ETV Bharat / city

कोरोना से जंग: ग्रामीण महिलाएं तैयार कर रहीं मास्क और पीपीई किट - महिलाएं तैयार कर रही पीपीई किट

राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत जुड़ी महिलाएं कोरोना संकट में अपना योगदान दे रही हैं. ये महिलाएं इन दिनों पीपीई किट और मास्क तैयार कर रही हैं.

rural-women-prepare-masks-and-ppe-kit
rural-women-prepare-masks-and-ppe-kit
author img

By

Published : May 10, 2020, 1:24 PM IST

Updated : May 28, 2020, 1:26 PM IST

लखनऊ: कोरोना महामारी को मात देने के लिए हर कोई अपना योगदान किसी न किसी रूप में दे रहा है. ऐसे में लखनऊ की इन महिलाओं का योगदान भी सराहनीय है. अपने घर का सारा काम करते हुए ये महिलाएं देश को कोरोना से बचाने में अपना सहयोग दे रही हैं.

कोरोना संकट में योगदान दे रहीं महिलाएं

लखनऊ के नेवादा गांव का गंगा स्वयं सहायता समूह सबसे पुराना है. जिसमें गांव की 40 महिलाएं जुड़कर बड़ी संख्या में मास्क और पीपीई किट तैयार कर रही हैं. ये महिलाएं कोरोना काल में घर संभालने के साथ-साथ कोरोना जैसी महामारी से लड़ने में अपना भरपूर योगदान दे रही हैं.

स्पेशल रिपोर्ट.

नेवादा गांव का सबसे पुराना समूह गंगा स्वयं सहायता समूह है. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान समूह की सखी सरिता बताती हैं कि वर्ष 2017 में समूह का गठन हुआ. इस वक्त गांव की 40 महिलाएं आजीविका मिशन में काम कर रही हैं. समूह गठन के उपरांत 15 हजार रुपये आया. उससे हमने सिलाई मशीनें खरीदीं. 1 लाख 10 हजार रुपये जब आया तो हमने कपड़ा खरीदा. पिछले साल हमने सबसे पहले 18 हजार स्कूल ड्रेस बनाए थे. 16 हजार ड्रेस की बिक्री हो चुकी है. उसमें से 2000 अभी समूह के पास रखे हैं.

सरिता बताती हैं कि एक दिन में उनकी 300 से 400 तक कमाई हो जाती है. यहां की महिलाएं कहती हैं कि अब उनका समूह बहुत आगे निकल चुका है. नेवादा गांव की ये महिलाएं इस वक्त कोरोना संकट काल में पीपीई किट और मास्क का निर्माण कर रही हैं.

सरकार की तरफ से स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को उनकी मांग के अनुसार प्रशिक्षण दिलाया जाता है. समूह के गठन के साथ 15 हजार रुपये समूह के बैंक खाते में दिया जाता है. इसके कुछ दिनों बाद सवा लाख रुपये के आसपास बैंक खाते में मिशन की तरफ से दिया जाता है. यह पैसा किसी एक महिला के खाते में नहीं भेजा जाता और न ही उसका अधिकार है, समूह के खाते में आता है. समूह के बैंक खाते में जमा धनराशि में से महिलाएं ऋण के रूप में लेती हैं. समूह ही खुद तय करता है कि ऋण पर कितना ब्याज लिया जाएगा. सभी के लिए एक नियम बनाकर समूह काम करता है.

इसे भी पढ़ें-अयोध्या की 'सरयू' गाय जो कर रही 20 साल से 'रामलला' की परिक्रमा

प्रदेश में करीब तीन लाख समूह का गठन हो गया है. इसमें करीब 30 लाख महिलाएं काम कर रही हैं. सवा दो लाख समूह ऐसे हैं, जो किसी न किसी प्रकार की गतिविधि से जुड़कर काम कर रहे हैं. अभी हाल में ही कोरोना संकट काल में ये महिलाएं भारी संख्या में मास्क का निर्माण की हैं. इसमें भी उनकी क्षमता देखने को मिली है. मिशन की महिलाएं ग्रामीण रोजगार से जुड़े हर क्षेत्र में कार्य कर रही हैं. धीरे-धीरे करके पूरे प्रदेश में मिशन की पहुंच हो गयी है.
सुजीत कुमार,निदेशक, राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन

