून सक्रिय होकर पूरे क्षमता के साथ एक्टिव रहता है लेकिन गर्मी के कम होने का असर मानसून पर पड़ता है. इस तरह से मार्च और अप्रैल में गर्मी पड़ी है. उससे यह आसार है कि मई के महीने में तपिश कम हो सकती है. यदि तपिश कम होती है तो मानसून इस बार उस रूप में नजर नहीं आएगा जिस रूप में पिछले दो बार से नजर आ रहा था.

प्रोफेसर ज्ञान प्रकाश का कहना है कि इसके लिए कुछ टेक्निकल चीजें होती हैं जो मानसून के बेहतरी को निर्धारित करती हैं. इसमें सबसे बड़ा रोल होता है एलिनो का. यह वह शब्द होता है जो मौसम के जानकार मानसून के अनुमान के लिए इस्तेमाल करते हैं. इसके पैसेफिक सी से पैदा होने की कंडीशन है. इसके लिए ईस्ट और वेस्ट पेसिफिक के हालात तो देखना पड़ता है क्योंकि वेस्ट पेसिफिक का तापमान हमेशा ज्यादा होता है और ईस्ट पेसिफिक का तापमान नॉर्मल कम होता है. यदि ईस्ट पेसिफिक का तापमान बढ़ता है तो इस बार मानसून पहले के मुकाबले कम रहेगा और यदि इसका तापमान कम रहता है तो सामान्य तौर पर मानसून जैसा रहता है वैसा ही देखने में मिलेगा.

यह भी पढ़ें-काशी में पहली बार कैनवास पर जीवंत हो रहे हनुमंत लला, चालीसा चौपाई पर बनाई जा रही पेंटिंग

प्रोफेसर ज्ञान प्रकाश का कहना है कि फिलहाल एलिनो की संभावनाएं इस बार देखने को मिल रही है. ऐसा माना जा रहा है कि ओवरहीटिंग की वजह से इस स्पेसिफिक सी के टेंपरेचर में भी बढ़ाव संभव है. अगर ऐसा होता है तो मानसून में देरी भी होगी और गर्मी और उमस का प्रकोप बढ़ता ही जाएगा. यानी कुल मिलाकर गर्मी और तपिश से तप रही इस धरती को अभी किसी तरह की राहत की कोई उम्मीद नहीं है. गर्मी का पारा भी और चढ़ेगा और मई आते-आते हालात बिगड़ने की पूरी संभावना मौसम के जानकार बता रहे हैं और हर बार जून के आखिरी तक एक्टिव होने वाला मानसून में इस गर्मी के प्रकोप की वजह से इस बार भटकने की उम्मीद भी जताई जा रही है.

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वाराणसी : हर मौसम का अपना महत्व होता है. मौसम का मिजाज अगले मौसम का अनुमान लगाने के लिए भी काम आता है. हालांकि जब मौसम महीने के अनुसार काम नहीं करता तो निश्चित तौर पर परेशानी हर किसी को उठानी पड़ती है. ऐसा ही स्थिति इन दिनों भीषण गर्मी से तप रहे पूरे देश को झेलनी पड़ रही है. मार्च में हल्की बारिश और अप्रैल में पश्चिमी विक्षोभ के एक्टिव होने की वजह से मई जून-जुलाई गर्मी के लिए जाने जाते थे.

इस बार तो गर्मी ने ऐसा कहर ढाया कि मार्च से शुरू हुआ तपिश का प्रकोप अप्रैल आते-आते मई और जून का एहसास करा गया है. शायद पहला मौका होगा जब अप्रैल में पारा लगातार 40 के पार देखने को मिल रहा है. पश्चिमी विक्षोभ के गुम होने से आने वाले समय में मानसून का मिजाज भी बिगड़ सकता है. यूं कहिए की तपिश ज्यादा होना मई में गर्मी के असर को कम करने के बाद जुलाई में आने वाले मानसूनी बादलों को भटकाने का काम कर सकता है.

मई में अगर कम तापमान होने पर भटक सकते हैं मानसूनी बादल

मौसम के इस मिजाज को लेकर ईटीवी भारत ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय जियोफिजिक्स डिपार्टमेंट के प्रोफेसर ज्ञान प्रकाश सिंह से बातचीत की. उन्होंने मौसम को लेकर बहुत सी ऐसी टेक्निकल बातें बताई जो आम भाषा में हम आप तक पहुंचा रहे हैं. प्रोफेसर ज्ञान प्रकाश सिंह का कहना था कि गर्मी की तपिश को कम करने के लिए पश्चिमी विक्षोभ का एक्टिव होना बहुत जरूरी माना जाता है. मार्च में होली के पहले से पश्चिमी विक्षोभ जब सागर तट से एक्टिव होकर उत्तर भारत को छूता हुआ आगे बढ़ता है. पूर्वी उत्तर प्रदेश समेत पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बारिश होने की वजह से तपिश कम होने लगती है.

