लखनऊ: स्मारक घोटाले में विजिलेंस ने पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी का बयान दर्ज किया. विजिलेंस दफ्तर में नसीमुद्दीन से छह घंटे पूछताछ हुई. नसीमुद्दीन के जवाबों के आधार पर विजिलेंस 23 जुलाई को तत्कालीन खनन मंत्री बाबूसिंह कुशवाहा का बयान दर्ज करेगी. उन्हें पूछताछ के लिए नोटिस जारी कर बुलाया गया है.
इनके अलावा 40 सरकारी अफसरों को भी विजिलेंस ने नोटिस भेजा है. हालांकि, कहा जा रहा है कि ये सारी कार्रवाई 2022 विधानसभा चुनाव को देखते हुए की जा रही है. अगर ऐसा नहीं है तो पिछले साढे 4 साल में कार्रवाई क्यों नहीं की गई. दरअसल वर्ष 2013 से स्मारक घोटाले की जांच चल रही है और अब तक 23 आरोपी गिरफ्तार कर जेल भेजे गए थे. वहीं, 6 के खिलाफ अक्टूबर, 2020 में चार्जशीट भी दाखिल हुई थी. विजिलेंस के साथ प्रवर्तन निदेशालय भी मामले में जांच कर रहा है. प्रवर्तन निदेशालय ने स्मारक घोटाले में धन-शोधन निवारण अधिनियम के तहत मामला भी दर्ज किया था और लखनऊ में इंजीनियरों और ठेकेदारों की संपत्तियां कुर्क की गयी थीं.
विजिलेंस ने घोटाले के कथित मास्टरमाइंड तत्कालीन वित्तीय परामर्शदाता विमलकांत मुद्गल, महाप्रबंधक तकनीकी एसके त्यागी, महाप्रबंधक सोडिक कृष्ण कुमार और इकाई प्रभारी कामेश्वर शर्मा को गिरफ्तार किया था. मगर अफसरों के इशारे पर इन्हें बचाने की जुगत भी निकाली गई. बताया जा रहा कि घोटाले के कर्ताधर्ता इन पूर्व अफसरों के खिलाफ अभियोजन ने कोई ठोस साक्ष्य ही पेश नहीं किया. जिसकी वजह से पिछले सप्ताह वीके मुद्गल, एसके त्यागी और कामेश्वर शर्मा को कोर्ट ने जमानत दे दी. कृष्ण कुमार की जेल में रहते हुए ही बीमारी से मौत हो गई थी. हालांकि, जांच कर रहे अफसरों का कहना है कि सभी आरोपियों को मेडिकल ग्राउंड पर जमानत दी गयी.
विजिलेंस की जांच में सामाने आया कि 9 जुलाई 2007 को तत्कालीन खनन मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा ने मीरजापुर सैंड स्टोन के गुलाबी पत्थरों को स्मारकों में लगाने के लिए निर्देश दिए थे. इनके रेट तय करने के लिए गठित क्रय समिति की बैठक हुई थी. कमेटी ने मिर्जापुर सैंड स्टोन के ब्लॉक खरीदने के लिए 150 रुपए प्रति घन फुट रेट तय किया. इसमें लोडिंग के लिए बीस रुपए प्रति घन फुट और जोड़कर सप्लाई के रेट तय किए गए थे. इन दरों के अलावा रॉयल्टी और ट्रेड टैक्स का अतिरिक्त भुगतान किया गया था. जबकि उस समय इन पत्थरों का बाजार भाव 50 से 80 रुपए घन फुट से ज्यादा नहीं था.
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लखनऊ और नोएडा में स्मारकों के निर्माण में 4200 करोड़ रुपए का घोटाला हुआ था. इसकी शुरुआती जांच तत्कालीन लोकायुक्त जस्टिस एनके मेहरोत्रा ने की थी. उन्होंने अपनी रिपोर्ट 20 मई 2013 को तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को सौंपी थी, जिसमें उन्होंने पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी व बाबू सिंह कुशवाहा समेत 199 लोगों को जिम्मेदार ठहराया था. हालांकि, अखिलेश सरकार ने दोनों ही संस्थाओं को जांच न देकर विजिलेंस को जांच सौंप दी थी. विजिलेंस की जांच इतनी धीमी गति से चलती रही कि चार वर्षों में इसमें कोई प्रगति नहीं हुई. इसी बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्देश के बाद विजिलेंस ने जांच पूरी की और अभियोजन की स्वीकृति के लिए प्रकरण शासन को भेजा था. इसके बाद कार्रवाई के नाम पर विजिलेंस ने जांच ठंडे बस्ते में डाल दी थी.