लखनऊ : प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार की दूसरी पारी के भी सौ दिन पूरे हो चुके हैं. पिछली सरकार और इस सरकार में भारतीय जनता पार्टी दो विषयों में अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि मानती है. पहली उपलब्धि सरकार की अपराधियों के खिलाफ सख्ती से निपटने की नीति है, तो दूसरी भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देने का वादा. काफी हद तक यह सही भी है. अपवाद छोड़ दें तो सरकार ने अपराधियों के खिलाफ सख्त से सख्त कदम उठाए हैं. वहीं पांच साल के काम-काज में भ्रष्टाचार का एक भी आरोप नहीं लगा.
पिछली सरकारों में 'तबादला उद्योग' भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा जरिया हुआ करता था. योगी सरकार ने तबादलों पर अंकुश लगाने के साथ ही पारिदर्शिता भी बरती. इससे तबादलों में होने वाली बेईमानी पर काफी ब्रेक लगा. हालांकि योगी-2 में उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने ही अपने विभाग के तबादलों पर सवाल उठाकर न सिर्फ अपर मुख्य सचिव की कार्यपद्धति पर सवाल उठाए, बल्कि यह संदेश भी दिया कि मंत्रियों का तबादलों पर नियंत्रण भी काफी कम है. इससे सरकार की किरकिरी हुई, तो मुख्यमंत्री ने जांच कराने का फैसला किया. स्वास्थ्य विभाग में तबादलों को लेकर डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक की चिट्ठी लीक होने के बाद विपक्षी दलों ने योगी सरकार को निशाने पर लिया और आरोपों का दौर भी चला. पिछली सरकार में कानून मंत्री रहे ब्रजेश पाठक को दोबारा आई सरकार में उप मुख्यमंत्री बनाया गया. साफ है कि पार्टी उनका कद बढ़ाना चाहती है. ऐसे में सवाल उठने लगे कि यदि सरकार में दो-तीन नंबर के मंत्रियों की भी अपने विभागों में नहीं चल रही है, तो इस तंत्र को चला कौन रहा है? मंत्री ने अपने पत्र में अपने ही विभाग के अपर मुख्य सचिव पर गंभीर सवाल उठाए थे.
विपक्षी दलों ने कहा कि आखिर क्या कारण है कि अधिकारी अपने मंत्री की भी नहीं सुन रहे हैं? इस फजीहत के बाद मुख्यमंत्री ने इन तबादलों पर जांच बैठा दी. शीघ्र ही इस पर कार्रवाई की भी उम्मीद की जा रही है. हालांकि सिर्फ स्वास्थ्य विभाग में ही तबादलों में गड़बड़ी हुई हो ऐसा भी नहीं है. लोक निर्माण विभाग के तबादलों में भी गड़बड़ी की शिकायतें आई थीं और इसकी भी जांच हो रही है. सरकार के लिए यह बात राहत देने वाली हो सकती है कि इन तबादलों में भ्रष्टाचार के बजाय नेताओं और नौकरशाही में मतभेद का विषय सामने आया है, हालांकि इसके साथ ही यह सवाल भी उठ रहा है कि आखिर नौकरशाही इतनी बेअंदाज क्यों है? उसे कहां से संबल मिल रहा है कि वह अपने ही मंत्री की बातों को अनसुना करे? पिछले पांच सालों में योगी आदित्यनाथ सरकार ने तबादलों में पारिदर्शिता बरती और जल्दी-जल्दी तबादलों के बजाय अधिकारियों को टिककर काम करने का अवसर दिया. इससे विकास के कामों में भी फर्क देखा गया. अब सरकार के लिए जरूरी हो गया है कि वह नेताओं और नौकरशाही में पनप रहे मतभेदों को खत्म करे, अन्यथा आगे उसे सरकार पर नौकरशाही के हावी होने के आरोपों का भी सामना करने के लिए तैयार रहना होगा.
इस संबंध में राजनीतिक विश्लेषक डॉ. मनीष हिंदवी कहते हैं 'जिस तरह हाल-फिलहाल के तबादलों पर उंगली उठाई जा रही है, वह बड़े गंभीर प्रश्न खड़े करती है. हालांकि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार बहुत जल्दी-जल्दी तबादलों पर विश्वास नहीं रखती है. जैसा कि देखने में आया है. जिलों में अधिकारियों को काम करने के लिए वक्त दिया गया. दो-तीन महत्वपूर्ण प्रश्न खड़े होते हैं. जहां से हल्ला मचा है, मैं वहीं से बात शुरू करता हूं. ब्रजेश पाठक उप मुख्यमंत्री हैं, स्वास्थ्य विभाग के मुखिया हैं, उनका अपने ही विभाग के तबादलों पर कोई नियंत्रण नहीं है. मैसेज यह जा रहा है कि मंत्री का उसके अपने ही विभाग में कोई दखल नहीं है. इसका मतलब नौकरशाही अत्यधिक शक्तिशाली हो रही है. यह ठीक नहीं है.
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उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में सबको उसकी जगह बताई गई है. ब्यूरोक्रेसी की क्या जगह है, विधायिका की क्या जगह है और न्यायपालिका की क्या जगह है. यदि कोई संस्था ज्यादा ताकतवर हो रही है, तो यह ठीक नहीं है. लोग यह भी कह रहे हैं कि मुख्यमंत्री अपने नेताओं से ज्यादा अधिकारियों पर भरोसा कर रहे हैं. यह भी अच्छी बात नहीं है. काम सबको मिलकर करना है और यदि उप मुख्यमंत्री की नहीं चल रही है तो बाकी नेताओं का क्या होगा? कुल मिलाकर स्थिति यह है कि तबादले जल्दी-जल्दी न किए जाएं. यह अच्छी बात है, लेकिन विधायिका और ब्यूरोक्रेसी साथ मिलकर काम करेंगे तो यह प्रदेश के हित में होगा.'
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