मार्च के महीने में कम से कम 4 और अप्रैल में तीन और मई में भी दो पश्चिमी विक्षोभ आने जरूरी माने जाते हैं लेकिन इस बार मार्च के महीने में पश्चिमी उत्तर भारत से होते हुए आगे बढ़ गया. यानी राजस्थान और चंडीगढ़ को छूता हुआ पश्चिमी विक्षोभ उधर से ही आगे चला गया और अप्रैल के महीने में तो एक बार भी एक्टिव होकर इधर आया ही नहीं. मई में एक भी पश्चिमी विक्षोभ के आने की कोई संभावना नहीं जताई जा रही है. इसका सीधा असर मौसम की तल्खी के रूप में देखने को मिल रहा है. गर्मी बढ़ती जा रही और तापमान 45 डिग्री तक पहुंच चुका है. यह कम होने के आसार फिलहाल लगभग एक से डेढ़ महीने के अंदर तो दिखाई नहीं दे रहे हैं.

प्रोफेसर ज्ञान प्रकाश सिंह का कहना था कि पश्चिमी विक्षोभ मौसम की भाषा में वह शब्द होता है जो पश्चिम से एक्टिव होता है. यानी पश्चिमी सागर तट से मोस्चर्ज लेकर जब बादल आगे बढ़ते हैं तो अफगानिस्तान, पाकिस्तान, ईरान होते हुए यह बादल भारत में प्रवेश करते हैं. यहां आने के बाद मोस्चरज और गर्मी की वजह से यह बादल जगह जगह बारिश करते हुए निकल जाते हैं लेकिन इस बार ऐसी स्थिति बनी ही नहीं मार्च के महीने में उत्तर की तरफ बादल आए. वह इधर आने की जगह उधर से ही आगे बढ़ गए. इसकी वजह से बारिश मार्च और अप्रैल में हो ही नहीं सकी. बारिश होने की वजह से तपिश कम होती है और जो हालात अभी हैं वह देखने को नहीं मिलते. मार्च में पश्चिमी विक्षोभ के एक्टिव ना होने का असर अप्रैल कर अब मई-जून में देखने को मिलेगा.

प्रोफेसर ज्ञान प्रकाश का कहना है कि इस भीषण गर्मी और तपिश का सीधा असर आने वाले महीनों में पड़ने की पूरी उम्मीद है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जब 15 जुलाई तक मानसून उत्तर भारत में एंट्री लेता है. तब मई की गर्मी को देखकर मानसून के बेहतर होने का अंदाजा लगाया जाता है. यदि मई के 15 दिनों में भीषण गर्मी और तपिश बनी रहती है तो निश्चित तौर पर मानसून सक्रिय होकर पूरे क्षमता के साथ एक्टिव रहता है लेकिन गर्मी के कम होने का असर मानसून पर पड़ता है. इस तरह से मार्च और अप्रैल में गर्मी पड़ी है. उससे यह आसार है कि मई के महीने में तपिश कम हो सकती है. यदि तपिश कम होती है तो मानसून इस बार उस रूप में नजर नहीं आएगा जिस रूप में पिछले दो बार से नजर आ रहा था.

प्रोफेसर ज्ञान प्रकाश का कहना है कि इसके लिए कुछ टेक्निकल चीजें होती हैं जो मानसून के बेहतरी को निर्धारित करती हैं. इसमें सबसे बड़ा रोल होता है एलिनो का. यह वह शब्द होता है जो मौसम के जानकार मानसून के अनुमान के लिए इस्तेमाल करते हैं. इसके पैसेफिक सी से पैदा होने की कंडीशन है. इसके लिए ईस्ट और वेस्ट पेसिफिक के हालात तो देखना पड़ता है क्योंकि वेस्ट पेसिफिक का तापमान हमेशा ज्यादा होता है और ईस्ट पेसिफिक का तापमान नॉर्मल कम होता है. यदि ईस्ट पेसिफिक का तापमान बढ़ता है तो इस बार मानसून पहले के मुकाबले कम रहेगा और यदि इसका तापमान कम रहता है तो सामान्य तौर पर मानसून जैसा रहता है वैसा ही देखने में मिलेगा.

यह भी पढ़ें-काशी में पहली बार कैनवास पर जीवंत हो रहे हनुमंत लला, चालीसा चौपाई पर बनाई जा रही पेंटिंग

प्रोफेसर ज्ञान प्रकाश का कहना है कि फिलहाल एलिनो की संभावनाएं इस बार देखने को मिल रही है. ऐसा माना जा रहा है कि ओवरहीटिंग की वजह से इस स्पेसिफिक सी के टेंपरेचर में भी बढ़ाव संभव है. अगर ऐसा होता है तो मानसून में देरी भी होगी और गर्मी और उमस का प्रकोप बढ़ता ही जाएगा. यानी कुल मिलाकर गर्मी और तपिश से तप रही इस धरती को अभी किसी तरह की राहत की कोई उम्मीद नहीं है. गर्मी का पारा भी और चढ़ेगा और मई आते-आते हालात बिगड़ने की पूरी संभावना मौसम के जानकार बता रहे हैं और हर बार जून के आखिरी तक एक्टिव होने वाला मानसून में इस गर्मी के प्रकोप की वजह से इस बार भटकने की उम्मीद भी जताई जा रही है.

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