लखनऊ: कोरोना महामारी को मात देने के लिए हर कोई अपना योगदान किसी न किसी रूप में दे रहा है. ऐसे में लखनऊ की इन महिलाओं का योगदान भी सराहनीय है. अपने घर का सारा काम करते हुए ये महिलाएं देश को कोरोना से बचाने में अपना सहयोग दे रही हैं.

कोरोना संकट में योगदान दे रहीं महिलाएं

लखनऊ के नेवादा गांव का गंगा स्वयं सहायता समूह सबसे पुराना है. जिसमें गांव की 40 महिलाएं जुड़कर बड़ी संख्या में मास्क और पीपीई किट तैयार कर रही हैं. ये महिलाएं कोरोना काल में घर संभालने के साथ-साथ कोरोना जैसी महामारी से लड़ने में अपना भरपूर योगदान दे रही हैं.

स्पेशल रिपोर्ट.

नेवादा गांव का सबसे पुराना समूह गंगा स्वयं सहायता समूह है. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान समूह की सखी सरिता बताती हैं कि वर्ष 2017 में समूह का गठन हुआ. इस वक्त गांव की 40 महिलाएं आजीविका मिशन में काम कर रही हैं. समूह गठन के उपरांत 15 हजार रुपये आया. उससे हमने सिलाई मशीनें खरीदीं. 1 लाख 10 हजार रुपये जब आया तो हमने कपड़ा खरीदा. पिछले साल हमने सबसे पहले 18 हजार स्कूल ड्रेस बनाए थे. 16 हजार ड्रेस की बिक्री हो चुकी है. उसमें से 2000 अभी समूह के पास रखे हैं.

सरिता बताती हैं कि एक दिन में उनकी 300 से 400 तक कमाई हो जाती है. यहां की महिलाएं कहती हैं कि अब उनका समूह बहुत आगे निकल चुका है. नेवादा गांव की ये महिलाएं इस वक्त कोरोना संकट काल में पीपीई किट और मास्क का निर्माण कर रही हैं.

सरकार की तरफ से स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को उनकी मांग के अनुसार प्रशिक्षण दिलाया जाता है. समूह के गठन के साथ 15 हजार रुपये समूह के बैंक खाते में दिया जाता है. इसके कुछ दिनों बाद सवा लाख रुपये के आसपास बैंक खाते में मिशन की तरफ से दिया जाता है. यह पैसा किसी एक महिला के खाते में नहीं भेजा जाता और न ही उसका अधिकार है, समूह के खाते में आता है. समूह के बैंक खाते में जमा धनराशि में से महिलाएं ऋण के रूप में लेती हैं. समूह ही खुद तय करता है कि ऋण पर कितना ब्याज लिया जाएगा. सभी के लिए एक नियम बनाकर समूह काम करता है.

इसे भी पढ़ें-अयोध्या की 'सरयू' गाय जो कर रही 20 साल से 'रामलला' की परिक्रमा

प्रदेश में करीब तीन लाख समूह का गठन हो गया है. इसमें करीब 30 लाख महिलाएं काम कर रही हैं. सवा दो लाख समूह ऐसे हैं, जो किसी न किसी प्रकार की गतिविधि से जुड़कर काम कर रहे हैं. अभी हाल में ही कोरोना संकट काल में ये महिलाएं भारी संख्या में मास्क का निर्माण की हैं. इसमें भी उनकी क्षमता देखने को मिली है. मिशन की महिलाएं ग्रामीण रोजगार से जुड़े हर क्षेत्र में कार्य कर रही हैं. धीरे-धीरे करके पूरे प्रदेश में मिशन की पहुंच हो गयी है.
सुजीत कुमार,निदेशक, राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन

Last Updated : May 28, 2020, 1:26 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.