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काशी में दांव पर बीजेपी की साख, क्या फिर से कर पाएगी क्लीन स्वीप? - उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव

2017 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने पूर्ण बहुमत से अपनी सरकार बनाई और वाराणासी के 8 विधानसभा सीटों पर भगवा लहराया. इस बार अलग-अलग राजनीतिक दलों के दिग्गज वाराणासी के विधानसभा क्षेत्रों में उतरे हैं.

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काशी में दांव पर बीजेपी की साख, क्या फिर से बीजेपी कर पाएगी क्लीनस्विप
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Published : Feb 20, 2022, 7:52 PM IST

वाराणासी: 2014 के लोकसभा चुनाव जीतने के साथ 2017 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने पूर्ण बहुमत से अपनी सरकार बनाई और वाराणासी के 8 विधानसभा सीटों पर भगवा लहराया. इस बार नामांकन पूरा होने के बाद अलग-अलग राजनीतिक दलों के दिग्गज वाराणासी के विधानसभा क्षेत्रों में उतरे हैं और अपनी-अपनी जीत को लेकर के जोर आजमाइश कर रहे हैं. बीजेपी के लिए भी बड़ी चुनौती से कम नहीं है क्योंकि जहां काशी में गठबंधन से दो सीटें बीजेपी ने जीती थीं, आज वो गठबंधन सपा के साथ है. वहीं, कुछ सीटों पर समीकरण बदलने के साथ विपक्ष ने बड़े चेहरों पर दांव लगाया है. बात यदि इस बार प्रदेश की राजनीति कि करें तो इसमें में कई बड़े फेरबदल हुए हैं, जिसका निश्चित तौर पर चुनाव के परिणामों में भी असर दिखेगा. बनारस के आठों विधानसभा सीटों पर जहां कही परिवार की विरासत दांव पर लगी है तो कहीं बीजेपी के तीन मंत्रियों के मान प्रतिष्ठा का सवाल है. परिणाम क्या होंगे? ये 10 मार्च को पता चलेगा लेकिन कहीं ना कहीं, इस बार बीजेपी के सामने भी चुनौती बड़ी हैं. कैसे देखें इस रिपोर्ट में


दक्षिणी कैंट में इस बार चुनौती गढ़ बचाने की
बनारस की दक्षिणी और कैंट विधानसभा क्षेत्र को बीजेपी का गढ़ माना जाता है. क्योंकि शहर दक्षिणी की सीट जहां 33 साल से बीजेपी के पास है तो वहींं, कैंट सीट पर 1991 से वर्तमान विधायक सौरभ श्रीवास्तव के परिवार का कब्जा है. इस बार भी पार्टी ने दोनों सीटों पर अपने सीटिंग विधायकों पर भरोसा जताया है. दक्षिण विधानसभा में बीजेपी सरकार में मंत्री और वर्तमान विधायक नीलकंठ तिवारी को टिकट दिया है. नीलकंठ तिवारी ने 2017 के चुनाव में सपा-कांग्रेस गठबंधन के प्रत्याशी और पूर्व सांसद राजेश मिश्रा को महज 17226 वोटों से शिकस्त दिया था. जबकि इस बार समाजवादी पार्टी ने दक्षिणी सीट पर नई रणनीति के तहत महंत परिवार के कामेश्वर नाथ दीक्षित को मैदान में उतारा है.

सपा ने ब्राह्मण समीकरण के साथ-साथ वर्तमान विधायक को लेकर लोगों की नाराजगी को यहां अपना हथियार बनाया है. वहीं, कैंट विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी के सीटिंग विधायक सौरभ श्रीवास्तव के खिलाफ कांग्रेस ने अपने एक बड़े चेहरे राजेश मिश्रा पर दांव खेला है. 2017 के चुनाव में सौरभ ने सपा- कांग्रेस गठबंधन के प्रत्याशी अनिल श्रीवास्तव को 61326 मतों से शिकस्त दी थी, लेकिन इस बार समाजवादी पार्टी भी अपने समीकरण को साधते हुए महिला सभा के महानगर अध्यक्ष पूजा यादव को टिकट दिया है, जिसने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है.

