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अखिलेश यादव के लिए मुसीबत बने राजभर, अपने बयानों से पहुंचाते रहेंगे चोट - President Akhilesh Yadav

अखिलेश यादव ने कहा कि 'सपा को किसी की एडवाइज की जरूरत नहीं है. यदि कोई नाराज है तो मैं उसके लिए क्या कर सकता हूं. वहीं ओम प्रकाश राजभर ने अखिलेश को लेकर टिप्पणी की थी कि वह एसी कमरों में बैठकर राजनीति करते हैं.

समाजवादी पार्टी
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Published : Jul 6, 2022, 9:17 PM IST

लखनऊ : सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव में एक-दूसरे पर बयानों का ताजा दौर शुरू हो गया है. हाल ही में राजभर के बयानों को लेकर पूछे गए सवाल पर अखिलेश यादव ने कहा कि 'समाजवादी पार्टी को किसी की एडवाइज की जरूरत नहीं है. यदि कोई नाराज है तो मैं उसके लिए क्या कर सकता हूं. आज कल जो राजनीति दिख रही है, वह है नहीं. कई बार राजनीति पीछे से ऑपरेट होती है. 'गौरतलब है कि ओम प्रकाश राजभर ने अखिलेश को लेकर टिप्पणी की थी कि वह एसी कमरों में बैठकर राजनीति करते हैं. दरअसल, दोनों नेताओं की तल्खियां भविष्य के राजनीतिक समीकरणों की ओर इशारा करती हैं.


'योगी-वन' सरकार का हिस्सा रहे ओम प्रकाश राजभर लगातार दबाव की राजनीति कर रहे थे. मांगें पूरी न होने पर उन्होंने भाजपा सरकार पर पिछड़ों के साथ धोखा करने का आरोप लगाया. यही नहीं उन्होंने मंत्री पद छोड़कर सरकार के खिलाफ विरोध का बिगुल भी फूंका. 2022 के विधान सभा चुनावों से पूर्व उन्होंने अपनी पार्टी सुभासपा का सपा के साथ गठबंधन किया. राजभर को लगता था कि जनता का रुख भाजपा के खिलाफ है और वह सपा के साथ मिलकर सत्ता में आ सकते हैं. हालांकि चुनाव परिणाम आने के साथ ही अखिलेश यादव और ओम प्रकाश राजभर के अरमान धरे के धरे रह गए. समाजवादी पार्टी की पराजय के पीछे अखिलेश यादव के कई गलत निर्णय भी माने जा रहे हैं. अखिलेश यादव ने प्रचार अभियान से सभी बड़े नेताओं को दूर रखा. अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव और पत्नी डिंपल यादव तक को अखिलेश ने प्रचार अभियान से दूर रखा. टिकट वितरण को लेकर भी उन्होंने कई गलत निर्णय किए. परायज के बाद राजभर अखिलेश की इन्हीं नाकामियों से खिन्न थे.

राजनीतिक विश्लेषक डॉ. मनीष हिंदवी



ओम प्रकाश राजभर राज्यसभा और विधान परिषद के उप चुनावों में अपने पुत्र अरुण राजभर को राज्यसभा अथवा विधान परिषद में समायोजित कराना चाहते थे. हालांकि अखिलेश यादव ने इन्हें निराश किया. समाजवादी पार्टी ने दूसरे सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष को राज्यसभा भेजा. राजभर इससे खासे निराश हुए. इसके बाद दबी जुबान से आलोचना करने वाले राजभर खुलकर अखिलेश के खिलाफ बयानबाजी करने लगे हैं. आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीटों पर उपचुनाव में भी सपा की पराजय के बाद राजभर ने अखिलेश के खिलाफ मोर्चा ही खोल दिया. इस उपचुनाव में भाजपा ने सपा से दोनों ही सीटें छीन लीं, जबकि अखिलेश यादव आजमगढ़ वोट मांगने तक नहीं गए. इस पर नाराज राजभर ने कहा 'मेरा सवाल है कि अखिलेश क्यों नहीं गए आजमगढ़? मैं भी अपनी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष हूं. ओम प्रकाश राजभर बारह दिन से वहां धूल फांक रहा है. हम अपनी टीम को लेकर धूल फांक रहे हैं, जबकि यह लोग एसी में बैठकर रसमलाई चांप रहे हैं.' राजभर ने कहा कि अखिलेश यादव से पूछा जाना चाहिए कि वह क्यों नहीं निकलते हैं जनता के बीच.

