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प्रदोष व्रत आज, भोलेनाथ की कृपा पाने के लिए इस समय करें पूजन

कलयुग में भगवान शिवजी को प्रसन्न करने के लिए शिवपुराण में विविध व्रतों का उल्लेख है, जिसमें प्रदोष व्रत (guru pradosh vrat 2022) अत्यन्त चमत्कारी माना गया है. प्रदोष व्रत का महत्व जानने के लिए ईटीवी भारत ने ज्योतिषविद विमल जैन से खास बातचीत की.

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guru pradosh vrat shubh muhurat
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Published : Sep 8, 2022, 6:38 AM IST

वाराणसी: प्रदोष व्रत से दुःख-दारिद्र्य का नाश होता है. जीवन में सुख-समृद्धि खुशहाली आती है, जीवन के समस्त दोषों के शमन के साथ ही सुख-समृद्धि का सुयोग बनता है. सूर्यास्त और रात्रि के सन्धिकाल को प्रदोषकाल माना जाता है.

ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि प्रत्येक मास के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि प्रदोष बेला होने पर प्रदोष व्रत रखा जाता है. प्रदोषकाल का समय सूर्यास्त से 48 मिनट या 72 मिनट तक माना गया है, इसी अवधि में भगवान शिवजी की पूजा प्रारम्भ हो जानी चाहिए. इस बार यह व्रत 8 सितम्बर, गुरुवार को रखा जाएगा.

भाद्रपद शुक्लपक्ष की त्रयोदशी तिथि 7 सितम्बर, बुधवार को रात्रि 12 बजकर 06 मिनट पर लगेगी जो कि 8 सितम्बर, गुरुवार को रात्रि 9 बजकर 04 मिनट तक रहेगी. प्रदोष बेला में त्रयोदशी तिथि का मान 8 सितम्बर, गुरुवार को होने के फलस्वरूप प्रदोष व्रत इसी दिन रखा जाएगा.

अलग-अलग दिन के प्रदोष व्रत का फल: प्रदोष व्रत के लाभ के बारे में ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि प्रत्येक दिन के प्रदोष व्रत (guru pradosh vrat puja vidhi) का अलग-अलग प्रभाव है. वारों (दिनों) के अनुसार सात प्रदोष व्रत माने गए हैं, जैसे- रवि प्रदोष आयु, आरोग्य, सुख-समृद्धि, सोम प्रदोष शान्ति एवं रक्षा तथा आरोग्य व सौभाग्य में वृद्धि, भौम प्रदोष कर्ज से मुक्ति, बुध प्रदोष मनोकामना की पूर्ति, गुरु प्रदोष विजय व लक्ष्य की प्राप्ति, शुक्र प्रदोष आरोग्य, सौभाग्य एवं मनोकामना की पूर्ति, शनि प्रदोष पुत्र सुख की प्राप्ति. अभीष्ट - मनोकामना की पूर्ति के लिए 11 प्रदोष व्रत या वर्ष के समस्त त्रयोदशी तिथियों का व्रत अथवा मनोकामना पूर्ति होने तक प्रदोष व्रत रखने का विधान है.

प्रदोष व्रत का विधान: प्रदोष व्रत का महत्व बताते हुए ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि व्रतकर्ता को प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर स्नान-ध्यान व पूजा अर्चना के पश्चात् अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर प्रदोष व्रत का संकल्प लेना चाहिए. सम्पूर्ण दिन निराहार रहते हुए सायंकाल पुनः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करके प्रदोषकाल में भगवान शिवजी की विधि-विधान पूर्वक पंचोपचार, दशोपचार अथवा षोडशोपचार पूजा-अर्चना करनी चाहिए. भगवान शिवजी का अभिषेक कर श्रृंगार करने के पश्चात् उन्हें वस्त्र, यज्ञोपवीत, आभूषण, सुगन्धित द्रव्य के साथ बेलपत्र, कनेर, धतूरा, मदार, ऋतुपुष्प, नैवेद्य आदि अर्पित करके धूप-दीप के साथ पूजा-अर्चना करनी चाहिए.