उत्तरी और शिवपुर विधानसभा, जहां दांव पर हैं मंत्री जी की साख
उत्तरी और शिवपुर विधानसभा सीट पर बीजेपी के मंत्री की दांव साख पर लगी है. उत्तरी में बीजेपी ने विधायक रविंद्र जायसवाल और शिवपुर में वर्तमान विधायक अनिल राजभर को मैदान में उतारा है. ये दोनों ही बीजेपी सरकार में मंत्री हैं. उत्तरी सीट पर ढाई दशक बाद 2012 में भाजपा का परचम लहराया था. इस समय बसपा के सुजीत मौर्या को पार्टी ने पटखनी दी थी और 2017 में कांग्रेस- सपा के गठबंधन के प्रत्याशी अब्दुल समद अंसारी को 45000 वोटों से हार मिली थीं. तीसरी बार फिर इस सीट पर रविंद्र जायसवाल को खड़ा किया गया और उनके सामने सपा के नेता अशफाक अहमद डब्लू मैदान में हैं.

साथ ही कांग्रेस से राजनीतिक परिवार की बहू गुलराना तबस्सुम भी चुनौती दे रही है. भाजपा की प्रतिष्ठापरक शिवपुर विधानसभा में भी चुनौती कम नहीं है. यहां पर सुभसपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने अपने पुत्र अरविंद राजभर को बतौर प्रत्याशी खड़ा किया है. खास बात यह है कि पिछली बार यह सीट बीजेपी को सुभासपा के सहयोग से मिली थी जो कि इस बार सपा के साथ है. इस सीट पर अनिल राजभर ने समाजवादी पार्टी के आनंद मोहन को हराया था. इन दोनों विधानसभा सीटों पर टक्कर मजेदार इसलिए है क्योंकि यहां योगी सरकार के सीटिंग मंत्री हैं और विपक्ष ने उनके सामने एक मजबूत जाल बिछाया है.


अजगरा में बदले समीकरण के साथ, चुनौतियां भी जटिल
अजगरा विधानसभा क्षेत्र में सुभासपा व भाजपा गठबंधन के प्रत्याशी कैलाश सोनकर बतौर विधायक मौजूद है, जिन्होंने समाजवादी पार्टी के लालजी सोनकर को पटखनी दी थी और तीसरे स्थान पर बसपा के टी राम थे. लेकिन इस बार यहां चुनावी समीकरण बिल्कुल बदल गया है क्योंकि जहां सुभासपा ने बीजेपी का साथ छोड़ दिया है तो वहीं, बसपा नेता टी राम बीजेपी में शामिल हो गए हैं. बीजेपी ने इस बार बतौर प्रत्याशी चुनावी मैदान में खड़ा किया है. वहीं, सपा-सुभासपा गठबंधन से एक नए चेहरे सुनील राजभर पर दांव लगाया गया है. इस सीट पर जहां एक ओर सुभासपा और समाजवादी पार्टी कब्जा करने की कवायद में जुटी हुई है, तो वहीं, बीजेपी के सामने भी एक बड़ी चुनौती है.

क्या सेवापुरी में काम करेगा नया प्रयोग?
भारतीय जनता पार्टी ने इस बार सेवापुरी सीट पर एक नया प्रयोग किया है. उन्होंने अपने सीटिंग विधायक नील रतन पटेल पर भरोसा जताया है. लेकिन इस बार पार्टी सिंबल बदल दिया गया है. पिछली बार नीलरतन ने गठबंधन सहयोगी अपना दल एस के सिंबल पर चुनाव लड़ा था और विधायक बने. उन्होंने 2017 के चुनाव में चार बार से विधायक व समाजवादी पार्टी में मंत्री रहे सुरेंद्र सिंह पटेल को पटखनी दी थी लेकिन इस बार सुरेंद्र सिंह पटेल ने फिर से चुनावी मैदान में ताल ठोक दिया है. अपने पुराने तेवर के साथ सियासी रणनीति को अपनी ओर मोड़ रहे हैं.

