लखनऊ: राज्य में एक ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था का लक्ष्य रखा गया है. इस अर्थव्यवस्था का लक्ष्य हासिल करने में कृषि और पशुधन का अहम रोल है. बावजूद राज्य के पशुओं की हालत बद से बदत्तर है. कारण, यहां के सैकड़ों सरकारी पशु अस्पताल डॉक्टर विहीन हैं. इसके चलते बीमार पशु झोलाछाप के सहारे हैं.
राज्य में 2202 पशु अस्पताल हैं. इनमें 250 अस्पताल डॉक्टर विहीन हैं. विकास खंडों में खुले अस्पतालों में पशुओं को इलाज नहीं मिल पा रहा है. यहां डॉक्टर के साथ-साथ दवाओं तक का संकट है. एक डॉक्टर को दो से तीन अस्पतालों का प्रभार सौंपा गया है. लिहाजा, वह एक से दूसरे अस्पताल में दूरी की वजह से हफ्ते में भी नहीं पहुंच पा रहे हैं. पशुओं को बगैर इलाज के लौटना पड़ रहा है. ग्रामीण क्षेत्रों में झोलाछाप चिकित्सकों की भरमार हो गई है. वह पशुओं की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं. ऐसे में पशुपालकों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.
5 करोड़ से अधिक हैं पशु : राज्य में 5 करोड़ 20 लाख 36 हजार 426 गोवंश और मवेशी हैं. यह पशु गणना 2020 के अनुसार तय की गई है. ऐसे में राज्य में एक लाख पशुओं पर एक एंबुलेंस मुहैया कराये जाने की योजना है. लेकिन यह कब शुरू होगी, इसकी तिथि घोषित नहीं की गई है.
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सिर्फ 300 डॉक्टर निकलते हैं हर साल : राज्य के सरकारी पशु अस्पताल डॉक्टरों के संकट से जूझ रहे हैं. इसका प्रमुख कारण हर साल कम डॉक्टरों का तैयार होना भी है. स्थिति यह है कि राज्य के मेरठ, बरेली, बांदा, फैजाबाद, बनारस, मथुरा पशु चिकित्सा कॉलेज में 300 सीटें ही बीवीएससी एंड एएच की हैं. यह कोर्स कर निकलने वाले ज्यादातर डॉक्टर प्राइवेट प्रैक्टिस में चले जाते हैं.
200 डॉक्टरों की भर्ती जल्द : पशुपालन विभाग के निदेशक डॉ. इंद्रमणि ने कहा कि अस्पतालों में डॉक्टरों का संकट जल्द दूर किया जाएगा. इसके लिए प्रक्रिया शुरू कर दी गई है. जल्द ही विभाग को 200 डॉक्टर मिलेंगे. अन्य पदों पर भी जल्द विज्ञापन जारी किया जाएगा.
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