परम्परा के अनुसार कहीं-कहीं पर जगतजननी पार्वतीजी की भी पूजा-अर्चना की जाती है. यथासम्भव स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूर्व दिशा या उत्तर दिशा की ओर मुख करके ही पूजा करनी चाहिए. शिवभक्त अपने मस्तक पर भस्म व तिलक लगाकर शिवजी की पूजा करें तो पूजा शीघ्र फलदायी होती है. भगवान् शिवजी की महिमा में उनकी प्रसन्नता के लिए प्रदोष स्तोत्र का पाठ एवं स्कन्दपुराण में वर्णित प्रदोषव्रत कथा का पठन या श्रवण अवश्य करना चाहिए. व्रत से सम्बन्धित कथाएँ सुननी चाहिए जिससे मनोरथ की पूर्ति का सुयोग बनता है.

प्रदोष व्रत के नियम: व्रत के दिन नजदीक के शिव मन्दिर में दर्शन पूजन करके लाभ उठाना चाहिए. यह प्रदोष व्रत समस्त जनों के लिए मान्य है. व्रतकर्ता को दिन के समय शयन नहीं करना चाहिए. व्रत के दिन अपने परिवार के अतिरिक्त कहीं कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए. अपनी दिनचर्या को संयमित रखते हुए व्रत करके लाभान्वित होना चाहिए.

जिन्हें शनिग्रह अढैया या साढ़ेसाती का प्रभाव हो या जिनकी जन्मकुण्डली में शनिग्रह प्रतिकूल हों, उन्हें देवाधिदेव महादेव शिवजी की कृपा प्राप्ति के लिए शनि प्रदोष व्रत अवश्य करना चाहिए, जिससे शनिजनित दोषों का शमन हो सके. अपनी सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मण एवं असहायों की सेवा व सहायता करते रहना चाहिए. प्रदोष व्रत से जीवन के समस्त दोषों का शमन होता है, साथ ही सुख-समृद्धि मिलती है.

ये भी पढ़ें- बच्चा चुराकर भाग रहा था युवक, कुत्ते ने कर दी मुखबरी, फिर हुआ ऐसा कि हो गया बवाल

वाराणसी: प्रदोष व्रत से दुःख-दारिद्र्य का नाश होता है. जीवन में सुख-समृद्धि खुशहाली आती है, जीवन के समस्त दोषों के शमन के साथ ही सुख-समृद्धि का सुयोग बनता है. सूर्यास्त और रात्रि के सन्धिकाल को प्रदोषकाल माना जाता है.

ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि प्रत्येक मास के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि प्रदोष बेला होने पर प्रदोष व्रत रखा जाता है. प्रदोषकाल का समय सूर्यास्त से 48 मिनट या 72 मिनट तक माना गया है, इसी अवधि में भगवान शिवजी की पूजा प्रारम्भ हो जानी चाहिए. इस बार यह व्रत 8 सितम्बर, गुरुवार को रखा जाएगा.

भाद्रपद शुक्लपक्ष की त्रयोदशी तिथि 7 सितम्बर, बुधवार को रात्रि 12 बजकर 06 मिनट पर लगेगी जो कि 8 सितम्बर, गुरुवार को रात्रि 9 बजकर 04 मिनट तक रहेगी. प्रदोष बेला में त्रयोदशी तिथि का मान 8 सितम्बर, गुरुवार को होने के फलस्वरूप प्रदोष व्रत इसी दिन रखा जाएगा.

