लखनऊ : उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ क्रिकेटर और यूपी टीम के कोच और चयनकर्ता रहे अशोक बॉम्बी ने उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (Uttar Pradesh Cricket Association) पर बड़े सवाल खड़े किए. सोशल मीडिया (social media) में दिए गए अपने एक लंबे चौड़े बयान के आधार पर उन्होंने कहा है कि यूपीसीए बाहरी पूर्व क्रिकेटरों के लिए तो तिजोरी खोल देता है मगर अपने क्रिकेटरों के लिए कंजूसी आसमान पर रहती है. ऐसे में कई बार खिलाड़ियों का नुकसान होता है, यूपी टीम का प्रदर्शन भी खराब हो जाता है. मोहम्मद कैफ, आरपी सिंह, सुरेश रैना और ज्ञानेंद्र पांडेय जैसे खिलाड़ियों को कोच के रूप में कम मौका दिए जाने को लेकर उन्होंने सवाल खड़े किए. देश की कई महत्वपूर्ण आईपीएल टीमों के लिए अलग-अलग कोच की भूमिका में रहे हैं. उनको भी यूपीसीए कोई मौका नहीं दे रहा है.
वरिष्ठ क्रिकेटर अशोक बॉम्बी (senior cricketer Ashok Bomby) ने कहा है कि घर की मुर्गी दाल बराबर. जी हां यह कहावत उत्तर प्रदेश के क्रिकेट पर एकदम सही बैठती है. अपने प्रदेश के सात खिलाड़ियों ने गोपाल शर्मा के पश्चात देश के लिए टेस्ट व अन्य प्रतियोगिताओं में खेलते हुए अच्छा योगदान दिया, जबकि तीन अन्य खिलाडियों ने एक दिवसीय मैच खेले. अभी भी भुवनेश्वर कुमार व कुलदीप यादव देश के लिए खेल रहे हैं. पीयूष चावला अपने खेल जीवन के अंतिम पड़ाव पर हैं और सुरेश रैना की तरह क्रिकेट को निकट भविष्य में अलविदा कर सकते हैं.
![मों कैफ](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/up-luc-01-up-cotch-7210474_12092022121459_1209f_1662965099_768.jpg)
बॉम्बी बताते हैं कि गोपाल शर्मा की सेवायें उनके सन्यास लेने के पश्चात पिछले लगभग 25 वर्षों से ली जा रही हैं. मेरे विचार से वे एक बेहतरीन चयनकर्ता थे और उनमें एक खिलाड़ी को आंकने की बहुत बड़ी खूबी थी, लेकिन रणजी टीम के साथ उनका कार्यकाल व योगदान अत्यंत साधारण रहा. आज प्रदेश के पास मो. कैफ, सुरेश रैना व आरपी सिंह सीनियर व जूनियर जैसे धुरंधर भूतपूर्व खिलाड़ी मौजूद हैं. जिनकी सेवाएं एक कोच व मार्गदर्शक के रूप में ली जा सकती हैं लेकिन घर की मुर्गी दाल बराबर ही है. कैफ जैसा मेहनती व जुझारू खिलाड़ी पूरे देश में कम ही मिलेगा, जो प्रदेश टीम को एक बार फिर ऊपर तक ले जाने की क्षमता रखता है. सुरेश रैना व आरपी सिंह का भी दिशा निर्देश भविष्य के खिलाड़ियों के लिये अत्यंत लाभकारी हो सकता है. प्रदेश में एक से बढ़कर एक खिलाड़ी मौजूद हैं तो फिर बाहर के भूतपूर्व खिलाड़ियों को एक कोच की जिम्मेदारी क्यो दी जाती है ? जब भी अपने प्रदेश के खिलाड़ी कोच बने हैं उन्होंने काफी अच्छा योगदान दिया है. राजिंदर सिंह हंस के समय प्रदेश रणजी चैम्पियन बना. ज्ञानेंद्र पांडेय के संरक्षण में प्रदेश टीम पिछले वर्ष विजय हजारे ट्रॉफी के फाइनल में खेली और फिर उन्हें अचानक हटा दिया गया, भला क्यो? मुझे चार वर्ष तक प्रदेश कोच बनने का गौरव प्राप्त हुआ और टीम दो बार रणजी मे सेमीफाइनल खेली.
![सुरेश रैना](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/up-luc-01-up-cotch-7210474_12092022121459_1209f_1662965099_1048.png)
अशोक बॉम्बी कहते हैं कि प्रदेश टीम के लिए पूर्व में कई बाहरी खिलाड़ियों की कोच के रूप मे सेवाएं ली गईं. उनको मोटी मोटी फीस भी दी गई, लेकिन योगदान टांय टांय फिस्स ही रहा. यशपाल शर्मा, वेंकटसुंदरम, मनोज प्रभाकर, वेंकटेश प्रसाद, मंसूर अली, सुनील जोशी आदि को प्रदेश टीम का समय समय पर कोच बनाया गया, लेकिन टीम का प्रदर्शन धरातल से ऊपर उठ नहीं पाया. उनका क्या मोटी फीस ली और अपने अपने घरों को प्रस्थान कर गए. जबकि अपने प्रदेश के खिलाड़ियों को कोच बनाने व फीस देने के नाम पर तिजोरी मे ताला लग जाता है. जो बच्चे बाहरी खिलाड़ियों के खेलने के कारण प्रदेश टीम से खेलने के लिए वंचित रह जाते हैं उनके दर्द को समझने की कोशिश करें. सोचिए यदि आपके बच्चे के साथ ऐसा व्यवहार हो तो आपको कैसा लगेगा.
![आरपी सिंह](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/up-luc-01-up-cotch-7210474_12092022121459_1209f_1662965099_1070.jpg)
![ज्ञानेंद्र पांडेय](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/up-luc-01-up-cotch-7210474_12092022121459_1209f_1662965099_584.jpg)
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प्रदेश के पदाधिकारियों को सलाह देना चाहूंगा कि भैया अपने ही घर के आदमी को कोच बनाइये. क्योंकि वही टीम का दर्द समझता है, बाहरी का क्या अंटैया मे रकम ठूंसी और मुस्कराते हुए चल पडे़ महरारू के पास. टीम जीते व हारे उनकी बला से. इसी प्रकार से बाहर के खिलाड़ियों को खिलाने के नाम पर पूर्ण विराम लगाना चाहिए क्योंकि प्रदेश मे बेहतरीन खिलाड़ियों की कमी नहीं है.
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