इसे भी पढ़ेंः सीएम योगी के बयान पर जयंत चौधरी का पलटवार, बोले- 'बाबा जी' को हींग की ज्यादा जरूरत

रोहनिया बन गई है हॉट सीट
सभी विधानसभा क्षेत्रों के साथ-साथ सबसे ज्यादा मजेदार वाराणसी की रोहनिया सीट होने वाली हैं. क्योंकि यहां मां - बेटी आमने-सामने होंगी. रोहनिया सीट पर इस बार बीजेपी के गठबंधन के सहयोगी अपना दल एस ने अपने सिंबल प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ. सुनील पटेल को मैदान में उतारा है. 2017 के चुनाव में इस सीट पर बीजेपी सिंबल से सुरेंद्र नारायण सिंह ने चुनाव लड़ा था. खास बात यह है कि बीजेपी के विरोध में इस बार सपा और अपना दल क गठबंधन ने अभय पटेल पर भरोसा जताया है, जबकि कांग्रेस ने अपने जिला अध्यक्ष राजेश्वर पटेल पर दांव लगाया है. यह पटेल बाहुल्य इलाका है इसलिए एक ओर जहां यह लड़ाई जाति समीकरण को लेकर के दिलचस्प है तो वहीं, दूसरी ओर अनुप्रिया पटेल और कृष्णा पटेल भी बैक स्टेज से आमने-सामने हैं.


15 सीट पर है बहू को रियल लड़ाई
बता दें कि, पिंडरा सीट पर कई सालों तक कांग्रेस के अजय राय का कब्जा रहा, लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के अवधेश सिंह ने उनके किले में सेंधमारी की और अजय को तीसरे स्थान पर पहुंचा दिया. वहीं, दूसरे स्थान पर बसपा के बाबूलाल पटेल रह, .जहां इस बार फिर से पार्टी ने अवधेश सिंह पर दांव लगाया है तो वहीं, सपा और अपना दल क के प्रत्याशी राजेश पटेल मैदान में है. इसके साथ ही बसपा से बाबूलाल पटेल ने फिर से अपनी दावेदारी ठोक दी हैं. इस सीट पर जहां बीजेपी को अपनी सीट बचानी है, तो वहीं, आजय राय के लिए भी मान प्रतिष्ठा की बात बनी हुई है. इसके साथ ही सपा ने पटेल समीकरण को भी साधा है. यह सभी बिंदु इस बार सीट पर बहुकोणीय लड़ाई की ओर परिलक्षित करते हैं, जिसका परिणाम कुछ भी हो सकता है. बहरहाल इन चुनौतियों के साथ-साथ सभी सियासी दल के नेता जोड़-तोड़ के समीकरण को साधने की कोशिश करेंगे और उसको लेकर के बनारस में प्रवास भी करेंगे. लेकिन यह देखना बेहद दिलचस्प होगा कि कौन लखनऊ की गद्दी पर बैठता है और बनारस की आठों विधानसभा सीटों पर अपना परचम लहराता है.

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वाराणासी: 2014 के लोकसभा चुनाव जीतने के साथ 2017 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने पूर्ण बहुमत से अपनी सरकार बनाई और वाराणासी के 8 विधानसभा सीटों पर भगवा लहराया. इस बार नामांकन पूरा होने के बाद अलग-अलग राजनीतिक दलों के दिग्गज वाराणासी के विधानसभा क्षेत्रों में उतरे हैं और अपनी-अपनी जीत को लेकर के जोर आजमाइश कर रहे हैं. बीजेपी के लिए भी बड़ी चुनौती से कम नहीं है क्योंकि जहां काशी में गठबंधन से दो सीटें बीजेपी ने जीती थीं, आज वो गठबंधन सपा के साथ है. वहीं, कुछ सीटों पर समीकरण बदलने के साथ विपक्ष ने बड़े चेहरों पर दांव लगाया है. बात यदि इस बार प्रदेश की राजनीति कि करें तो इसमें में कई बड़े फेरबदल हुए हैं, जिसका निश्चित तौर पर चुनाव के परिणामों में भी असर दिखेगा. बनारस के आठों विधानसभा सीटों पर जहां कही परिवार की विरासत दांव पर लगी है तो कहीं बीजेपी के तीन मंत्रियों के मान प्रतिष्ठा का सवाल है. परिणाम क्या होंगे? ये 10 मार्च को पता चलेगा लेकिन कहीं ना कहीं, इस बार बीजेपी के सामने भी चुनौती बड़ी हैं. कैसे देखें इस रिपोर्ट में


