लखनऊ : उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. 403 सदस्यों वाली विधानसभा में पार्टी के पास सिर्फ दो विधायक हैं. वहीं, विधान परिषद में पार्टी के एकमात्र सदस्य दीपक सिंह का कार्यकाल भी आगामी 6 जुलाई को खत्म होने जा रहा है. उनके बाद विधान परिषद में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व ही नहीं होगा. उत्तर प्रदेश विधान परिषद के 113 साल के इतिहास में यह पहली बार होगा जब परिषद में कांग्रेस का कोई सदस्य नहीं होगा. जानकारों का कहना है कि मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए निकट भविष्य में भी उच्च सदन में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व होने की उम्मीद दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही है. साथ ही कांग्रेस के नेता रहे मोतीलाल नेहरू से शुरू हुआ सिलसिला उनकी पांचवीं पीढ़ी पर आकर खत्म हो रहा है.
विधान परिषद में कांग्रेस का इतिहास : उत्तर प्रदेश में विधान परिषद की स्थापना 5 जनवरी 1887 में हुई थी. मोतीलाल नेहरू ने 7 फरवरी 1919 को विधान परिषद की सदस्यता ली. उन्हें विधान परिषद में कांग्रेस का पहला सदस्य माना जाता है. तब उत्तर प्रदेश को संयुक्त प्रांत के नाम से जाना जाता था. आजादी के बाद 1989 तक विधान परिषद में कांग्रेस का दबदबा रहा. 1977 और 1979 को छोड़कर अन्य वर्षों में विधान परिषद में नेता सदन कांग्रेस का ही रहा. उसके बाद से स्थितियां खराब हो गईं. बीते 33 वर्षों में कांग्रेस लगातार सिकुड़ती चली गई है. 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी के सिर्फ दो उम्मीदवार विधानसभा तक पहुंचे हैं. इस बार 2.5 प्रतिशत से भी कम वोट मिला है. वर्तमान में कांग्रेस के एकमात्र सदस्य दीपक सिंह विधान परिषद में हैं. उनका कार्यकाल भी 6 जुलाई को पूरा होने जा रहा है.
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संजय लाठर : सदन में सबसे कम दिन समाजवादी पार्टी के संजय लाठर विधान परिषद में 23वें नेता प्रतिपक्ष हैं. उनके खाते में सदन में सबसे कम दिन नेता प्रतिपक्ष रहने वाले सदस्य का रिकॉर्ड आने वाला है. अहमद हसन की मृत्यु के बाद 28 मार्च को संजय लाठर को विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष बनाया गया था. उनका कार्यकाल 26 मई को खत्म हो जाएगा.
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