अलग-अलग दिन के प्रदोष व्रत का फल: प्रदोष व्रत के लाभ के बारे में ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि प्रत्येक दिन के प्रदोष व्रत (guru pradosh vrat puja vidhi) का अलग-अलग प्रभाव है. वारों (दिनों) के अनुसार सात प्रदोष व्रत माने गए हैं, जैसे- रवि प्रदोष आयु, आरोग्य, सुख-समृद्धि, सोम प्रदोष शान्ति एवं रक्षा तथा आरोग्य व सौभाग्य में वृद्धि, भौम प्रदोष कर्ज से मुक्ति, बुध प्रदोष मनोकामना की पूर्ति, गुरु प्रदोष विजय व लक्ष्य की प्राप्ति, शुक्र प्रदोष आरोग्य, सौभाग्य एवं मनोकामना की पूर्ति, शनि प्रदोष पुत्र सुख की प्राप्ति. अभीष्ट - मनोकामना की पूर्ति के लिए 11 प्रदोष व्रत या वर्ष के समस्त त्रयोदशी तिथियों का व्रत अथवा मनोकामना पूर्ति होने तक प्रदोष व्रत रखने का विधान है.

प्रदोष व्रत का विधान: प्रदोष व्रत का महत्व बताते हुए ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि व्रतकर्ता को प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर स्नान-ध्यान व पूजा अर्चना के पश्चात् अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर प्रदोष व्रत का संकल्प लेना चाहिए. सम्पूर्ण दिन निराहार रहते हुए सायंकाल पुनः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करके प्रदोषकाल में भगवान शिवजी की विधि-विधान पूर्वक पंचोपचार, दशोपचार अथवा षोडशोपचार पूजा-अर्चना करनी चाहिए. भगवान शिवजी का अभिषेक कर श्रृंगार करने के पश्चात् उन्हें वस्त्र, यज्ञोपवीत, आभूषण, सुगन्धित द्रव्य के साथ बेलपत्र, कनेर, धतूरा, मदार, ऋतुपुष्प, नैवेद्य आदि अर्पित करके धूप-दीप के साथ पूजा-अर्चना करनी चाहिए.

परम्परा के अनुसार कहीं-कहीं पर जगतजननी पार्वतीजी की भी पूजा-अर्चना की जाती है. यथासम्भव स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूर्व दिशा या उत्तर दिशा की ओर मुख करके ही पूजा करनी चाहिए. शिवभक्त अपने मस्तक पर भस्म व तिलक लगाकर शिवजी की पूजा करें तो पूजा शीघ्र फलदायी होती है. भगवान् शिवजी की महिमा में उनकी प्रसन्नता के लिए प्रदोष स्तोत्र का पाठ एवं स्कन्दपुराण में वर्णित प्रदोषव्रत कथा का पठन या श्रवण अवश्य करना चाहिए. व्रत से सम्बन्धित कथाएँ सुननी चाहिए जिससे मनोरथ की पूर्ति का सुयोग बनता है.

प्रदोष व्रत के नियम: व्रत के दिन नजदीक के शिव मन्दिर में दर्शन पूजन करके लाभ उठाना चाहिए. यह प्रदोष व्रत समस्त जनों के लिए मान्य है. व्रतकर्ता को दिन के समय शयन नहीं करना चाहिए. व्रत के दिन अपने परिवार के अतिरिक्त कहीं कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए. अपनी दिनचर्या को संयमित रखते हुए व्रत करके लाभान्वित होना चाहिए.

जिन्हें शनिग्रह अढैया या साढ़ेसाती का प्रभाव हो या जिनकी जन्मकुण्डली में शनिग्रह प्रतिकूल हों, उन्हें देवाधिदेव महादेव शिवजी की कृपा प्राप्ति के लिए शनि प्रदोष व्रत अवश्य करना चाहिए, जिससे शनिजनित दोषों का शमन हो सके. अपनी सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मण एवं असहायों की सेवा व सहायता करते रहना चाहिए. प्रदोष व्रत से जीवन के समस्त दोषों का शमन होता है, साथ ही सुख-समृद्धि मिलती है.

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