दक्षिणी कैंट में इस बार चुनौती गढ़ बचाने की
बनारस की दक्षिणी और कैंट विधानसभा क्षेत्र को बीजेपी का गढ़ माना जाता है. क्योंकि शहर दक्षिणी की सीट जहां 33 साल से बीजेपी के पास है तो वहींं, कैंट सीट पर 1991 से वर्तमान विधायक सौरभ श्रीवास्तव के परिवार का कब्जा है. इस बार भी पार्टी ने दोनों सीटों पर अपने सीटिंग विधायकों पर भरोसा जताया है. दक्षिण विधानसभा में बीजेपी सरकार में मंत्री और वर्तमान विधायक नीलकंठ तिवारी को टिकट दिया है. नीलकंठ तिवारी ने 2017 के चुनाव में सपा-कांग्रेस गठबंधन के प्रत्याशी और पूर्व सांसद राजेश मिश्रा को महज 17226 वोटों से शिकस्त दिया था. जबकि इस बार समाजवादी पार्टी ने दक्षिणी सीट पर नई रणनीति के तहत महंत परिवार के कामेश्वर नाथ दीक्षित को मैदान में उतारा है.

सपा ने ब्राह्मण समीकरण के साथ-साथ वर्तमान विधायक को लेकर लोगों की नाराजगी को यहां अपना हथियार बनाया है. वहीं, कैंट विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी के सीटिंग विधायक सौरभ श्रीवास्तव के खिलाफ कांग्रेस ने अपने एक बड़े चेहरे राजेश मिश्रा पर दांव खेला है. 2017 के चुनाव में सौरभ ने सपा- कांग्रेस गठबंधन के प्रत्याशी अनिल श्रीवास्तव को 61326 मतों से शिकस्त दी थी, लेकिन इस बार समाजवादी पार्टी भी अपने समीकरण को साधते हुए महिला सभा के महानगर अध्यक्ष पूजा यादव को टिकट दिया है, जिसने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है.

उत्तरी और शिवपुर विधानसभा, जहां दांव पर हैं मंत्री जी की साख
उत्तरी और शिवपुर विधानसभा सीट पर बीजेपी के मंत्री की दांव साख पर लगी है. उत्तरी में बीजेपी ने विधायक रविंद्र जायसवाल और शिवपुर में वर्तमान विधायक अनिल राजभर को मैदान में उतारा है. ये दोनों ही बीजेपी सरकार में मंत्री हैं. उत्तरी सीट पर ढाई दशक बाद 2012 में भाजपा का परचम लहराया था. इस समय बसपा के सुजीत मौर्या को पार्टी ने पटखनी दी थी और 2017 में कांग्रेस- सपा के गठबंधन के प्रत्याशी अब्दुल समद अंसारी को 45000 वोटों से हार मिली थीं. तीसरी बार फिर इस सीट पर रविंद्र जायसवाल को खड़ा किया गया और उनके सामने सपा के नेता अशफाक अहमद डब्लू मैदान में हैं.

साथ ही कांग्रेस से राजनीतिक परिवार की बहू गुलराना तबस्सुम भी चुनौती दे रही है. भाजपा की प्रतिष्ठापरक शिवपुर विधानसभा में भी चुनौती कम नहीं है. यहां पर सुभसपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने अपने पुत्र अरविंद राजभर को बतौर प्रत्याशी खड़ा किया है. खास बात यह है कि पिछली बार यह सीट बीजेपी को सुभासपा के सहयोग से मिली थी जो कि इस बार सपा के साथ है. इस सीट पर अनिल राजभर ने समाजवादी पार्टी के आनंद मोहन को हराया था. इन दोनों विधानसभा सीटों पर टक्कर मजेदार इसलिए है क्योंकि यहां योगी सरकार के सीटिंग मंत्री हैं और विपक्ष ने उनके सामने एक मजबूत जाल बिछाया है.


अजगरा में बदले समीकरण के साथ, चुनौतियां भी जटिल
अजगरा विधानसभा क्षेत्र में सुभासपा व भाजपा गठबंधन के प्रत्याशी कैलाश सोनकर बतौर विधायक मौजूद है, जिन्होंने समाजवादी पार्टी के लालजी सोनकर को पटखनी दी थी और तीसरे स्थान पर बसपा के टी राम थे. लेकिन इस बार यहां चुनावी समीकरण बिल्कुल बदल गया है क्योंकि जहां सुभासपा ने बीजेपी का साथ छोड़ दिया है तो वहीं, बसपा नेता टी राम बीजेपी में शामिल हो गए हैं. बीजेपी ने इस बार बतौर प्रत्याशी चुनावी मैदान में खड़ा किया है. वहीं, सपा-सुभासपा गठबंधन से एक नए चेहरे सुनील राजभर पर दांव लगाया गया है. इस सीट पर जहां एक ओर सुभासपा और समाजवादी पार्टी कब्जा करने की कवायद में जुटी हुई है, तो वहीं, बीजेपी के सामने भी एक बड़ी चुनौती है.

