मेरठ: पूरे देश में अगर हम इस समय खेलों की बात करें तो हर किसी की जुबान पर टोक्यो ओलंपिक की चर्चाएं ही हैं. देशवासी हमारे खिलाड़ियों से ओलंपिक पदक की उम्मीद कर रहे हैं. खिलाड़ी जी-जान लगाकर देश की खातिर पदक लाने में लगे हुए हैं.
टोक्यो ओलंपिक में इस बार भारतीय खिलाडियों खासकर लड़कियों का दबदबा रहा है. इस ओलंपिक में भारत के लिए पहला पदक मीराबाई चानू ने लाकर देशवासियों को गौरवान्वित किया. वहीं भारतीय शटलर पीवी सिंधू,बॉक्सिंग चैंपियन लवलीना ने भी कांस्य पदक लाकर देश का मान सम्मान बढ़ाया है. भारतीय महिला हॉकी टीम अपना परचम लहराने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है.
ऐसी शक्तिशाली बेटियों से प्रेरणा लेकर अब ओलम्पिक सिटी मेरठ की बेटियां शूटिंग के क्षेत्र में नाम रोशन करने को बेताब दिख रही हैं. मेरठ की कई नन्हीं परियां आर्थिक तंगी के बावजूद शूटिंग सीख रही हैं. इन बेटियों के पंख को उड़ान दे रहे हैं इनके कोच अमोल प्रताप, जिन्होंने आर्थिक तंगी से जूझ रही कई नन्हीं परियों को निशुल्क ट्रेनिंग देने का फैसला किया है.
कोच अमोल प्रताप का मानना है लड़कियों में सीखने की क्षमता लड़कों से अधिक होती है. इसके अलावा वे अपने दिमाग को केंद्रित बहुत अच्छे से करती हैं. क्योंकि शूटिंग दिमाग को केंद्रित कर निशाना लगाने का ही एक हुनर है. जिसने यह कला सीख ली, वह अंतराष्ट्रीय स्तर पर कमाल मचा देता है. इसलिए वो आर्थिक तंगी से जूझ रही बेटियों को निशुल्क ट्रेनिंग दे रहे हैं. इन बेटियों का कहना है कि वो ज़रुर एक न एक दिन आकाश छुएंगी और भारत का तिरंगा ओलम्पिक के पटल पर शान से लहराएंगी.
कौन हैं कोच अमोल प्रताप सिंह
कोच अमोल प्रताप सिंह निशानेबाजी में राष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन कर चुके हैं. शास्त्री नगर जे ब्लॉक निवासी अमोल बताते हैं कि आज हर कोई समाज के लिए कुछ न कुछ करना चाहता है. उन्होंने भी कुछ करने की सोची. आर्थिक रूप से इतना सम्पन्न नहीं था, इसलिए सोचा कि अपने हुनर को ही समाज के प्रति समर्पित कर दूं. यही सोचकर घर पर ही तीसरी मंजिल में निशानेबाजी के लिए एक शूटिंग रेंज खोल दी. आज अमोल प्रताप के शूटिंग रेंज में 35 बच्चे शूटिंग की बारीकियां सीख रहे हैं.
अमोल बताते हैं कि उन्होंने असहाय परिवार की पांच बच्चियों का चयन किया. पहले बच्चियों के परिजन इसके लिए तैयार नहीं थे. लेकिन जब उन्हें समझाया कि इसमें उनका कुछ नहीं लगना है तो वे इसके लिए तैयार हुए. ये पांच बच्चियां मेरठ के अलावा हापुड से भी आतीं हैं. अमोल अपने पास से बच्चियों को आने-जाने का किराया भी देते हैं. वाकई में ऐसे कोच भी मिसाल कायम कर रहे हैं जो आर्थिक रुप से जूझ रहे परिवारों की बेटियों को नया आकाश छूने का हौसला दे रहे हैं.