ओम प्रकाश राजभर की यह आक्रामकता साफ इशारा कर रही है कि 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों में नए समीकरण बनेंगे. राजभर और अखिलेश का साथ अब ज्यादा दिन चलना कठिन है. राजभर सपा के साथ गठबंधन में रहकर उसे जितना नुकसान पहुंचा सकते हैं, जरूर पहुंचाएंगे. यह भी माना जा रहा है कि उनकी सत्ताधारी भाजपा से बात भी हो गई है और अखिलेश ने यही इशारा किया था कि वह किसी और के हाथों में खेल रहे हैं.

ये भी पढ़ें : आखिर इन 38 हजार बूथों पर भाजपा की क्यों है खास नजर? क्या है खास वजह?

इस संबंध में राजनीतिक विश्लेषक डॉ. मनीष हिंदवी कहते हैं कि 'राजभर ने बड़ी उम्मीदों के साथ सपा से गठबंधन किया था. उन्हें लगता था कि सपा के साथ मिलकर सरकार बनाने में कामयाब हो जाएंगे. जब सरकार नहीं बन पाई तो उनकी उम्मीदों का किला गिर गया. उन्हें लगने लगा कि कहीं न कहीं इसके पीछे अखिलेश यादव दोषी हैं. विधान परिषद में पुत्र को सीट न दिला पाने का भी उन्हें मलाल रहा. जिस तरह से राजभर सपा के खिलाफ बोल रहे हैं, उससे अखिलेश की नाराजगी जायज मानी जा रही है. अखिलेश के साथ भी कई बार देखा जा रहा है कि वह अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं रख पा रहे हैं. दोनों नेताओं में यह जो संवादहीनता है, इसे देखकर लगता नहीं कि यह गठबंधन बहुत दिनों तक चलेगा.'
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लखनऊ : सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव में एक-दूसरे पर बयानों का ताजा दौर शुरू हो गया है. हाल ही में राजभर के बयानों को लेकर पूछे गए सवाल पर अखिलेश यादव ने कहा कि 'समाजवादी पार्टी को किसी की एडवाइज की जरूरत नहीं है. यदि कोई नाराज है तो मैं उसके लिए क्या कर सकता हूं. आज कल जो राजनीति दिख रही है, वह है नहीं. कई बार राजनीति पीछे से ऑपरेट होती है. 'गौरतलब है कि ओम प्रकाश राजभर ने अखिलेश को लेकर टिप्पणी की थी कि वह एसी कमरों में बैठकर राजनीति करते हैं. दरअसल, दोनों नेताओं की तल्खियां भविष्य के राजनीतिक समीकरणों की ओर इशारा करती हैं.


'योगी-वन' सरकार का हिस्सा रहे ओम प्रकाश राजभर लगातार दबाव की राजनीति कर रहे थे. मांगें पूरी न होने पर उन्होंने भाजपा सरकार पर पिछड़ों के साथ धोखा करने का आरोप लगाया. यही नहीं उन्होंने मंत्री पद छोड़कर सरकार के खिलाफ विरोध का बिगुल भी फूंका. 2022 के विधान सभा चुनावों से पूर्व उन्होंने अपनी पार्टी सुभासपा का सपा के साथ गठबंधन किया. राजभर को लगता था कि जनता का रुख भाजपा के खिलाफ है और वह सपा के साथ मिलकर सत्ता में आ सकते हैं. हालांकि चुनाव परिणाम आने के साथ ही अखिलेश यादव और ओम प्रकाश राजभर के अरमान धरे के धरे रह गए. समाजवादी पार्टी की पराजय के पीछे अखिलेश यादव के कई गलत निर्णय भी माने जा रहे हैं. अखिलेश यादव ने प्रचार अभियान से सभी बड़े नेताओं को दूर रखा. अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव और पत्नी डिंपल यादव तक को अखिलेश ने प्रचार अभियान से दूर रखा. टिकट वितरण को लेकर भी उन्होंने कई गलत निर्णय किए. परायज के बाद राजभर अखिलेश की इन्हीं नाकामियों से खिन्न थे.