क्या सेवापुरी में काम करेगा नया प्रयोग?
भारतीय जनता पार्टी ने इस बार सेवापुरी सीट पर एक नया प्रयोग किया है. उन्होंने अपने सीटिंग विधायक नील रतन पटेल पर भरोसा जताया है. लेकिन इस बार पार्टी सिंबल बदल दिया गया है. पिछली बार नीलरतन ने गठबंधन सहयोगी अपना दल एस के सिंबल पर चुनाव लड़ा था और विधायक बने. उन्होंने 2017 के चुनाव में चार बार से विधायक व समाजवादी पार्टी में मंत्री रहे सुरेंद्र सिंह पटेल को पटखनी दी थी लेकिन इस बार सुरेंद्र सिंह पटेल ने फिर से चुनावी मैदान में ताल ठोक दिया है. अपने पुराने तेवर के साथ सियासी रणनीति को अपनी ओर मोड़ रहे हैं.

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रोहनिया बन गई है हॉट सीट
सभी विधानसभा क्षेत्रों के साथ-साथ सबसे ज्यादा मजेदार वाराणसी की रोहनिया सीट होने वाली हैं. क्योंकि यहां मां - बेटी आमने-सामने होंगी. रोहनिया सीट पर इस बार बीजेपी के गठबंधन के सहयोगी अपना दल एस ने अपने सिंबल प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ. सुनील पटेल को मैदान में उतारा है. 2017 के चुनाव में इस सीट पर बीजेपी सिंबल से सुरेंद्र नारायण सिंह ने चुनाव लड़ा था. खास बात यह है कि बीजेपी के विरोध में इस बार सपा और अपना दल क गठबंधन ने अभय पटेल पर भरोसा जताया है, जबकि कांग्रेस ने अपने जिला अध्यक्ष राजेश्वर पटेल पर दांव लगाया है. यह पटेल बाहुल्य इलाका है इसलिए एक ओर जहां यह लड़ाई जाति समीकरण को लेकर के दिलचस्प है तो वहीं, दूसरी ओर अनुप्रिया पटेल और कृष्णा पटेल भी बैक स्टेज से आमने-सामने हैं.


15 सीट पर है बहू को रियल लड़ाई
बता दें कि, पिंडरा सीट पर कई सालों तक कांग्रेस के अजय राय का कब्जा रहा, लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के अवधेश सिंह ने उनके किले में सेंधमारी की और अजय को तीसरे स्थान पर पहुंचा दिया. वहीं, दूसरे स्थान पर बसपा के बाबूलाल पटेल रह, .जहां इस बार फिर से पार्टी ने अवधेश सिंह पर दांव लगाया है तो वहीं, सपा और अपना दल क के प्रत्याशी राजेश पटेल मैदान में है. इसके साथ ही बसपा से बाबूलाल पटेल ने फिर से अपनी दावेदारी ठोक दी हैं. इस सीट पर जहां बीजेपी को अपनी सीट बचानी है, तो वहीं, आजय राय के लिए भी मान प्रतिष्ठा की बात बनी हुई है. इसके साथ ही सपा ने पटेल समीकरण को भी साधा है. यह सभी बिंदु इस बार सीट पर बहुकोणीय लड़ाई की ओर परिलक्षित करते हैं, जिसका परिणाम कुछ भी हो सकता है. बहरहाल इन चुनौतियों के साथ-साथ सभी सियासी दल के नेता जोड़-तोड़ के समीकरण को साधने की कोशिश करेंगे और उसको लेकर के बनारस में प्रवास भी करेंगे. लेकिन यह देखना बेहद दिलचस्प होगा कि कौन लखनऊ की गद्दी पर बैठता है और बनारस की आठों विधानसभा सीटों पर अपना परचम लहराता है.

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