राजनीतिक विश्लेषक डॉ. मनीष हिंदवी



ओम प्रकाश राजभर राज्यसभा और विधान परिषद के उप चुनावों में अपने पुत्र अरुण राजभर को राज्यसभा अथवा विधान परिषद में समायोजित कराना चाहते थे. हालांकि अखिलेश यादव ने इन्हें निराश किया. समाजवादी पार्टी ने दूसरे सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष को राज्यसभा भेजा. राजभर इससे खासे निराश हुए. इसके बाद दबी जुबान से आलोचना करने वाले राजभर खुलकर अखिलेश के खिलाफ बयानबाजी करने लगे हैं. आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीटों पर उपचुनाव में भी सपा की पराजय के बाद राजभर ने अखिलेश के खिलाफ मोर्चा ही खोल दिया. इस उपचुनाव में भाजपा ने सपा से दोनों ही सीटें छीन लीं, जबकि अखिलेश यादव आजमगढ़ वोट मांगने तक नहीं गए. इस पर नाराज राजभर ने कहा 'मेरा सवाल है कि अखिलेश क्यों नहीं गए आजमगढ़? मैं भी अपनी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष हूं. ओम प्रकाश राजभर बारह दिन से वहां धूल फांक रहा है. हम अपनी टीम को लेकर धूल फांक रहे हैं, जबकि यह लोग एसी में बैठकर रसमलाई चांप रहे हैं.' राजभर ने कहा कि अखिलेश यादव से पूछा जाना चाहिए कि वह क्यों नहीं निकलते हैं जनता के बीच.

ओम प्रकाश राजभर की यह आक्रामकता साफ इशारा कर रही है कि 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों में नए समीकरण बनेंगे. राजभर और अखिलेश का साथ अब ज्यादा दिन चलना कठिन है. राजभर सपा के साथ गठबंधन में रहकर उसे जितना नुकसान पहुंचा सकते हैं, जरूर पहुंचाएंगे. यह भी माना जा रहा है कि उनकी सत्ताधारी भाजपा से बात भी हो गई है और अखिलेश ने यही इशारा किया था कि वह किसी और के हाथों में खेल रहे हैं.

ये भी पढ़ें : आखिर इन 38 हजार बूथों पर भाजपा की क्यों है खास नजर? क्या है खास वजह?

इस संबंध में राजनीतिक विश्लेषक डॉ. मनीष हिंदवी कहते हैं कि 'राजभर ने बड़ी उम्मीदों के साथ सपा से गठबंधन किया था. उन्हें लगता था कि सपा के साथ मिलकर सरकार बनाने में कामयाब हो जाएंगे. जब सरकार नहीं बन पाई तो उनकी उम्मीदों का किला गिर गया. उन्हें लगने लगा कि कहीं न कहीं इसके पीछे अखिलेश यादव दोषी हैं. विधान परिषद में पुत्र को सीट न दिला पाने का भी उन्हें मलाल रहा. जिस तरह से राजभर सपा के खिलाफ बोल रहे हैं, उससे अखिलेश की नाराजगी जायज मानी जा रही है. अखिलेश के साथ भी कई बार देखा जा रहा है कि वह अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं रख पा रहे हैं. दोनों नेताओं में यह जो संवादहीनता है, इसे देखकर लगता नहीं कि यह गठबंधन बहुत दिनों तक चलेगा.'
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